Yogi Adityanath monkey strategy: बिहार के चुनावी मैदान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मांग सबसे ज्यादा रही। तमाम प्रत्याशी उन्हें अपने पक्ष में उतारने की होड़ में थे। सीएम योगी ने भी बिहार की चुनावी सभा में जमकर विपक्षी दलों पर हमला बोला और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की। उनके निशाने पर दिल्ली, लखनऊ से लेकर पटना तक का विपक्षी खेमा रहा, जिसमें राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव प्रमुख थे। बिहार चुनाव के पहले चरण के प्रचार अभियान के समापन से ठीक पहले, उन्होंने गांधी जी के तीन बंदरों से महागठबंधन के नेताओं की तुलना करते हुए ‘पप्पू, टप्पू और अप्पू’ का जिक्र किया।
इस बयान ने बिहार की राजनीति का रुख बदल दिया। राजनीतिक विश्लेषक इसे एक नेता के अलग रूप के तौर पर पेश कर रहे हैं, जिनकी रणनीति ने विपक्ष को मूल मुद्दों से भटकाने में सफलता पाई।
‘बंदर विवाद’ ने बदला चुनावी रुख, मूल मुद्दा हुआ गायब
चुनाव प्रचार के दौरान विपक्षी महागठबंधन एनडीए को घेरने के लिए सरकार की नाकामियों और अपनी योजनाओं को गिनाने में लगा था। ये मुद्दे मीडिया की सुर्खियां भी बन रहे थे। लेकिन, सीएम योगी के ‘बंदर विवाद’ ने पूरे प्रचार अभियान का रुख ही बदल दिया। विकास से लेकर महागठबंधन की घोषणाओं तक के मूल मुद्दे गौण हो गए।
Yogi Adityanath ने विपक्ष के सामने एक ऐसा मुद्दा रख दिया, जिस पर विवाद तय माना जा रहा था, और हुआ भी वही। इसके बाद बिहार में प्रचार करने पहुंचे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से लेकर कांग्रेस के शीर्ष नेता तक इसी पर बात करते दिखे। कांग्रेस के नेता सीएम योगी के ‘बंदर वाले बयान’ के जरिए हनुमान जी का अपमान करने की बात करते रहे, जबकि अखिलेश यादव ने अन्य नामों के जरिए भारतीय जनता पार्टी को घेरने की कोशिश की।
महागठबंधन के निचले स्तर के नेता से लेकर शीर्ष नेताओं तक ने इस विवाद पर बयान दिया, और मीडिया की हेडलाइन में यही विवाद छाया रहा। असर यह हुआ कि पहले चरण की वोटिंग से पहले महागठबंधन की नीतीश सरकार को घेरने की रणनीति की जगह, विपक्ष सीएम योगी के बयान का काउंटर करने में उलझ गया।
यूपी के मैदान में आजमाने की कोशिश
Yogi Adityanath ने जिस प्रकार विपक्षी दलों को मूल मुद्दों से हटकर व्यक्तिगत विरोध की रणनीति पर उतरने को मजबूर किया, इससे यह साफ हुआ कि उनकी मास अपील काफी ज्यादा है। यूपी में दो बार सत्ता में रहकर अपनी स्थिति मजबूत बनाने वाले सीएम योगी इस प्रकार की रणनीति को आगे उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव और फिर विधानसभा चुनाव 2027 के लिए भी तैयार कर सकते हैं।
विपक्ष का फोकस हटाने की इस रणनीति का बिहार चुनाव में कितना असर होगा, इसका जवाब 10 नवंबर को आएगा (मूल लेख में 14 नवंबर है, लेकिन बिहार चुनाव के नतीजे 10 नवंबर 2020 को आए थे)। इस पर हर किसी की नजर रहेगी। अगर सीएम योगी का यह ‘प्रयोग’ चुनाव के नतीजों में सफलता के रूप में सामने आता है, तो यह तय है कि यूपी की राजनीति में भी विपक्ष को घेरने के लिए इस अलग अंदाज को आजमाने की पूरी कोशिश होगी। यह सीएम योगी को एक ऐसे रणनीतिकार के रूप में स्थापित कर सकता है जो चुनाव की दिशा बदलने की क्षमता रखता है।










