G20 शिखर सम्मेलन को लेकर जहांं एक तरफ पूरी दुनियाभर की नजरें सिर्फ हिंदुस्तान पर टिकी हुई थी तो वहीं विपक्षीयों की नींद इस बात से उड़ी हुई थी कि कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये अहम कदम सफल ना साबित हो जाए। लेकिन अगर देखा जाए भारत में ये पहली बार था जब G20 शिखर सम्मेलन का आगाज दिल्ली के प्रगती मैदान में हुआ। जो तस्वीरे सामने आई हर भारतीय की नजर में वो गर्व की बात थी। भारत के लिए ये एक बड़ा इतिहास था जिसे हर भारतीय ने देखा, जिया, और सुना। इतना ही नहीं देश और चेहरे भले ही अलग अलग नजर आए लेकिन भारत की जमीन पर अलग अलग विचार मिलकर एक साझा आवाज बन गए।
विपक्षीयो ने किया G20 पर हमला
तो दूसरी तरफ भारत में रहकर नीतीश कुमार के मंत्री मदन सहनी इस इतिहास को देश के लिए समय की बर्बादी बता रहे है लेकिन एक और नेता ऐसे हैं जो टी.वी में नजरें गढ़ाए बैंठे हैं और हाथ में फोन लेकर x एक्स खोले बैठे है और उसमें लिखते हुए कह रहे हैं कि “भारत सरकार हमारे गरीब लोगों और जानवरों को छुपा रही है। हमारे मेहमानों से भारत की हकीकत छुपाने की जरूरत नहीं है।” ये कोई और नहीं बल्कि राहुल गांधी हैं। इससे ये बात तो पता चल रही है कि विपक्षीयों को ये G20 हज़म नहीं हो पा रहा है। वहीं विपक्षी दल इस बात को लेकर खुश था कि जॉइंट स्टेटमेंट में तो मोदी फेल हो सकते हैं। लेकिन बाजी तो यहां पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार ही ली। अब विपक्षीयों की टेंशन और ज्यादा बढ़ गई जिस जी20 को विफल का टैग देने में लगी हुई थी वो तो सफल हो गई, अब आगे क्या विपक्ष का क्या रुतबा होगा ये तो बात कि बात हैं। उससे पहले जानते है आखिर ये सब आसान हुआ कैसे…….
जानिए कैसे हुई जॉइंट स्टेटमेंट की राह आसान
बात करते हैं शनिवार सुबह की जब भारत के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि नई दिल्ली के G20 शिखर सम्मेलन के नतीजे के रूप में साझा बयान यानी जॉइंट स्टेटमेंट आएगा या फिर नहीं? जिस तरह दुनिया का यह सबसे बड़ा कूटनीतिक जुटान रूस -यूक्रेन संघर्ष पर दो हिस्सों में बंटा दिख रहा था, उससे संकेत यही थे कि सम्मेलन के आखिरी दिन तक सहमति शायद ही बन सके। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन स्थल के दूसरे सत्र में नई दिल्ली घोषणा पत्र पर सभी देशों के सहमत होने का बड़ा ऐलान कर दिया। यह सहमती ऐसी थी मानों आखिरी गेंद पर छक्का मारकर फाइनल मैच जीतने जैसी।
अमूमन घोषणापत्र शिखर सम्मेलन के आखिरी दिन जारी होता है, लेकिन मौजूदा हालात में न सिर्फ सहमति का ऐलान हुआ, बल्कि कुछ ही मिनटों में पूरा घोषणा पत्र सामने आ गया। इस सहमति को भारत की सबसे बड़ी जीत और दुनिया की सबसे अहम कूटनीतिक घटना माना जा रहा है। जिसके व्यापक असर होंगे। इससे ये जाहिर होता है कि शायद ही कोई ऐसा नेता रहा होगा जिसने पीएम मोदी के विचारों या ये कहें कि भारत के नजरिए से अलग रहा होगा। 100 से अधिक मुद्दों पर आम सहमति बनी वो भी उस वक्त जब अमेरिका -चीन के बीच तनाव चरम पर हैं, वहीं दूसरी तरफ रूस -यूक्रेन एक दूसरे से उलझा हुए हैं।
जानकारों का कहना है कि समिट से पहले वाली रात भारत ने जिस तरह से सदस्य देशों के साथ आपसी बातचीत में कूटनीति का सफल प्रयोग किया उसे आप घोषणापत्र में देख सकते हैं। सदस्य देशों में चीन, यूक्रेन-रूस के मुद्दे पर असहमती के कई बिंदु थे, खासतौर पर यूक्रेन के मुद्दे पर चीन के रुख में बड़ा बदलाव आया जब वो बातचीत के लिए तैयार हुआ। उससे पहले वो रूस के रुख को ज्यादा महत्व दे रहा था। अब जब चीन का नजरिया बदला तो रूस के लिए अकेले प्रतिवाद करना संभव नहीं रहा. रूस को संकेत दिया कि एकतरफा कोई बात नहीं की जाएगी, अगर सदस्य देश लचीला रुख अपनाएंगे तो उसका रुख भी लचीला बना रहेगा।