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जल्लाद नहीं इस अधिकारी ने लगाई थी अफजल गुरु को फांसी, मौत से पहले मांगी थी ‘टू कप टी’

Parliament Attack 2001: अफजल गुरु और 5 आतंकियों ने 13 दिसम्बर, 2001 को भारतीय लोकतंत्र की आत्मा संसद भवन पर ने हमला किया था। अफजल को 9 फरवरी 2013 को सजा-ए-मौत दे दी गई थी।

Vinod by Vinod
December 13, 2024
in Latest News, TOP NEWS, क्राइम, राष्ट्रीय
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नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। आज से 23 वर्ष पहले 13 दिसंबर 2001 को 5 आतंकवादियों ने भारतीय लोकतंत्र की आत्मा संसद भवन पर हमला किया था। इस आतंकी हमले में नौ लोगों की जान चली गई, जिनमें सुरक्षाकर्मी भी थे। 15 लोग जख्मी हो गए। हालांकि सुरक्षा बलों ने आतंकियों को भी मार गिराया था। दिल्ली पुलिस के अलावा अन्य एजेंसियों ने हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु समेत एक दर्जन आरोपियों को अरेस्ट किया था। जिसमें अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था। 13 दिसंबर को संसद भवन आतंकी हमले की बरसी है। ऐसे में हम आपको अफजल गुरु के बारे में बताने जा रहे हैं। कैसे कश्मीर में फलों की एजेंसी चलाने वाला अफजल गुरु आतंकवादी बना। मौत से पहले उसने दो कप चाय की मांग क्यों की। आप इस अंक में पूरे विस्तार से जान सकेंगे। कहानी अफजल गुरु की।

बरसी पर शहीदों को किया नमन

23 साल पहले साल 2001 में संसद पर हुए हमले की बरसी पर 13 दिसंबर 2024 को संसद भवन परिसर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और कई सांसदों और मंत्रियों ने आतंकी हमले में बलिदान हुए वीरों को पुष्पांजलि अर्पित की। सीआईएसएफ जवानों ने कार्यक्रम के दौरान सलामी दी और इसके बाद एक मिनट का मौन रखा गया। कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, गृह मंत्री अमित शाह, लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी, संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू आदि शामिल हुए। आतंकी हमले का जिक्र सदन में शुक्रवार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने किया। 23 साल गुजर गए पर अब भी आतंकी हमले के जख्म ज्यों के त्यों लोगों के जेहन में हैं।

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इन्होंने रची थी संसद पर हमले की साजिश

13 दिसंबर 2023 को संसद भवन हमले की साजिश लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने रची थी। यह हमला पांच हथियारबंद आतंकवादियों ने किया था, लेकिन संसद सुरक्षा सेवा, सीआरपीएफ और दिल्ली पुलिस के जवानों ने हमले को विफल कर दिया और कोई भी आतंकवादी इमारत में प्रवेश नहीं कर सका। उस हमले में दिल्ली पुलिस के छह जवान, संसद सुरक्षा सेवा के दो जवान, एक माली और एक टीवी वीडियो पत्रकार की मौत हुई थी। सुरक्षा बलों ने सभी पांच आतंकवादियों को मार गिराया था। तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में बताया था कि ’भारत की संसद पर आतंकी हमला करने की साजिश पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद ने मिलकर रची थी। इन दोनों सगठनों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से मदद मिली।

इन्हें कर दिया गया था रिहा

संसद पर हमले के आरोप में मोहम्मद अफजल गुरु, शौकत हुसैन गुरु, शौकत की पत्नी अफसाना और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एसआर गिलानी को गिरफ्तार किया था। दोषी पाए जाने के बाद अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को फांसी की सजा दी गई। वहीं शौकत हुसैन गुरु को 10 साल जेल की सजा हुई थी। बाकी लोगों को रिहा कर दिया गया था। हमले के दिन आतंकवादी कार पर सवार होकर आए थे। कार पर लाल बत्ती और गृह मंत्रालय के फर्जी स्टीकर लगे थे। अंदर पांच आतंकी सवार थे। जैसे ही कार संसद बिल्डिंग के गेट नंबर 12 की तरफ बढ़ी, जिस पर संसद भवन के एक सुरक्षा कर्मचारी को किसी गड़बड़ी का शक हुआ और एनकाउंटर के दौरान सभी आतंकी ढेर कर दिए गए।

अफजल गुरु था आतंकी हमले का मास्टरमाइंड

संसद भवन हमले का मास्टरमाइंड अफजल गुरु था। इसी के दिल्ली स्थित घर पर पाकिस्तान से आए आतंकवादी रूके थे। हमले के दो ही दिन बाद जम्मू-कश्मीर से अफजल गुरु को अरेस्ट कर लिया गया था। इस हमले के लिए अफजल, गिलानी, शौकत और अफसान को आरोपी माना गया। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने शौकत हुसैन गुरु की सजा को मौत से घटाकर 10 साल की कैद कर दिय। दिसंबर 2010 में शौकत हुसैन गुरु को उसके अच्छे आचरण के कारण दिल्ली की तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया। वहीं, अफसान गुरु को बरी किया गया। वहीं, गिलानी को भी बरी कर दिया गया। हालांकि, अफजल गुरु की मौत की सजा बरकरार रखी गई।

कौन था अफजल गुरु

अफजल गुरु का जन्म जून 1969 को जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले में स्थित सोपोर शहर के पास दोआबगाह नाम के गांव में हुआ था। अफजल गुरु के पिता हबीबुल्लाह लकड़ी और ट्रांसपोर्ट का कारोबार किया करकते थे। अफजल गुरु की मां की मौत बहुत साल पहले हो गई थी। उसने अपनी स्कूली शिक्षा सोपोर से ही पूरी की। साल 1986 में हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी। उसने झेलम घाटी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया था। इसका पहला साल पूरा भी कर लिया था और साथ ही साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था। हालांकि, इसी दौरान उसके जीवन में नया मोड़ आया और उसने दूसरी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया।

ऐसे अफजल गुरु बना टेररिस्ट

अफजल गुरु ने तभी सोपोर में फलों की एक कमीशन एजेंसी खोल ली। इस बिजनेस के दौरान अफलजल की मुलाकात तारिक नामक एक व्यक्ति से हुई। उसने कश्मीर की आजादी के नाम पर अफजल को उकसाया। जिहाद के लिए प्रोत्साहित करता रहा और आखिरकार अफजल को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर ले गया। तारिक ने पाकिस्तान में कई आतंकवादियों से अफजल की मुलाकात कराई। वहां अफजल को फिदायीन हमले का प्रशिक्षण दिया गया। फिर अफजल गुरु जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ गया। अफजल गुरु पाकिस्तान से भारत आया। कश्मीर में रहने के बाद वह दिल्ली आ गया और संसद भवन के हमले की प्लानिंग में जुट गया।
अफजल गुरु ने दिल्ली के घर लिया और आतंकवादियों को सारे-साजो समान मुहैया करवाए।

गाया गीत मांगी एक कप टी

लोवर और हाईकोर्ट ने अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई। जिसके खिलाफ अफजल गुरु ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। पर सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा को बरकरार रखा। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने अफजल गुरु की दया याचिका खारिज कर दी। नौ फरवरी 2013 को अफजल को तिहाड़ जेल में फांसी पर चढ़ाने का फैसला किया गया। फांसी से पहले अफजल को चाय दी गई। चाय पीने के वक्त अफजल गुरु ने एक गीत गुनगुनाया। जिसे सुनकर जेल की बैरक में मौजूद अधिकारियों की आंख में आंसू आ गए। गीत गाने के बाद अफजल गुरु ने एक कप चाय और मांगी। लेकिन तब तक चायवाला जेल से बाहर जा चुका था। ऐसे में उसकी आखिरी इच्छा पूरी नहीं हो सकी। आखिर में उसने कुरान मांगी जो उसे मुहैया करा दी गई। तय समय पर उसे फंदे पर लटका दिया गया।

एक दिन के लिए बढ़ाई गई थी फांदी की डेट

अफजल गुरु को फांसी के वक्त देश के गृह मंत्री थे सुशील कुमार शिंदे। उनकी आत्मकथा का नाम है फाइव डिकेड्स इन पॉलिटिक्स। इसमें उन्होंने अफजल गुरु की फांसी के मुद्दे पर भी सिलसिलेवार ढंग से लिखा है। इसमें बताया गया है कि पहले अफजल गुरु को 8 फरवरी 2013 को ही फांसी दी जानी थी। हालांकि, तत्कालीन यूपीए सरकार को लगा कि अगर अफजल गुरु की फांसी की खबर फैली तो जम्मू-कश्मीर में तनाव बढ़ सकता है। कानून और व्यवस्था के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है, इसलिए अफजल को गुपचुप ढंग से फांसी देने का फैसला किया गया। तारीख भी एक दिन आगे खिसका दी गई। इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि अफजल गुरु की फांसी के बारे में मीडिया को कतई खबर न लगे। साथ ही साथ जम्मू-कश्मीर में गुपचुप ढंग से सुरक्षा पुख्ता कर ली गई, जिससे वहां हालात न बिगड़ें।

पुलिस अधिकारी ने दी थी अफजल गुरु को फांसी

शिंदे ने आत्मकथा में लिखा है कि पूरे मामले में गोपनीयता बनाए रखने के लिए 8 फरवरी 2013 की सुबह ही गृह मंत्रालय में उच्चस्तरीय बैठक बुलाई गई। इसमें तिहाड़ जेल की डीजी विमला मेहरा, जेलर सुनील गुप्ता और तत्कालीन गृह सचिव आरके सिंह भी मौजूद थे। इसमें शिंदे अधिकारियों से बार-बार पूछा कि क्या वे फांसी देने को लेकर आश्वस्त हैं, क्योंकि एक समस्या थी कि तिहाड़ जेल के पास कोई नियमित जल्लाद नहीं था। इसके बावजूद जेलर ने आश्वस्त किया कि सारा इंतजाम हो गया है। इस पर फांसी के लिए आगे बढ़ने का फैसला हुआ और नौ फरवरी को तिहाड़ जेल के ही एक अफसर ने अफजल गुरु को फांसी दी थी। अफजल गुरु को एक पुलिस के अधिकारी ने फांसी पर लटकाया था, जिसका नाम गुप्त रखा गया।

Tags: 13 December 2001Afzal Guru
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Vinod

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