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चरखा दाव ही नही, राजनैतिक दाव भी खेलने में माहिर थे नेताजी, ऐसे बने पहली बार सूबे के मुख्यमंत्री

चरखा दांंव ही नही, राजनैतिक दांव खेलने में भी माहिर थे ‘नेताजी’, ऐसे बने पहली बार सूबे के मुख्यमंत्री

समाजवादी पाार्टी प्रमुख और लोकसभा सांसद मुलायम सिंह यादव का आज निधन हो गया। 82 साल के मुलायम सिंह यादव ने गुरुग्राम के मेदांता अस्पतााल में आज अंतिम सांस ली. समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित रहे मुलायम सिंह ने अपने 55 साल के सियासी करियर में कई उतार- चढ़ाव भरे दौर देखे हैं, इटावा के एक छोटे गांव सैैफई से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने का तक सफर तय किया. ऐसे में मुलायम सिंह यादव के पहली बार मुख्यमंत्री बनने की कहानी काफी दिलचस्प है…

मुलायम सिंह यादव ने राम मनोहर लोहिया के बाद चौधरी चरण सिंह की उंगली पकड़कर आगे बढ़े, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के लिए उनके बेटे चौधरी अजीत सिंह को मात दे दी. 5 दिसंबर, 1989 को मुलायम सिंह यादव लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम में मुख्यमंत्री पद की शपथ लीथी और रुंधे हुए गले से कहा था, लोहिया का गरीब के बेटे को मुख्यमंत्री बनाने का पुराना सपना साकार वहो गया है. ‘ हालांकि, उन्हे मुख्यमंंत्री बनने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. साल 1989 में मिली जीत के बाद चौौधरी अजित सिंह का नाम सीएम के लिए तो मुलायम सिंह यादव का नाम डिप्टीसीएम के लिए फाइल था।

अजित सिंह बाकायदा शपथ लेने के तैयारियां कर रहे थे, लेकिन मुलायम सिंह ने ऐसा दांव चला कि जनमोर्चा के विधायक अजित सिंह के खिलाफ खड़े हो गए और मुलायम सिंह को सीएम बनाने की मांग कर बैठे. वीपी सिंह ने उस समय निर्णय किया कि मुख्यमंत्री पद का फैसला लोकतांत्रिक तरीके से विधायक दल बैठक में होगा. मधु दंडवते, मुफ्ती मोहम्मद सईद और चिमन भाई पटेल को बतौर पर्यवेक्षक उत्तर प्रदेश भेजे गए. मुलायम को सीएम बनाने के लिए बाहुबली डीपी यादव ने मोर्चा संभाल और अजीत सिंह के खेमे के 11 विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया. विधायक दल की बैठक में हुए गुप्त मतदान में मुलायम सिंह यादव ने चौधरी अजित सिंह को पांच वोट से मात दे दी और पहली बार मुख्यमंत्री बने. इसके बाद 1993 और 2003 में मुख्यमंत्री बने.

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