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दीपावली व छठ आते ही गांव-गांव घूमने लगे कुम्हारों के बन रहे दीप कलश और चौमुख, लोकल फॉर वोकल का दिख रहा है असर

दीपावली व छठ आते ही गांव-गांव घूमने लगे कुम्हारों के बन रहे दीप कलश और चौमुख, लोकल फॉर वोकल का दिख रहा है असर

बेगूसराय। शक्ति की भक्ति का पर्व दुर्गा पूजा समाप्त होते ही दीपों के पर्व दीपावली और सूर्योपासना के महापर्व छठ की तैयारी शुरू हो गई है। 24 अक्टूबर को मनाए जाने वाले दीपावली की तैयारी तेज हो गई है, बाजार सजने लगे हैं, व्यवसायियों ने धनतेरस के लिए विशेष तैयारी शुरू कर दी है। दीपावली के दिन घरों को सजाने के लिए बाजार में रंग बिरंगी लाइट भी आ गई है।इन सब के बीच कुंभकारों के घर भी रौनक छाने लगी है। बेगूसराय में पांच हजार से अधिक कुंभकार परिवार दिन-रात एक कर लक्ष्मी-गणेश पूजन और घर सजाने के लिए दीप बना रहे हैं,

पूजा के लिए कलश और चौमुख बनाने का काम भी तेजी से हो रहा है। कुंभकार परिवार के परिवार के पुरुष सदस्य सुबह से लेकर शाम तक चाक पर दीप और कलश बना रहे हैं तो महिलाओं की जिम्मेवारी उसे सुखाने, भट्ठी में पकाने तथा कुछ जगहों पर आकर्षक तरीके से रंगने की है।
इसमें बच्चे भी पीछे नहीं है तथा वह भी अपने माता-पिता का भरपूर सहयोग कर रहे हैं। हालांकि चाइनीज दीपों के बढ़ते चलन ने इन परिवारों पर वज्रपात कर दिया है। लोग चमक धमक के इस युग में दीपावली को भी चाइनीज रंग में रंग चुके हैं। चाइनीज दीप और लाइट लोगों को आकर्षित कर रहे तथा बड़ी संख्या में लोगों का झुकाव इस ओर है। लाख प्रशासनिक और सरकारी कवायद के बाद भी चाइनीज आइटम धड़ल्ले में से बाजार में आ गए हैं।

जिससे स्वदेशी उत्पाद एवं लोकल उत्पाद की बिक्री पर लगातार प्रश्न चिन्ह लगता जा रहा है। बावजूद इसके आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में एवं देश प्रेम से ओतप्रोत लोग मिट्टी के बने स्थानीय दीए की ओर आकर्षित होते हैं। जिस कारण दीपावली के एक माह पहले से कुंभकार परिवारों में दिपावली के लिए दीप बनाने का काम शुरू हो जाता है। दीप बनाकर और तैयार होने के बाद यह लोग गांव-गांव जाकर लोगों को घर तक उपलब्ध करवाते हैं, वह भी सस्ते दाम पर।
हालांकि चाइनीज दीप रंग-बिरंगा और भारतीय कंपनियों में बने उत्पाद से सस्ता है। बावजूद इसके स्थानीय कुंभकारों द्वारा मिट्टी से द्वारा बनाए गए दीप मात्र एक रुपया में उपलब्ध हो रहा है। फिलहाल हर कुंभकार परिवार में चाक तेजी से घूम रहा है और चाक पर दीप, चौमुख एवं कलश बनाए जा रहे हैं। तो इसके साथ बिहार ही नहीं आसपास के पड़ोसी राज्यों में भी मूर्तिकला के लिए चर्चित मंसूरचक में लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति बनाने का काम भी शुरू हो गया है। हालांकि, मंगलवार की शाम से रुक-रुक कर हो रही बारिश ने मिट्टी के इन कलाकारों के काम में कुछ बाधा पहुंचाई है। लेकिन हौसला में कमी नहीं है तथा बारिश से बचते हुए दीप, कलश और चौमुख बनाने के काम तेजी से हो रहे हैं।

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