Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक विवाहित महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की. हाईकोर्ट ने कहा, अगर एक विवाहित महिला से कहा जाता है कि वह परिवार के लिए घरेलू काम करे, तो इसकी तुलना घरेलू सहायिका के काम से नहीं की जा सकती और इसे क्रूरता नहीं माना जाएगा. दरअसल, महिला ने अलग हुए पति और उसके माता-पिता के खिलाफ घरेलू हिंसा व क्रूरता का मामला दर्ज कराया था.
जिसे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने खारिज कर दिया था. न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की बेंच ने व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया. महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि शादी के बाद एक महीने तक उसके साथ अच्छा व्यवहार किया गया, लेकिन उसके बाद उसके साथ घरेलू सहायिका की तरह व्यवहार किया गया. महिला ने आरोप लगाते हुए कहा कि शादी के बाद उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था.
इसके अलावा महिला ने यह भी आरोप लगाया कि उसका पति और सास-ससुर ने शादी के एक महीने बाद चार पहिया गाड़ी खरीदने के लिए चार लाख रुपये की मांग करने लगे. उसने अपनी शिकायत में ये भी बताया कि इस मांग पर उसके पति ने उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि महिला ने सिर्फ इतना कहा है कि उसे प्रताड़ित किया गया, लेकिन उसने अपनी शिकायत में ऐसी किसी खास हरकत का जिक्र नहीं किया.
अगर महिला को घर का काम करने में दिलचस्पी नहीं
बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने कहा कि, यदि एक विवाहित महिला को परिवार के लिए घर के काम करने के लिए कहा जाता है, तो उसकी तुलना घरेलू सहायिका से नहीं की जा सकती. बेंच के मुताबिक, अगर महिला को घर के काम करने में दिलचस्पी नहीं है, तो उसे यह बात विवाह से पहले स्पष्ट कर देना चाहिए, जिससे पति-पत्नी बनने से पहले विवाह पर पुनर्विचार किया जा सकता है. बेंच के मुताबिक अगर कोई महिला शादी के बाद कहती है कि वह घर के काम नहीं करना चाहती तो ससुराल वालों को जल्द से जल्द इसका समाधान निकालना चाहिए.
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