नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ ढाई साल से चल रहे गतिरोध तीनों भारतीय सेनाओं के प्रमुखों ने एक सुर में कठिन चुनौती बताया है। दरअसल सेना प्रमुख ने माना कि पूर्वी लद्दाख से हर वक्त तैयार रहने का सबक मिला है। इसलिए बुनियादी ढांचे में सुधार करना बेहद जरूरी है। वायुसेना प्रमुख ने कहा है कि पड़ोस में माहौल सुरक्षित न होने की वजह से हाइब्रिड जंग के लिए तैयार रहें। इसी बीच नौसेना प्रमुख ने भी चीन को कठिन चुनौती बताते हुए कहा कि उसने न केवल भारत की भूमि सीमाओं पर बल्कि समुद्री क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है।
ढाई साल से चल रहा गतिरोध
भारतीय सेनाओं के तीनों प्रमुख- सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे, वायु सेना प्रमुख एयर मार्शल वीआर चौधरी और नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने एक ही दिन तीन अलग-अलग कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। उन्होंने पूर्वी लद्दाख में ढाई साल से चल रहे गतिरोध के बीच चीन को एक सुर में कठिन चुनौती बताया है। वहीं सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में सीमा पर गतिरोध से हर वक्त उच्च स्तर की तैयारी रखने और बुनियादी ढांचे में सुधार करने का सबक मिला है। सेना प्रमुख ने ‘इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव’ में एक सवाल के जवाब में स्पष्ट किया है कि उत्तरी सीमा के साथ अरुणाचल में भी बुनियादी ढांचे को सुधारना होगा।
जनरल पांडे ने कहा कि गोगरा-हॉट स्प्रिंग में पीपी-15 से सैनिकों के हटने के बाद भी गतिरोध वाले दो बिंदु देप्सांग और डेमचोक बचे हैं। उन्होंने कहा कि मुझे यकीन है कि हम इनका भी समाधान निकाल लेंगे। उन्होंने बताया कि फिलहाल जम्मू-कश्मीर में स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है। पिछले दो वर्षों में विशेष रूप से पूर्वी लद्दाख में बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उन्होंने विमानन बुनियादी ढांचे में सुधार की बात करते हुए कहा कि रणनीतिक व सामरिक एयरलिफ्ट के लिए आगे के क्षेत्रों में हेलीपैड का निर्माण किया जा रहा है।
हाईब्रिड युद्ध के लिए तैयार रहें
वहीं इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव में ही भारतीय वायु सेना प्रमुख ने कहा कि हमारे पड़ोसी देशों में सुरक्षा का आदर्श वातावरण नहीं है। ऐसे में हमें हमेशा हाईब्रिड युद्ध के लिए तैयार रहने की जरूरत है। मौजूदा हालात में देश को कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में हाइब्रिड युद्धों में माहिर होना बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान के राजनीतिक माहौल को देखते हुए भारतीय वायु सेना के लिए पारंपरिक, उप-पारंपरिक और गैर-पारंपरिक डोमेन में अपनी क्षमताओं को बढ़ाना महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि हमारे दुश्मन कई क्षेत्रों में अपनी क्षमताएं बढ़ा चुके हैं। जो हमारे खिलाफ उपयोग हो सकती हैं। जरूरी नहीं कि यह युद्ध में हो। शांतिकाल में भी हो सकता है।
उन्होंने कहा कि नए खतरों व चुनौतियों का जवाब देने के लिए दुश्मनों पर तकनीकी उत्कृष्टता हासिल करनी होगी। भारत जिम्मेदार शक्ति है। लेकिन मौजूदा हालात में खासतौर पर वायुसेना की पारंपरिक, गैर पारंपरिक और सह-पारंपरिक क्षेत्रों में क्षमता बढ़ाना बेहद जरूरी है। विभिन्न प्लेटफॉर्म, सेंसर, हथियार, नेटवर्किंग सबसे अहम हैं। भविष्य की क्षमताएं बढ़ाने के लिए घरेलू शोध, विकास और उत्पादन बढ़ाना जरूरी है। युद्ध से जुड़ी नई तकनीकों, प्लेटफॉर्म, हथियार, प्रणालियों और नीतियों पर इस समय विश्व में काम हो रहा है। वे मौजूदा तकनीकों व हथियारों को कम उपयोगी बना सकते हैं। बल्कि बेकार भी कर सकते हैं।
समुद्री क्षेत्र में भी बढ़ रही चुनौती
वहीं नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने राजधानी दिल्ली में आयोजित ‘इंडिया’ज नेवल रिवोल्यूशन: बिकमिंग एन ओसीन पावर’ कार्यक्रम में चीन को कठिन चुनौती बताते हुए कहा कि उसने न केवल भारत की भूमि सीमाओं पर बल्कि समुद्री क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है। हालांकि भारतीय नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र में नियमित रूप से निगरानी कर रही है। उन्होंने इस दौरान देश के लिए पारंपरिक और अन्य सुरक्षा चुनौतियों के बारे में बात की। कहा कि पाकिस्तान ने आर्थिक बाधाओं के बाद भी अपने सैन्य आधुनिकीकरण को जारी रखा है। साथ ही अपनी नौसेना को वह लगातार विकसित कर रहा है।
इसके अलावा आतंकवाद एक बड़ा खतरा बना हुआ है। इसलिए इन अदृश्य दुश्मनों से एक कदम आगे रहकर लगातार नई-नई रणनीतियां अपनाना सबसे बड़ी चुनौती है। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि भारतीय नौसेना 2047 तक जहाजों और पनडुब्बियों के उत्पादन से लेकर कल-पुर्जों एवं हथियारों तक पूरी तरह ‘आत्मनिर्भर’ हो जाएगी। फिर हमारे पास एक पूर्ण स्वदेशी नौसेना होगी। चाहे वह जहाज हो, विमान, पनडुब्बी, मानव रहित प्रणाली या हथियार आदि। हम पूरी तरह से ‘आत्मनिर्भर’ नौसेना होंगे। हम 2047 तक यह लक्ष्य बना रहे हैं।
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