नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। कुछ साल पहले रूपहले पर्दे पर चक दे इंडिया फिल्म आई थी। इस फिल्म में शाहरूख खान ने हॉकी कोच कबीर खान का किरदार निभाया था। रील के कबीरखान से महिला हॉकी टीम के खिलाड़ियों के अंदर हार नहीं मानने का जज्बा पैदा किया। रील के कबीरखान ने छोरियों को फौलाद बना दिया। देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में रील के कबीरखान को लोगों ने सराहा। रील के बाद कुछ ऐसा ही रियल लाइफ में भी सामने आया है। इसी महीने अपना 51वां जन्मदिन मनाने जा रहे मजूमदार की कहानी शाहरूख खान की फिल्म ‘चक दे इंडिया’ के हॉकी कोच कबीर खान की याद दिलाती है, जो हर कयास को गलत साबित करके टीम को विश्व कप दिलाता है और यह जीत उसके अतीत के कई घावों पर मरहम भी लगा जाती है। जीत मिलने के बाद वह जश्न के बीच अपने भीतर जज्बात के तूफान को समेटने की कोशिश करता नजर आता है लेकिन चेहरे पर सुकून साफ दिखाई देता है ।
हां हम बात कर रहे हैं भारतीय महिला टीम के कोच अमोल मजूमदार की, जिन्हें लोग अब रियललाइफ का कबीरखान के नाम से पुकारने लगे हैं। रियल के इस कबीरखान ने वो कारनामा कर दिखाया है, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। टीम इंडिया के मस्साब ने अपनी पाठशाला में भारत की बेटियों को ऐसा क्रिकेट का ज्ञान दिया, जिसके बाद वह मैदान पर शेरनियों की तरह दहाड़ीं। चीते जैसी फूर्ती से उन्होंने पहले आस्ट्रेलिया को चित किया। फिर फाइनल में साउथ अफ्रीका को पटखनी देकर आईसीसी महिला वनडे वर्ल्डकप की ट्रॉफी पर कब्जा कर लिया। इस जीत में बेशक भारत की 11 खिलाड़ियों ने अहम रोल निभाया हो, लेकिन पर्दे के पीछे अमोल मजूमदार ने ऐसे-ऐसे प्लान बनाए, जिनकी काट विपक्षी टीम के पास नहीं थी।
फाइनल से पहले टीम की मीटिंग के वक्त मजूमदार ने खिलाड़ियों को संबोधित करते हुए कहा, सात घंटे के लिए हम सारी बाहरी आवाजें बंद कर देंगे। सात घंटे तक हम अपनी दुनिया में रहेंगे, अपना बबल बनाएंगे। हम अपनी कहानी खुद लिखेंगे, बाहर की कहानियों को नहीं सुनेंगे। चलो अगले सात घंटे अपने बबल में रहते हैं और इतिहास बनाते हैं। फिर क्या था भारतीय टीम ने इसे अपना मंत्र बना लिया और गुरू के अधुरे सपने को वर्ल्डकप का कप जितवाकर दक्षिणा भी दे दी। भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने लगातार तीन मैचों में शानदार प्रदर्शन किया। आस्ट्रेलिया के पहाड़ वाले रन के लक्ष्य का बड़ी आसानी के साथ पीछा कर जीत हासिल की। फिर फाइनल में साउथ अफ्रीका के सामने शानदार बैटिंग की। मैदान पर जबरदस्त बॉलिंग की। चीते की तरफ फील्डिंग कर साउथ अफ्रीका के सपने को चकनाचूर कर ट्रॉफी पर कब्जा जमाया।
अब हम आपको अमोल मजूमदार के बारे में बताते हैं। दरअसल अमोल मजूमदार की कहानी सिर्फ एक कोच की नहीं है, यह उस खिलाड़ी की गाथा है जिसने कभी भारतीय टीम की जर्सी नहीं पहनी, पर उसने वह कर दिखाया जो शायद भारत के लिए खेलने वाले भी नहीं कर पाए। उन्होंने खुद मैदान पर मौका नहीं पाया, लेकिन दूसरों को वह मौका दिलाया और उसी से भारत को विश्व कप फाइनल तक पहुंचा दिया। यह केवल एक काल्पनिक चक दे इंडिया कहानी नहीं, बल्कि एक असली योद्धा की गाथा है। मजूमदार का जीवन एक इंतजार से शुरू हुआ। 1988 में वह 13 साल के थे, जब स्कूल क्रिकेट के टूर्नामेंट हैरिस शील्ड के दौरान नेट्स में अपनी बल्लेबाजी की बारी आने का इंतजार कर रहे थे। उसी दिन अमोल की टीम से ही खेल रहे सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने 664 रनों की ऐतिहासिक साझेदारी की।
दिन खत्म हो गया, पारी घोषित कर दी गई, लेकिन अमोल को बल्लेबाजी का मौका नहीं मिला। यह घटना उनके जीवन का प्रतीक बन गई। बैटिंग की बारी हमेशा उनसे कुछ दूर ही रही। जानकार एक किस्से का जिक्र करते हुए बताते हैं कि 1993 में जब मजूमदार बॉम्बे (अब मुंबई) के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट में डेब्यू किया, तो पहले ही मैच में 260 रनों की ऐतिहासिक पारी खेल डाली। यह तब विश्व में किसी भी खिलाड़ी की डेब्यू पारी में सबसे बड़ा स्कोर था। लोग कहने लगे- यह अगला सचिन तेंदुलकर बनेगा। पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। दो दशक से भी अधिक लंबे करियर में उन्होंने 11,000 से ज्यादा रन बनाए, 30 शतक जड़े, लेकिन कभी भी भारत के लिए एक भी मैच नहीं खेल सके। वो एक सुनहरे युग के खिलाड़ी थे, जब टीम में तेंदुलकर, द्रविड़, गांगुली, लक्ष्मण जैसे सितारे थे। मजूमदार उनके साए में खो गए।
2002 तक आते-आते अमोल लगभग हार मान ली थी। चयनकर्ता बार-बार नजरअंदाज करते रहे। वो खुद कहते हैं, ’मैं एक खोल में चला गया था, समझ नहीं आ रहा था अगली पारी कहां से निकलेगी। तभी उनके पिता अनिल मजूमदार ने कहा, खेल छोड़ना नहीं, तेरे अंदर अभी क्रिकेट बाकी है। यह एक वाक्य उनकी जिंदगी बदल गया। उन्होंने वापसी की और 2006 में मुंबई को रणजी ट्रॉफी जिताई। इसी दौरान उन्होंने एक युवा खिलाड़ी रोहित शर्मा को पहली बार फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में मौका दिया। फिर भी, दो दशकों में 171 मैच, 11,167 प्रथम श्रेणी रन, 30 शतक के बावजूद उन्होंने भारत के लिए एक भी मैच नहीं खेला। मजूमदार भले ही भारतीय टीम का हिस्सा नहीं रहे, लेकिन उनके अंदर क्रिकेट भरपूर था। उन्हें बीसीसीआई ने महिला क्रिकेट टीम को कोच बनाया। बतौर कोच अमोल ने भारतीय महिला टीम के अंदर जीत का जज्बा पैदा किया और भारत की बेटियों ने वनडे वर्ल्डकप को जीत का इतिहास रच दिया।










