मुहर्रम के महीने को लेकर शिया और सुन्नी समुदाय दोनों की मान्यताएं अलग हैं। शिया समुदाय के अनुयायी को मुहर्रम की 1 से लेकर 9 तारीख तक रोजा रखने की छूट होती है। शिया उलेमा के मुताबिक, मुहर्रम की 10 तारीख, यानी रोज-ए-आशुरा के दिन रोजा रखना हराम होता है। वहीं, सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम की 9 और 10 तारीख पर रोजा रखते हैं। हालांकि, इसे रोजा रखना मुस्लिम लोगों के लिए फर्ज नहीं है, बल्कि इसे सवाब के तौर पर रखा जाता है।
मुहर्रम महीने की दसवीं तारीख को पैगंबर मोहम्मद के नाती इमाम हुसैन के शहादत हो गई थी। इस दुखद घटना में हर साल अशुरा के दिन ताजिए निकाले जाते हैं, जो कि शोक का प्रतीक है। इसलिए इस महीने को “शोक का महीना” भी कहा जाता है। इस दिन शिया समुदाय मातम मनाता है, जबकि सुन्नी समुदाय रोजा और नमाज के जरिए अपना दुख व्यक्त करता है।
इस महीने के पहले दिन नए साल की शुरुआत पर बधाई देना समझा जाता है, लेकिन अशुरा दिन मोहर्रम की बधाई देना गलत माना जाता है, क्योंकि इससे मातम में डूबे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है।