Vande Mataram News:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘वंदे मातरम्’ को सिर्फ एक गीत या भाव गीत नहीं, बल्कि राष्ट्र के लिए झकझोरने वाली प्रेरणा बताया है, जिसका भाव आज भी देश को जोड़ता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आज भी 15 अगस्त, 26 जनवरी और ‘हर घर तिरंगा’ जैसे अवसरों पर हर तरफ देशभक्ति और ‘वंदे मातरम्’ का भाव दिखाई देता है।
हालांकि, पीएम मोदी ने अतीत में इस पवित्र भावना के साथ हुए विश्वासघात पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू पर निशाना साधते हुए कहा कि जिन्ना द्वारा 1937 में ‘वंदे मातरम्’ का विरोध करने के बाद, नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा। मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों का करारा जवाब देने के बजाय, नेहरू ने उल्टा ‘वंदे मातरम्’ के उपयोग की समीक्षा शुरू करवा दी। प्रधानमंत्री ने बताया कि नेहरू ने यह कहते हुए समीक्षा करवाई कि गीत के बैकग्राउंड से मुस्लिम भड़केंगे। जिन्ना के विरोध के पांच दिन बाद ही नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को चिट्ठी लिखकर जिन्ना की भावनाओं से सहमति जताई थी। पीएम मोदी ने पूछा कि कौन सी ताकत थी जिसने महात्मा गांधी के विचारों पर भी भारी पड़कर ‘वंदे मातरम्’ जैसी पवित्र भावना को विवादों में घसीट दिया।
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वंदे मातरम् का मुद्दा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए एक बड़ी राजनीतिक उलझन बन गया है, जिसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एक चुनावी अवसर के रूप में देख रही है। संसद में ‘वंदे मातरम्’ पर बहस ऐसे समय हो रही है जब बंगाल में चुनावी माहौल गर्म है। ममता बनर्जी के लिए यह आगे कुआं और पीछे खाई जैसी स्थिति है; न तो वह खुले तौर पर इसका समर्थन कर सकती हैं और न ही विरोध। विरोध करने पर वह बंगाली समुदाय को नाराज़ कर सकती हैं, क्योंकि यह गीत बंकिम चंद्र चटर्जी की रचना है, वहीं पूर्ण समर्थन से उनका मुस्लिम वोट बैंक नाराज़ हो सकता है। यह आपदा BJP के लिए एक अवसर है, जो उन्हें ममता बनर्जी के स्टैंड पर हमला करने और ध्रुवीकरण की राजनीति करने का मौका दे रही है।
Mamata Banerjee is dragging Bengal into dangerous chaos.
In Beldanga, her supporters are fuelling communal tensions through Humayun Kabir’s blatant provocation, using a fabricated “Babri Masjid” stunt to inflame sentiments and secure votes.
In a region already prone to clashes,… pic.twitter.com/ZjkuhPohuu
— Vishnu Vardhan Reddy (@SVishnuReddy) December 6, 2025
बीजेपी का वार: बंकिम चंद्र चटर्जी का घर और वंशजों की नाराज़गी
BJP ने Vande Mataram के मुद्दे को केवल संसद तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि इसे बंकिम चंद्र चटर्जी की विरासत से जोड़कर बंगाल की ज़मीन पर भी उतार दिया है।
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बंकिम चंद्र चटर्जी के घर, जो अब कोलकाता में ‘साहित्य सम्राट स्मृति लाइब्रेरी’ है, के कथित बदहाल रखरखाव का मुद्दा BJP ने ज़ोर-शोर से उठाया है।
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वंदे मातरम् की रचना के 150 साल पूरे होने पर लाइब्रेरी का गेट बंद मिलने के बाद विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को बाहर से ही लौटना पड़ा था, जिस पर BJP ने जानबूझकर गेट बंद करने का आरोप लगाया।
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बंगाल BJP अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य ने इस उपेक्षा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर केंद्र सरकार से लाइब्रेरी का नियंत्रण लेने की मांग की है।
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बंकिम चंद्र चटर्जी के वंशज, सजल चटर्जी और सुमित्रा चटर्जी, ने भी राज्य सरकार पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए BJP का समर्थन किया है।
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टीएमसी ने इसका ठीकरा सीपीएम पर फोड़ा है, दावा किया कि लाइब्रेरी की प्रबंध समिति शुरू से ही सीपीएम की रही है।
ममता की सियासी उलझन: ‘वंदे मातरम्’ बनाम ‘जय हिंद’
ममता बनर्जी के लिए ‘Vande Mataram’ पर लिया गया कोई भी स्टैंड उनके मुस्लिम वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है।
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हाल ही में, राज्यसभा में ‘जय हिंद’ और ‘वंदे मातरम्’ के इस्तेमाल पर हिदायत दिए जाने पर ममता बनर्जी ने नाराजगी जाहिर की थी, लेकिन लेख में दावा किया गया है कि उनका यह गुस्सा ‘जय हिंद’ के साथ जुड़े होने के कारण आया, जिसे वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे के तौर पर देखती हैं।
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BJP नेता अमित मालवीय ने उनके इस स्टैंड को ‘राजनीतिक नौटंकी’ बताया है और आरोप लगाया है कि ममता बनर्जी मुस्लिम वोट बैंक के डर से खुले तौर पर ‘वंदे मातरम’ कहने से हिचकती हैं।
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‘Vande Mataram’ 1875 में संस्कृतनिष्ठ बांग्ला में लिखा गया था और 1950 में भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया था। इसका संबंध बंकिम चंद्र के उपन्यास ‘आनंदमठ’ से है।
बंगाल में मोर्चेबंदी: हुमायूं कबीर और ओवैसी का गठजोड़
ममता बनर्जी को सिर्फ BJP ही नहीं, बल्कि टीएमसी के अंदरूनी कलह और मुस्लिम वोटों के विभाजन की चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है।
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टीएमसी ने अपने विधायक हुमायूं कबीर को पार्टी से निलंबित कर दिया है, जिन्होंने बाबरी मस्जिद की नींव रखने का ऐलान किया था।
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हुमायूं कबीर ने अपनी एक नई पार्टी बनाने और AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी के साथ चुनावी गठबंधन करने का दावा किया है, जिससे ममता बनर्जी के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लग सकती है।
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अगर हुमायूं कबीर और ओवैसी मिलकर चुनाव लड़ते हैं, तो यह सीधे तौर पर टीएमसी को कमजोर करेगा और अप्रत्यक्ष रूप से BJP को लाभ पहुंचाएगा। हुमायूं कबीर ने 22 दिसंबर को अपनी नई पार्टी बनाकर पश्चिम बंगाल की 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है।
