नई दिल्ली। केंद्र सरकार को भारत पूर्वोत्तर राज्यों में एक असम में बड़ी सफलता मिली है। यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम (ULFA) का तीन दशक से अधिक पुराना सशस्त्र संघर्ष अब खत्म हो जाएगा। गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की उपस्थिति में उल्फा (अरबिंद राजखोवा गुट) के प्रतिनिधियों ने शुक्रवार को नई दिल्ली में त्रिपक्षीय शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के बाद असम स्थायी शांति की दिशा में आगे बढ़ गया है।
असम के भविष्य के लिए सुनहरा दिन करार दिया
इस त्रिपक्षी समझौते को लेकर अमित शाह ने इसे असम के भविष्य के लिए सुनहरा दिन करार दिया। शाह ने कहा कि शांति समझौते के बाद उल्फा के 700 सशस्त्र कैडर हथियार डालकर समाज के मुख्य धारा में लौट जाएंगे। उल्फा से पहले बोडो, आदिवासी, कार्बी और दीमासा उग्रवादी गुटों के साथ समझौता हो चुका है, जिससे करीब 7,500 से अधिक सशस्त्र कैडर मुख्य धारा में लौट चुके हैं। उल्फा से शांति समझौते के बाद इसकी संख्या में इजाफ़ा होगा और करीब 8200 सशस्त्र कैडर का हथियार छोड़कर मुख्य धारा में लौटना असम में शांति के लिए बड़ी बात है।
12 वर्षों बाद ULFA का शांति समझौते पर हस्ताक्षर
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि मोदी सरकार के दौरान असम में आई शांति के कारण 85 प्रतिशत इलाकों से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (अफस्पा) अब हटा लिया गया है। उल्फा के साथ सरकार का समझौते के बाद जल्द असम पूरी तरह से अफस्पा से मुक्त हो जाएगा। गौरतलब है कि उल्फा के राजखोवा गुट ने 2011 में आपरेशन निलंबित करने का केंद्र और असम सरकार के साथ समझौता किया था। जिसके बाद 12 वर्षों की बातचीत के बाद अब इस शांति समझौते पर हस्ताक्षर हो पाया है।
कब क्या हुआ
- 7 अप्रैल, 1979 : असम के शिवसागर में ऐतिहासिक अहोम-कालीन एंफीथिएटर रंग घर में उल्फा का गठन हुआ।
- 1980 : कांग्रेस के राजनीतिज्ञों, राज्य के बाहर के व्यापारिक घरानों, चाय बागानों और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को निशाना बनाकर ULFA ने अपनी ताकत बढ़ानी शुरू की।
- 1985-1990: राज्य की सकारात्मक गतिविधि को प्रभावित करने के लिए उल्फा ने अपहरण, जबरन वसूली और हत्याओं की कई घटनाओं को अंजाम दिया।
- 28 नवंबर, 1990 : उल्फा के खिलाफ सेना द्वारा आपरेशन बजरंग शुरू किया गया।
- नवंबर 1990 : केंद्र सरकार ने असम को अशांत क्षेत्र घोषित किया और सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) कानून लागू किया गया। इसी साल उल्फा को अलगाववादी और गैर-कानूनी संगठन भी घोषित किया गया।
- 31 जनवरी, 1991 : आपरेशन बजरंग समाप्त।
- 1991: उल्फा के खिलाफ सेना ने आपरेशन राइनो शुरू किया।
- मार्च 1992 : ULFA दो गुटों में विभाजित हो गया। एक वर्ग ने आत्मसमर्पण कर दिया और खुद को आत्मसमर्पित उल्फा के रूप में संगठित किया।
- 2004 : उल्फा सरकार से बातचीत के लिए राजी हुआ।
- सितंबर 2005 : ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखिका इंदिरा गोस्वामी के नेतृत्व में केंद्र के साथ तीन दौर की वार्ता हुई जिसका कोई नतीजा नहीं निकला।
- दिसंबर, 2009 : उल्फा के शीर्ष नेताओं को बांग्लादेश में गिरफ्तार किया गया और भारत प्रत्यर्पित किया गया।
- अप्रैल 2023 : केंद्र ने उल्फा (वार्ता समर्थक) को प्रस्तावित समझौते का मसौदा भेजा।
- 29 दिसंबर, 2023 : उल्फा के वार्ता समर्थक गुट ने केंद्र और असम सरकार के साथ त्रिपक्षीय शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए।
समझौते में क्या सब
- असम के लोगों की सांस्कृतिक विरासत बरकरार रहेगी।
- असम के लोगों के लिए बेहतर रोजगार के साधन राज्य में मौजूद रहेंगे।
- इनके काडरों को रोजगार के पर्याप्त अवसर सरकार मुहैया कराएगी।
- ULFA के सदस्यों को जिन्होंने सशस्त्र आंदोलन का रास्ता छोड़ दिया है, उन्हे मुख्य धार में लाने के लिए सरकार हर संभव प्रयास करेगी।