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‘महाराष्ट्र’ तो नहीं बन जाएगा कर्नाटक?

‘महाराष्ट्र’ तो नहीं बन जाएगा कर्नाटक?

कर्नाटक के हालिया चुनावों में कांग्रेस ने धमाकेदार जीत का जश्न अभी थमा भी नहीं था कि मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर जिस कदर खींचतान मची उसने कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे की कमजोरी की पोल खोल दी है। जरा सोचिए अगर यही स्थिति बीजेपी में होती तो क्या होता, नागपुर से एक इशारा आता और मुख्यमंत्री के नाम का सीधा ऐलान हो जाता...

कर्नाटक के हालिया चुनावों में कांग्रेस ने धमाकेदार जीत का जश्न अभी थमा भी नहीं था कि मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर जिस कदर खींचतान मची उसने कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे की कमजोरी की पोल खोल दी है। जरा सोचिए अगर यही स्थिति बीजेपी में होती तो क्या होता, नागपुर से एक इशारा आता और मुख्यमंत्री के नाम का सीधा ऐलान हो जाता। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात जैसे तमाम राज्यों में ऐसा हो चुका है। औरों की बात छोड़िए कर्नाटक में भी बीजेपी ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदल दिया और किसी ने चूं तक नहीं की। लेकिन कांग्रेस की स्थिति अलग है। चुनाव दर चुनाव हार रही कांग्रेस को कर्नाटक ने संजीवनी तो दी है मगर चेहरे के बवाल ने उसकी उन कमजोरियों को उजागर कर दिया है, जिन्हें वो अक्सर छिपाने की कोशिश करती रहती है। डीके शिवकुमार या सिद्धरमैया में से किसी एक का शपथ लेना तय है मगर उसके बाद सबकुछ शान्त रहेगा, सही तरीके से चलेगा ये कहना थोड़ा मुश्किल है।

डीके शिवकुमार की वो ‘मीठी धमकी’

डीके शिवकुमार जब दिल्ली आए तो पत्रकारों से बातचीत में दो बातें कहीं। पहली बात ये कि उन्होंने 135 विधायकों से बात की है। दूसरा ये कि कांग्रेस उनकी मां है, वो ब्लैकमेल नहीं करेंगे। अब ये दोनों बातें दो तरह का इशारा देती हैं। याद करिए महाराष्ट्र का कांड, जब एकनाथ शिंदे पहले गुजरात फिर असम जाकर विधायकों के साथ बैठ गए थे। शिंदे जब तक मुंबई नहीं आए तब तक वो लगातार खुद को बालासाहब का शागिर्द और सच्चा शिवसैनिक बताते रहे और उद्धव ठाकरे को लगातार कहते रहे कि बीजेपी के साथ आ जाओ, मैं वापस आ जाऊंगा। मगर नतीजा क्या हुआ ये सबको पता है। डीके शिवकुमार कांग्रेस के लिए कर्नाटक में सबसे बड़े संकटमोचक हैं। फिर चाहे पार्टी के लिए फंडिंग की बात हो या फिर विधायकों को सहेजने की, हर मोर्चे पर डीके सबसे आगे नजर आते हैं। ऐसे में डीके को नजरअंदाज करना कांग्रेस के लिए भारी भी पड़ सकता है। डीके खुद बता चुके हैं कि उनकी 135 विधायकों से बात हो चुकी है तो क्या इस बयान के बहाने डीके ने कांग्रेस को इशारों में मीठी धमकी दे दी है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस में दो दर्जन से ज्यादा ऐसे विधायक हैं जिन्हें चुनाव में संसाधनों और आर्थिक सहयोग डीके शिवकुमार ने दिया है। सवाल उठता है कि क्या ऐसे विधायकों की निष्ठा कांग्रेस पार्टी के प्रति रहेगी या फिर डीके के प्रति। कांग्रेस नेतृत्व के लिए ये भी चिन्ता का विषय है।

बहुमत की सरकार का भविष्य क्या होगा?

अब बात यहीं से बिगड़ती है इसकी कई वजहें हैं। पहली वजह से डीके शिवकुमार पर चल रहे केस, जिन्हें लेकर कर्नाटक के पूर्व डीजीपी प्रवीण सूद से डीके की अदावत जगजाहिर है। अब प्रवीण सूद सीबीआई के डायरेक्टर बन चुके हैं और डीके शिवकुमार से जुड़े मामलों की महीन पकड़ रखते हैं। यानी डीके की घेरेबन्दी के लिए पर्याप्त मसाला पहले से मौजूद है उपर से अगर डीके को मुख्यमंत्री पद नहीं मिलता है तो यकीन मानिए आने वाले दिन उनके लिए मुश्किल भरे होंगे और इस मुश्किल के निकलने के लिए दरवाजा कहां से खुलेगा ये बताने की जरूरत नहीं है। फिलहाल कांग्रेस ने बहुमत तो हासिल कर लिया है लेकिन शायद यही बहुमत कांग्रेस के लिए भविष्य में मुसीबत भी बन सकता है।

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