Maharashtra New CM Eknath Shinde: महारष्ट्र की सियासत में एक नाम हैं जो चर्चा का विषय बना हुआ हैं और वो नाम सबसे ज्यादा लिया जा रहा है। वो नाम हैं एकनाथ शिंदे जिसने ठाकरे सरकार से बगावत करके बागी विधायकों का गुट बनाया और आज महाराष्ट्र की सत्ता में सीएम पद की कुर्सी पर सवार हो गए।
कुछ दिन पहले तक किसी ने नहीं सोचा था कि बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना में इस तरह की बगावत होगी। बगावत पहले भी हुईं, लेकिन किसी ने अपना अलग दल बनाया तो कोई दूसरी पार्टी में जा मिला। शिंदे ने पूरी शिवसेना को ही हाईजैक कर लिया। 1980 के दशक में बाला साहेब ने शिवसेना में हिन्दुत्व और क्षेत्रवाद को मिला दिया और बन गए हिन्दुत्व के सबसे बड़े ब्रैंड ऐम्बेस्डर।
वहीं आज महाराष्ट्र में हिंदुत्व के सबसे बड़े ब्रैंड ऐम्बेस्डर बनना चाहते हैं एकनाथ शिंदे। इसी हिंदुत्व के नाम पर शिंदे ने यलगार कर दी। पार्टी से विधायकों को अपने पाले में किया नंबर गेम में आगे निकल गए जिसके दम पर आज वो सीएम बन गए हैं।
शिंदे कभी ठाणे शहर में ऑटो चलाते थे। उन्होंने पॉलिटिक्स में कदम रखते ही कम समय में ठाणे-पालघर क्षेत्र में पार्टी के प्रमुख नेता के तौर पर पहचान बनाई। उन्हें जनता के मुद्दों को आक्रामक तरीके से उठाने के लिए जाना जाता है।
चार बार रहे विधायक
एकनाथ शिंदे को राजनीति में जाने की प्रेरणा कद्दावर नेता आनंद दीघे से मिली। 9 फरवरी 1964 को जन्मे एकनाथ शिंदे ने पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी। फिर वह शिवसेना में शामिल हो गए। शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे चार बार विधायक रहे। महाविकास अघाड़ी सरकार में वह शहरी विकास और पीडब्ल्यूडी विभाग के मंत्री का प्रभार संभाल रहे थे। शिंदे राजनीति में अपनी सफलता के पीछे पार्टी संस्थापक बाला साहेब ठाकरे का आभार जता चुके हैं।
ठाणे को कार्यक्षेत्र बनाया
सतारा जिले से ताल्लुक रहने वाले एकनाथ शिंदे ने ठाणे जिले को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। पार्टी की हिंदुत्ववादी विचारधारा और बाल ठाकरे से प्रभावित होकर शिंदे शिवसेना में शामिल हो गए। कोपरी-पंचपखाड़ी सीट से विधायक एकनाथ शिंदे सड़कों पर उतरकर राजनीति के लिए पहचाने जाते हैं।
1997 में चुने गए पार्षद
एकनाथ शिंदे 1997 में ठाणे नगर निगम में पार्षद चुने गए। वह 2004 के विधानसभा चुनाव में जीतकर पहली बार विधायक बने। शिंदे को पार्टी में दूसरे सबसे प्रमुख नेता है। एकनाथ के बेटे श्रीकांत शिंदे कल्याण सीट से लोकसभा सदस्य हैं।
निजी जीवन में झेली परेशानियां
एक समय ऐसा भी आया जब शिंदे निजी जीवन में दुखी हुए। उनका परिवार बिखर गया था। 2 जून 2000 को एकनाथ के 11 वर्षीय बेटे दीपेश और 7 साल की बेटी शुभदा का निधन हो गया। शिंदे अपने बच्चों के साथ सतारा गए थे। बोटिंग के दौरान हादसा हो गया। बेटे-बेटी की मौत के बाद उन्होंने राजनीति छोड़ने का फैसला कर लिया था। इस बुरे समय में एकनाथ को आनंद दीघे ने सही रास्ता दिखाया और राजनीति में बने रहने को कहा।