USD-INR currency-fall: यूएस फेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती के बावजूद, भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के सामने लगातार करारी शिकस्त झेल रहा है और इसकी गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है। वैश्विक बाजारों में बढ़ती अनिश्चितताओं और निवेशकों की जोखिम से बचने की मजबूत भावना (Risk-Off Sentiment) के कारण भारतीय मुद्रा पर गहरा दबाव बना हुआ है। आयातकों की ओर से डॉलर की बढ़ती मांग और विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) द्वारा घरेलू शेयर बाजारों से लगातार पूंजी की निकासी ने इस दबाव को और बढ़ा दिया है।
इसी कारण, गुरुवार को अंतरबैंकिंग विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 17 पैसे लुढ़ककर 90.11 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर तक पहुंच गया। डॉलर इंडेक्स में हल्की गिरावट और घरेलू शेयर बाजार की शुरुआती बढ़त भी रुपये (USD-INR) को कोई राहत नहीं दे पाई है, जिससे यह साफ है कि बाज़ार में डॉलर की मांग अभी भी अत्यधिक मजबूत बनी हुई है।
डॉलर की मजबूती और जोखिम से बचने की धारणा
फॉरेक्स ट्रेडर्स के अनुसार, वैश्विक निवेशक तेजी से सुरक्षित निवेश विकल्प—जैसे अमेरिकी डॉलर और सोने—की तरफ रुख कर रहे हैं, जिससे बाज़ार में जोखिम से बचने की भावना (Risk-Off Sentiment) काफी मजबूत हो गई है। इस बढ़ते रुझान ने डॉलर की मांग को और बढ़ाया है, जिसने भारतीय करेंसी पर अतिरिक्त दबाव बना दिया है।
इसके साथ ही, घरेलू शेयर बाजारों में कुछ सत्रों से दिख रही (USD-INR) कमजोरी और एफआईआई द्वारा लगातार बिकवाली रुपये की गिरावट को और गहरा कर रही है। बुधवार को ही विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से 1,651.06 करोड़ रुपये की निकासी की, जो स्थानीय मुद्रा के लिए एक और नकारात्मक संकेतक है।
रुपये की शुरुआत ही कमजोर
गुरुवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 89.95 के स्तर पर खुला, लेकिन शुरुआती कारोबार में ही कमजोर होकर 90.11 तक पहुंच गया। यह स्तर पिछले बंद भाव (89.87) की तुलना में 17 पैसे की गिरावट को दर्शाता है और यह स्पष्ट करता है कि बाजार में डॉलर की मांग अभी भी अत्यधिक मजबूत बनी हुई है।
इस बीच, डॉलर इंडेक्स—जो दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर की मजबूती को मापता है—0.15% फिसलकर 98.63 पर रहा, बावजूद इसके भारतीय रुपये को इससे कोई राहत नहीं मिली।
कच्चे तेल और वैश्विक संकेत
अंतरराष्ट्रीय बाजार (USD-INR) में ब्रेंट क्रूड 0.22% की हल्की बढ़त के साथ 62.35 डॉलर प्रति बैरल पर रहा। सामान्यत: कच्चे तेल के दामों में स्थिरता रुपये के लिए सकारात्मक होती है, लेकिन इस समय ग्लोबल अनिश्चितताओं और कमजोर निवेश भावना की वजह से इसकी सकारात्मकता भी रुपये को संभालने में सक्षम नहीं दिख रही।
बाजार के जानकारों का कहना है कि निवेशक वर्तमान में अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता पर नजरें टिकाए हुए हैं। यदि इन चर्चाओं से सकारात्मक संकेत मिलते हैं, तो आने वाले दिनों में रुपये में कुछ मजबूती आ सकती है। लेकिन जब तक विदेशी निवेशकों की बिकवाली, डॉलर की मांग और वैश्विक अस्थिरता जारी है, तब तक भारतीय मुद्रा पर दबाव बना रहेगा।



