देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव को कराने का रास्ता साफ होता नजर आ रहा है। वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की समिति की रिपोर्ट को केन्द्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद इस दिशा में रास्ता साफ हो गया है और जल्दी ही केन्द्र सरकार इसे लेकर विधेयक ला सकती है सरकार की कोशिश है कि केन्द्र सरकार के इसी टेन्योर से ये व्यवस्था लागू कर दी जाए। लेकिन इन सबके बीच बडा सवाल ये कि क्या वाकई वन नेशन वन इलेक्शन की व्यवस्था भारत जैसे देश के लिए आसान रहेगी। और क्या राज्यों में इसे लागू करा पाना इतना ही आसान होगा।
चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव होता है लेकिन उत्सव भी कभी कभी अच्छा लगता है। ऐसा कोई साल नहीं जब किसी ना किसी राज्य में चुनाव ना हो। कभी लोकसभा चुनाव, कभी राज्यों के विधानसभा चुनाव, कभी स्थानीय निकाय के चुनाव तो कभी पंचायतों के चुनाव। इसकी सबसे बड़ी कीमत विकास कार्यों को चुकानी पड़ती है क्योंकि आचार संहिता के बाद सारा कुछ ठप हो जाता है। ऐसे में चुनावी चक्र को व्यवस्थित किया जाए इसके लिए केन्द्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी जिसका काम था देश में एक साथ चुनाव कराए जाने पर विचार करना
वन नेशन-वन इलेक्शन का कॉन्सेप्ट क्या है?
लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव बी होंगे। इसके साथ ही सभी राज्यों के स्थानीय निकाय के चुनाव भी कराने का प्रस्ताव है। पीएम मोदी लगातार एक साथ चुनाव की वकालत करते रहे हैं। पीएम के मुताबिक बार बार चुनाव से विकास में बाधा आती है। बीजेपी ने चुनावी घोषणापत्र में भी इसे जगह दी थी। आजादी के बाद 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए। बाद में राज्यों के पुनर्गठन के बाद शेड्यूल बदलता गया। क्षेत्रीय दलों को इस तरह के चुनाव से ज्यादा एतराज रहा है।
दुनिया में कहां एक साथ चुनाव ?
ऐसा नहीं है कि एक साथ चुनाव कराने का फैसला मोदी सरकार की प्रथमिक्ता रही है। भारत के अलावा अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, और कनाडा में एक साथ चुनाव होते हैं। अमेरिका में हर 4 साल में राष्ट्रपति, कांग्रेस औऱ सीनेट के चुनाव कराए जाते हैं। देश के सभी सर्वोच्च कार्यालयों के चुनाव एक साथ हो इसके लिए संघीय कानून का सहारा लिया जाता है। फ्रांस में भी नेशनल असेंबली, राज्यों के प्रमुख और प्रतिनिधियों का चुनाव एक साथ होते हैं। स्वीडन में भी हर चार साल में संसद, स्थानीय सरकार और नगरपालिका तक के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं।
वन नेशन-वन इलेक्शन के फायदे
एक देश एक चुनाव का सबसे बड़ा फायदा यह है कि चुनाव का खर्च घट जाएगा अलग-अलग चुनाव कराने पर हर बार भारी-भरकम राशि खर्च होती है. बार-बार चुनाव होने से प्रशासन और सुरक्षा बलों पर बोझ पड़ता है, क्योंकि उन्हें हर बार चुनाव ड्यूटी करनी पड़ती है. एक बार में चुनाव निपट जाने पर केंद्र और राज्य सरकारें कामकाज पर फोकस करेंगी। बार-बार वह इलेक्शन मोड में नहीं जाएंगी और विकास के कामों पर ध्यान दे सकेंगी। एक ही दिन चुनाव होने से वोटरों की संख्या भी बढ़ेगी, क्योंकि उनको यह नहीं लगेगा कि चुनाव तो आते ही रहते हैं. वे घरों से निकलकर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने में रुचि दिखाएंगे.
एक देश एक चुनाव की चुनौतियां
वन नेशन-वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती है संविधान और कानून में बदलाव है। एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। इसके बाद इसे राज्य विधानसभाओं से पास कराना होगा। वैसे तो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल का होता है पर इन्हें पहले भी भंग किया जा सकता है। ऐसे में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि अगर लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा भंग होती है तो एक देश, एक चुनाव का क्रम कैसे बनाए रखे।