स्कूल के बाथरूम में मिले खून के धब्बे, 10 छात्राओं के उतरवाए कपड़े, प्रिंसिपल और 7 टीचर गिरफ्तार!

ठाणे के एक स्कूल में बाथरूम में खून के धब्बे मिलने पर प्रिंसिपल और शिक्षकों ने 10 छात्राओं के कपड़े उतरवाकर मासिक धर्म की जांच की। जब इस घटना का विरोध अभिभावकों ने किया, तो प्रिंसिपल सहित कुल 8 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। Ask ChatGPT

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Maharashtra News : ठाणे के एक स्कूल में बेहद चौंकाने वाली और शर्मनाक घटना सामने आई है, जिसने पूरे इलाके में हड़कंप मचा दिया है। यहां स्कूल की प्रिंसिपल, एक आया, चार शिक्षकों और दो ट्रस्टियों सहित कुल आठ लोगों के खिलाफ गंभीर कार्रवाई की गई है। पुलिस ने बुधवार को प्रिंसिपल और आया को गिरफ्तार कर लिया, जबकि बाकी के छह लोगों को भी हिरासत में लेकर केस दर्ज किया गया है।

दरअसल, स्कूल के बाथरूम में खून के धब्बे पाए जाने के बाद स्कूल प्रशासन ने यह पता लगाने के लिए कि वह खून किस छात्रा का है, कक्षा 5वीं से 10वीं तक की सभी लड़कियों को एक बड़े हॉल में इकट्ठा किया। वहां उन्हें एक स्क्रीन पर बाथरूम की तस्वीरें दिखाई गईं और पूछा गया कि कौन पीरियड्स में है। जिन्होंने हाथ उठाए, उनके नाम नोट किए गए, लेकिन बाकी छात्राओं को एक-एक कर बाथरूम ले जाकर आया से कपड़े उतरवाकर जांच करवाई गई।

बच्ची की मां ने की शिकायत

एक छात्रा की मां ने शिकायत की है कि जब उनकी बेटी ने बताया कि वह पीरियड्स में नहीं है, तो प्रिंसिपल ने उस पर झूठ बोलने का आरोप लगाया और जबरदस्ती उसका अंगूठे का निशान ले लिया। यह सब कुछ बच्ची की मर्जी के बिना किया गया, जिससे उसे गहरा मानसिक आघात पहुंचा।

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घटना के बाद जब लड़कियां घर लौटीं, तो वे रो रही थीं और मानसिक रूप से परेशान थीं। उन्होंने अपने माता-पिता को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी। इसके बाद बुधवार को गुस्साए माता-पिता स्कूल के बाहर इकट्ठा हो गए और जोरदार प्रदर्शन किया। उन्होंने स्कूल प्रबंधन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।

पुलिस कर रही जांच

एक अभिभावक की शिकायत पर पुलिस ने स्कूल की प्रिंसिपल, आया, चार शिक्षकों और दो ट्रस्टियों के खिलाफ बच्चों के साथ अनुचित व्यवहार और जबरदस्ती की धाराओं में मामला दर्ज किया है। पुलिस अब सभी गवाहों से पूछताछ कर रही है और छात्राओं से और जानकारी इकट्ठा की जा रही है। पुलिस का कहना है कि आरोपियों को गुरुवार को कोर्ट में पेश किया जाएगा। यह घटना न केवल स्कूल प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर करती है, बल्कि बच्चों की गरिमा और निजता के अधिकार पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।

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