Warning: Trying to access array offset on value of type bool in /home/news1admin/htdocs/news1india.in/wp-content/plugins/jnews-amp/include/class/class-init.php on line 427

Warning: Trying to access array offset on value of type bool in /home/news1admin/htdocs/news1india.in/wp-content/plugins/jnews-amp/include/class/class-init.php on line 428
Jwala Mandir: अंग्रेजों ने इस्तेमाल करना चाहा, अकबर ने बुझाना, 70 साल से

Jwala Mandir: अंग्रेजों ने इस्तेमाल करना चाहा, अकबर ने बुझाना, 70 साल से वैज्ञानिक भी हैरान, जानें जमीन में जलती 9 ज्योतियों की मान्यता

हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित मां ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। वहीं ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर और नगरकोट के नाम से भी जाना जाता है। ये भव्य मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलन में बेहद अनोखा है। दरअसल यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती, बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा की जाती है।

मां सती के 51 शक्तिपीठ में से एक इस मंदिर में नवरात्र में भक्तों का तांता लगा रहता है। कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को बुझाने की नाकाम कोशिशें की थी वहीं वैज्ञानिक भी आज तक इस ज्वाला के लगातार जलते रहने का कारण नहीं जान पाए हैं। देवी के इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद द्वारा करवाया था। इसके बाद 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण करवाया।

ज्वाला देवी का इतिहास और मान्यता

9 अलग-अलग जगहों से ज्वालाएं निकली होने के कारण ज्वाला देवी के मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर भी कहा जाता है। कहा जाता है कि मां ज्वाला मंदिर की खोज पांडवों ने की थी। यह मंदिर देवी के 51 प्रमुख शक्ति पीठों में एक है। ऐसी मान्यता है कि इस जगह पर देवी सती की जीभ गिरी थी।

ये भी कहा जाता है कि ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अंदर से निकलती इस ज्वाला का इस्तेमाल किया जाए। लेकिन वे इस भूगर्भ से निकलती इस ज्वाला का पता नहीं लगाने में नाकाम रहे कि आखिर इस ऊर्जा के निकलने का क्या कारण है।

क्या हुआ जब अकबर ने ज्लावा को बुझाना चाहा

दरअसल बादशाह अकबर ने इस मंदिर के बारे में सुनकर हैरान हो गया। वह अपनी सेना के साथ खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा। मंदिर में जलती हुई ज्वालाओं को देख उसके मन में शंका हुई और इसके बाद बादशाह अकबर ने अपनी सेना को मंदिर में जल रही ज्वालाओं पर पानी डालकर बुझाने के आदेश दिए। लेकिन वो भी नाकाम रहे।

देवी मां की अपार महिमा देखकर अकबर ने सवा मन यानी पचास किलो का सोने का छतर देवी मां के दरबार में चढ़ाया। लेकिन माता ने उनका वह छतर कबूल नहीं किया। छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में बदल गया। बादशाह अकबर का वह छतर आज भी ज्वाला देवी के मंदिर में रखा हुआ है।

70 साल से यहां तंबू गाड़ कर बैठे हैं भूगर्भ विज्ञानी

यही ही नहीं पिछले सात दशकों से भूगर्भ विज्ञानी यहां तंबू गाड़ कर बैठे हैं। वह भी जमीन से निकलती ज्वाला की जड़ तक नहीं पहुंच पाए।

इन सब से सिद्ध होता हैं की यहां ज्वाला प्राकृतिक और चमत्कारी रूप से निकलती है। इसी मंदिर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती बल्कि पृथ्वी के गर्भ निकली 9 ज्वालाओं की पूजा की जाती है। नहीं तो आज यहां बिजली का उत्पाद हो रहा होता और मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं।

जमीन में जलती 9 ज्वालाओं के नाम

दरअसल यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग अलग जगहों से ज्वालाएं निकल रही हैं जिसके ऊपर मंदिर का निर्माण किया गया है। वहीं इन 9 ज्योतियों को महाकाली, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, अन्नपूर्णा, चंडी, महालक्ष्मी, अंजीदेवी, सरस्वती, अंबिका के नाम से जाना जाता है।

वहीं इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद ने और पूर्ण निर्माण 1835 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने करवाया। इस मंदिर में हिंदुओं और सिखों की बहुत आस्था है।

Exit mobile version