Neha Singh : अपने बेबाक बयानों और जनगीतों के कारण अक्सर चर्चा में रहने वाली लोकगायिका नेहा सिंह राठौर को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने और गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग को खारिज कर दिया है।
दरअसल, इस साल 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद नेहा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कथित रूप से आपत्तिजनक और राष्ट्रविरोधी टिप्पणियां की थीं। इस पोस्ट को लेकर लखनऊ के हजरतगंज थाने में 27 अप्रैल को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।
अभिव्यक्ति की आज़ादी सीमाओं के भीतर ही मान्य
नेहा राठौर ने एफआईआर को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने मुकदमा रद्द करने और किसी भी तरह की गिरफ्तारी पर अस्थायी रोक की मांग की थी। हालांकि, न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति एस.क्यू.एच. रिजवी की खंडपीठ ने 19 सितंबर को फैसला सुनाते हुए कहा कि:
“संविधान सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, लेकिन यह पूर्ण नहीं है — इसकी कुछ संवैधानिक सीमाएं भी हैं।” कोर्ट ने प्राथमिकी और केस डायरी का हवाला देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया मामला संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है, इसलिए पुलिस जांच जरूरी और न्यायसंगत है। अदालत ने नेहा राठौर को निर्देश दिया है कि वह 26 सितंबर को जांच अधिकारी के समक्ष पेश होकर सहयोग करें।
पाकिस्तानी प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हुआ वीडियो
सरकारी अधिवक्ता वी.के. सिंह ने कोर्ट में सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए कहा कि नेहा राठौर ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को अपमानित करने वाला बयान दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत-पाक तनाव के बीच इस तरह की टिप्पणी देश की सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकती है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, “नेहा के इस बयान को पाकिस्तानी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर काफी सराहना मिली है, जिससे ये साफ है कि बयान का इस्तेमाल भारत-विरोधी प्रचार के लिए किया गया।”
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इसके अलावा, अधिवक्ता ने यह भी कहा कि उन्होंने बिहार चुनाव के दौरान धार्मिक ध्रुवीकरण से जुड़े पहलुओं को उभारते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया। कोर्ट ने सरकार के इन तर्कों को प्रासंगिक और संगत मानते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि इस मामले में मुकदमा खत्म करने का कोई ठोस आधार नहीं बनता।