भारत की आर्थिक गणना और राष्ट्रीय आय की मापदंड प्रणाली में जल्द ही बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। अब GDP (Gross Domestic Product) की गणना में माइनिंग (खनन गतिविधियां) और नई फाइनेंशियल सेवाओं को भी शामिल किया जाएगा। यह कदम न केवल आर्थिक विकास के सटीक आकलन के लिए है, बल्कि आधुनिक अर्थव्यवस्था के बदलते स्वरूप के साथ तालमेल बैठाने के लिए भी है।
क्या बदलने जा रहा है?
अब तक GDP की गणना में पारंपरिक क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग, सेवाएं, आदि ही मुख्य रूप से आते थे। लेकिन डिजिटल इकोनॉमी, नई टैक्नोलॉजी और परिष्कृत फाइनेंशियल सेवाओं के बढ़ने के कारण सरकार ने GDP मैट्रिक्स में बदलाव का फैसला किया है।
माइनिंग सेक्टर—कोल, आयरन, बॉक्साइट, लेथ, रेत, और अन्य खनन गतिविधियां, जो देश में रोज़गार और विदेशी मुद्रा अर्जित करती हैं—अब GDP के कैलकुलेशन में अधिक स्पष्टता से जोड़ी जाएंगी।
आधुनिक वित्तीय सेवाएं—जैसे डिजिटल बैंकिंग, फिनटेक, इंस्योरटेक, क्रिप्टो ट्रेडिंग, नॉन-बैंकिंग फाइनेंशल कंपनियां (NBFCs), यूपीआई, डिजिटल वॉलेट, आदि भी अब इस मॉडल में साफ तौर पर दर्ज होंगी।
इससे क्या मिलेगा?
आर्थिक विकास का आंकलन अधिक सटीक और समावेशी होगा।
देश में रोजगार, आय और निवेश के ट्रेंड्स को बेहतर समझा जा सकेगा।
वैश्विक एजेंसियों के साथ भारत की आर्थिक स्थिति की तुलना और प्रतिस्पर्धा का मौजूदा स्तर निर्धारित होगा।
इकोनॉमिक पॉलिसी मेकर्स को गवर्नेंस और योजनाएं बनाने में नई दिशा मिलेगी।
चुनौतियाँ और अगले कदम
माइनिंग और फाइनेंशियल डेटा को डिजिटल और रीयल टाइम में एकत्रित करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है।
अनौपचारिक सेक्टर और नए डिजिटल मनी फ्लो की ट्रैकिंग सुधारनी होगी।
सरकार, रिजर्व बैंक और सांख्यिकी संस्थान इन बदलावों को लागू करने के लिए विस्तृत मार्गदर्शन और टूल्स विकसित कर रहे हैं।



