दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम से आने वाले बोर्ड एग्जाम से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्टूडेंट्स, टीचर्स और पेरेंट्स के साथ ‘परीक्षा पर चर्चा’ की। राजधानी नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हुए इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए बड़ी संखया में छात्र जमा हुए। वहीं कार्यक्रम में एग्जाम प्रेशर, टाइम मैनेजमेंट, स्मार्ट वर्क और हार्ड वर्क के अलावा बच्चों के तमाम सवालों का पीएम नरेंद्र मोदी ने रोचक अंदाज में जवाब दिया। बच्चों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि, शायद इतनी ठंड में पहली बार परिक्षा पर चर्चा हो रही है। आमतौर पर फरवरी में करते हैं। विचार आया कि आप सबको 26 जनवरी का भी लाभ मिले। उन्होंने कहा कि आप सब कर्तवय पथ पर गए थे, कैसा लगा, घर जाकर क्या बताएंगे? वहीं परिक्षा पर चर्चा यानी मेरी भी परिक्षा है। देश के कोटि-कोटि विद्यार्थी मेरी परिक्षा दे रहे हैं। मुझे ये परिक्षा देने में आनंद आता है। PM ने कहा कि मुझे लाखों की तादाद में सवाल पूछतें हैं, व्यक्तिगत समस्याएं बताते हैं। सौभाग्य है कि देश का युवा मन क्या सोचता है, किन उलझनों से गुजरता है, देश से उसकी अपेक्षाएं क्या हैं, सपने क्या देखता हैं, संकल्प क्या हैं, मेरे लिए ये बहुत बड़ा खजाना हैं। मैनें मेरे सिस्टम को कहा है कि सारे सवालों को इकट्ठा करके रखिए।
एग्जाम से जुड़े प्रेशर पर क्या कहा
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एग्जाम से जुड़े प्रेशर से संबंधित सवालों के जवाब में पीएम मोदी ने चुनाव और क्रिकेट से जोड़ते हुए कहा कि क्रिकेट में गुगली बॉल होती है। मुझे लगता है कि आप पहली ही बॉल में मुझे आउट कततरना चाहते हैं। परिवार के लोगों को आपसे अपेक्षाएं होना बहुत स्वाभाविक है, उसमें कुछ गलत नहीं है। अगर परिवार के लोग अपेक्षाएं सोशल स्टेटस के कारण कर रहे हैं तो यह चिंता का विषय है। परिवार के लोगो को लगता है कि जब सोसायटी में जाएंगे तो बच्चों के बारे में क्या बताएंगे। कभी-कभी मां-बाप भी आपकी क्षमताओं को जानने के बाद भी अपने दोस्तों से अपने बच्चों के बारे में बहुत बड़ी-बड़ी बातें बताते हैं और घर मेंम आकर भी वहीं अपेक्षाएं करने लगते हैं। अगर आप अच्छा करेंगे तो भी हर कोई आपसे अच्छी अपेक्षाएं करेगा। हम तो राजनीति में हैं कितने भी चुनाव जीत लें तोभी हमपर दबाव बनाया जाता हैं, हर चुनाव में बनाया जाता है। पलभर सोचिए जो चारों तरफ से कहा जता है उसपर ही सोचेंगे या खुद के भीतर भी देखेंगे। आपने क्रिकेट मैच देखा होगा। बैट्समैन के आते ही लोग स्टेडियम में चौका, छक्का चिल्लाने लगते है लेकिन खिलाड़ी का ध्यान बॉल परक ही होता है और बॉल के हिसाब से खेलता है। आप भी अपनी एक्टिविटी पर फोक्स रहते हैं तो जो भी दबाव आपके ऊपर बनता है तो आप उससे बाहर आ जाएंगे। कभी-कभी दबाव का विश्लेषण करते हैं, कभी-कभी अपेक्षाएं बड़ी ताकत बन जाती हैं। इसलिए अपनी क्षमताओं से कम भी खुद को आंकना नहीं चाहिए।
एग्जाम टाइमिंग मैनेजमेंट
एग्जाम टाइमिंग मैनेजमेंट के जुड़े सवाल पर पीएम नरेंद्र मोदी ने बच्चों से मां से सीखने को कहा। उन्होंने कहा कि छात्रों को मां की गतिविधियों से सीखना चाहिए। जैसे ही आप स्कूल से आते हो सब रेडी मिलता है। स्कूल जाते समय सब रेडी मिलता है। मां का टाइम मैनेजमेंट कभी महसूस किया है। उन्हें सब पता होता है, वो आएगा तो क्या करेगा। मां करती रहती है। उन्हें मालूम है कि उन्हे इतने घंटे में क्या करना है और क्या नहीं। एक्स्ट्रा टाइम में कुछ न कुछ करती है। अगर मां की गतिविधि पर ध्यान दें तो आप टाइम मैनेजमेंट पर काम कर सकोगे। वहीं उन्होंने आगे कहा कि टाइम मैनेजमेंट के सवाल पर कहा कि सिर्फ परीक्षा के लिए नहीं वैसे भी जीवन में हमे यमय के प्रबंधन के प्रति जागरुक रहना चाहिए। काम का ढेर इसलिए हो जाता है क्योंकि समय पर उसे नहीं किया। काम करने की कभी थकान नहीं होतीू, काम करने से संतोष होता है। काम ना करने से थकान होती है कि इतना काम बचा है।
परीक्षा में नकल से कैसे बचें?
परिक्षा में नकल करने के सवाल पर पीएम मोदी ने कहा कि मुझे खुशी हुई कि हामरे विद्यार्थियों को भी यह लग रहा है कि परीक्षा में जो गलत होता है, उसका रास्ता खोजना चाहिए। मेहनती विद्यार्थियो को इसकी चिंता रहती है कि मैं इतनी मेहनत करता हूं और ये चोरी करके नकल करके गाड़ी चला लेता है। पहले भी चोरी करते होंगे लोग, लेकिन छिपकर। अब गर्व से करते हैं और कहते हैं कि सुपरवाइजर को बुद्धू बना दिया। ये जो मूल्यों में बदलाव आया है, वो बहुत खतरनाक है। ये हम सबकों सोचना होगा। कुछ लोग या टीचर्स जो ट्यूशन चलाते हैं, उन्हे भी लगता है कि मेरा स्टूडेंट अच्छी तरह निकल जाए। वो ही नकल के लिए गाइड करते हैं। ऐसे टीचर होते हैं या नहीं? कुछ छात्र पढ़ने में तो टाइम नहीं निकालते है, नकल के तरीके ढूंढने में क्रिएटिव होते हैं। छोटे- छोटे अक्षरों की कॉपी बनाएंगे। इसकी बजाय उतना ही कुछ छात्र पढ़ने में तो टाइम नहीं निकालते हैं, नकल के तरीके ढूंढने में क्रिएटिव होते हैं। उसमें घंटे लगा देंगे। छोटे-छोटे अक्षरों की कॉपी बनाएंगे। इसकी बजाय उतना ही समय क्रिएटिविटी को सीखने में लगा दें ना तो शायद अच्छा कर जाएं।
इतना ही नहीं उन्होंने आगे कहाकि यह बात आजकल के बच्चों को समझना चाहिए कि समय बदल चुका है। आग डगर-डगर परीक्षाएं देनी होती हैं। नकल करने वाला आज तो निकल जाएगा लेकिन जिंदगी कभी पार नहीं कर पाएगा। नकल से जिंदगी नहीं बन सकती है। उन्होंने कहा कि जो बच्चें मेहनत करते हैं, उनसे कोई दो-चार नंबर ज्यादा ले आएगा वो कभी आगे नहीं जा पाएगा। हमें शार्ट कट की तरफ नहीं जाना चाहिए। आप शर्ट कट से खुद को मुक्त रखिए, आपको अच्छा परिणाम मिलेगा।
स्मार्ट वर्क और हार्ड वर्क में क्या बेहतर है?
पीएम मोदी ने इस सवाल के जबाव में कहा आपने बचपन में एक कथा तो पढ़ी ही होगी। इससे आप स्मार्ट वर्क और हार्ड वर्क समझ सकते हैं। घड़े में पानी था। पानी गहरा था। एक कौव्वा पानी पीना चाहता था। लेकिन, अंदर नहीं पहुंच पाता था। कौव्वे ने छोटे-छोटे कंकड़ उठाकर घड़े में डाले, पानी ऊपर आया और कौव्वे ने पानी पी लिया। इसे कहेंगे हार्ड वर्क या स्मार्ट वर्क। देखिए जब कथा लिखि गई ना, तब स्ट्रॉ नहीं था। वरना कौव्वा बाजार से स्ट्रॉ ले आत। कुछ लोग ऐसले होते है कि हार्ड वर्क करते हैं। तो कुछ लोग हार्च वर्क का नामोनिशान नहीं होते है। कुछ लोग होते हैं, जो हार्डली स्मार्ट वर्क करते हैं, कुछ होते हैं जो स्मार्टली हार्ड वर्क करते हैं। इसलिए कौव्वा भी सिखा रहा है कि स्मार्टली हार्डवर्क कैसे करना है। हमें हर काम को बारीकी से समझना होगा। ढेर सारी मेहनत करके कुछ नहीं मिलता। मैं बहुत पहले ट्रैवल में काम करना होता था। इंटीरियर में जाना होता था। किसी ने हमें उस जमाने की पुरानी जीप की व्यवस्था की। अब सुबह साढ़ेपांच बजे निकलने वाले थे, जीप चली ही नहीं। अब मैकेनिक आया। उसने मुश्किल से 2 मिनट में जीप ठीक कर दी। कहा कि साहब 200 रुपए देने होंगे। हमने पूछा 2 मिनट का 200 रुपया। वो बोला ये 50 साल के अनुभव का 200 रुपया है। हमारे हार्ड वर्क से जीप नहीं चली, उसने स्मार्टली काम किया। पहलवान जो होते हैं, खेलकूद की दुनिया के लोग होते हैं, कौन से खेल से जुड़े हैं, िकस मसल्स की जरूरत होती है, ट्रेनर ये बात जानता है। विकेटकीपर होगा तो उसे ऐसे झुककर घंटों खड़े रहना होता है।