EPFO new rules 2026: भारत में करोड़ों नौकरीपेशा लोगों के लिए कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) केवल एक निवेश नहीं, बल्कि जीवन की सबसे बड़ी सुरक्षा पूंजी है। घर खरीदना हो, बच्चों की उच्च शिक्षा या बीमारी का खर्च—PF का फंड हमेशा ‘संकटमोचन’ बनकर उभरा है। हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा मार्च 2026 तक PF निकासी प्रक्रिया को डिजिटल और बेहद आसान बनाने के ऐलान ने एक नई बहस छेड़ दी है। प्रस्ताव के अनुसार, अब सब्सक्राइबर्स अपने PF का 75% हिस्सा ATM या UPI के जरिए बैंक खाते की तरह निकाल सकेंगे।
जहाँ एक ओर यह कदम कागजी कार्यवाही और देरी को खत्म करेगा, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यह ‘आसान पहुंच’ लोगों की बचत की आदत को बिगाड़ सकती है। मध्यमवर्गीय परिवारों में अनुशासन की कमी के कारण, जो पैसा रिटायरमेंट के लिए सुरक्षित था, वह अब मोबाइल फोन या शॉपिंग जैसी तात्कालिक जरूरतों की भेंट चढ़ सकता है।
EPFO के नए नियम और बदलाव
सरकार ‘EPFO 3.0’ प्रोजेक्ट के तहत पूरी प्रणाली को आधुनिक बना रही है। इसके मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
ATM और UPI लिंकेज: PF खातों को सीधे डिजिटल पेमेंट गेटवे से जोड़ा जाएगा।
तेजी से निकासी: वर्तमान में हफ्तों लगने वाली क्लेम प्रक्रिया चंद घंटों या मिनटों में सिमट जाएगी।
75% तक निकासी: बेरोजगारी या अन्य स्थितियों में कुल कॉर्पस का 75% हिस्सा तुरंत निकालने की सुविधा मिलेगी।
न्यूनतम बैलेंस: भविष्य की सुरक्षा के लिए खाते में 25% राशि बनाए रखना अनिवार्य हो सकता है।
बचत बनाम जोखिम का खेल
आंकड़े बताते हैं कि भारत में केवल 10% परिवार ही म्यूचुअल फंड या शेयर बाजार में निवेश करते हैं, जबकि 69% आज भी बैंक एफडी और पीएफ जैसे सुरक्षित विकल्पों पर भरोसा करते हैं। PF पर मिलने वाला 8.25% ब्याज इसे एक आकर्षक विकल्प बनाता है। लेकिन निकासी आसान होने से लोग इस सुरक्षित पैसे को निकालकर शेयर बाजार जैसे जोखिम भरे क्षेत्रों में लगा सकते हैं, जो वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा हो सकता है।
“रिटायरमेंट प्लानिंग के प्रति भारतीयों में पहले से ही उदासीनता है। यदि PF का पैसा भी बैंक बैलेंस की तरह खर्च होने लगा, तो बुढ़ापे का सहारा कहे जाने वाले इस फंड का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।”
भविष्य की चुनौतियां
निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए PF ही एकमात्र सामाजिक सुरक्षा का साधन है। यदि लोग अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए ATM पहुंच जाएंगे, तो लंबे समय में ‘कंपाउंडिंग’ का लाभ खत्म हो जाएगा। घर खरीदने या बच्चों की शादी जैसे बड़े लक्ष्यों के लिए फिर से कर्ज का सहारा लेना पड़ सकता है। सरकार की इस पहल से ‘लिक्विडिटी’ (नकदी) तो बढ़ेगी, लेकिन ‘सेविंग’ (बचत) के मोर्चे पर यह एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।



