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नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी के इस फैसले से संकट में पड़ा सत्ताधारी दल, भारत की भी बढ़ाई चिंता

नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी के इस फैसले से संकट में पड़ा सत्ताधारी दल, भारत की भी बढ़ाई चिंता

काठमांडू। नेपाल में बहुचर्चित नागरिकता संशोधन विधेयक राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने पुनर्विचार के लिए लौटा दिया है। राष्ट्रपति के इस कदम से नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन के सामने संकट के बादल भी छा गए हैं।

नेपाली संसद ने बीती 31 जुलाई को नागरिकता कानून संशोधन विधेयक पारित कर मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा था। इस विधेयक में ऐसे हजारों बच्चों को देश की नागरिकता मिलने का प्रावधान किया गया था, जिनकी माताएं शादी के वक्त विदेशी थीं। इसके अलावा उन नेपाली महिलाओं से जन्मे बच्चों को भी नागरिकता मिल जाती, जिनके पिता की पहचान नहीं हो सकी है। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संसद से पारित विधेयक पर हस्ताक्षर करने के स्थान पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हुए उसे संसद को लौटा दिया है। संसद में इस विधेयक का मुख्य विपक्षी दल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) ने विरोध किया था। राष्ट्रपति के कदम को उसके रुख की पुष्टि की रूप में देखा जा रहा है।

शेर बहादुर देउबा की गठबंधन सरकार को उम्मीद थी कि इस विधेयक के कानून का रूप लेने पर उन्हें देश के मधेस इलाके में बड़ा सियासी फायदा मिलेगा। मधेस इलाके की पार्टियां देश में नया संविधान बनने के बाद से नागरिकता कानून में बदलाव की मांग कर रही थीं। अब राष्ट्रपति द्वारा विधेयक लौटाए जाने से सत्ताधारी गठबंधन के सामने संकट की स्थितियां पैदा हो गयी हैं। उन्हें जनता के बीच राष्ट्रपति द्वारा उठाए गए सवालों पर जवाब देना होगा। जिस समय देश आम चुनाव की तैयारी में है, सत्ता पक्ष के सामने ये नई चुनौती खड़ी हो गई है। नेपाल में संघीय और प्रांतीय विधायिकाओं के लिए मतदान अगले 20 नवंबर को होगा।

राष्ट्रपति ने विधेयक पर 15 चिंताएं जताते हुए सरकार से उन पर विचार करने को कहा है। राष्ट्रपति भंडारी ने कहा है कि इस विधेयक में शामिल प्रावधान नेपाली संविधान के अनुच्छेदों 38 और 39 के खिलाफ जाते हैं, जिनके तहत बच्चों के मौलिक अधिकार और माताओं के सुरक्षित मातृत्व एवं प्रजनन अधिकारों को सुनिश्चित किया गया है। राष्ट्रपति ने कहा है कि मधेसी समुदाय की नागरिकता संबंधी चिंताओं का भी स्थायी समाधान निकाला जाना चाहिए। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि नागरिकता सिर्फ मधेसी समुदाय का मुद्दा नहीं है। संविधान के मुताबिक संसद चाहे तो राष्ट्रपति की चिंताओं को ठुकरा सकती है। संसद अब जिस रूप में भी दोबारा विधेयक पास करेगी, उस पर राष्ट्रपति को 15 दिन के अंदर दस्तखत करना होगा।

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