दरकते पहाड़, पिघलती बर्फ, उत्तराखंड की 25 झीलें बनीं खतरे की घंटी

उत्तराखंड इस समय दोतरफा मौसमीय संकट का सामना कर रहा है। एक तरफ लगातार भारी बारिश ने भारी तबाही मचाई है, वहीं दूसरी तरफ तेजी से पिघलते ग्लेशियरों से बनी झीलों के कारण बाढ़ का खतरा और बढ़ गया है। वैज्ञानिकों की एक हालिया रिसर्च ने हालात को और भी चिंताजनक बताया है।

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Uttarakhand News : उत्तराखंड इस समय प्रकृति के दोहरे संकट से जूझ रहा है। एक ओर जहां मानसून ने कई हिस्सों में तबाही मचाई है, वहीं दूसरी ओर ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना राज्य सरकार और आम जनता के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है। लगातार हो रही मूसलाधार बारिश के चलते भूस्खलन और नदियों-नालों के उफान की घटनाएं बढ़ गई हैं।

मौसम विभाग ने गुरुवार को देहरादून, टिहरी, बागेश्वर और चंपावत जिलों के लिए येलो अलर्ट जारी किया है। भारी बारिश से पहाड़ी क्षेत्रों में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, और सरकार लोगों से अपील कर रही है कि वे नदी-नालों के पास जाने से बचें और सतर्क रहें।

जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही ग्लेशियर संकट की आशंका

बारिश के अलावा, एक और बड़ा खतरा हिमालयी ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से उत्पन्न हो रहा है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. मनीष मेहता और उनकी टीम ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। इस रिसर्च में खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ और ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं, जिससे कई नई ग्लेशियर झीलें बन रही हैं और पुरानी झीलों का आकार खतरनाक हद तक बढ़ रहा है।

25 झीलें गंभीर खतरे की स्थिति में

उत्तराखंड में फिलहाल लगभग 1266 ग्लेशियर झीलें मौजूद हैं, जिनकी निगरानी करना वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। इनमें से 426 झीलों का गहन अध्ययन किया गया, जिनमें 25 झीलें ऐसी पाई गई हैं जिन्हें बेहद खतरनाक श्रेणी में रखा गया है। ये झीलें भविष्य में टूट सकती हैं, जिससे अचानक बाढ़ जैसी विनाशकारी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। खासकर अलकनंदा घाटी में स्थिति और भी गंभीर है। यहां 226 झीलें मौजूद हैं, जिनमें से कई अस्थिर अवस्था में हैं। इन झीलों का आकार लगातार बढ़ता जा रहा है क्योंकि वे ग्लेशियरों के बेहद नजदीक स्थित हैं।

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दूसरी ओर, पिंडर घाटी में सबसे कम संख्या में झीलें पाई गई हैं और वहां कोई भी झील फिलहाल खतरे की स्थिति में नहीं है। तेजी से पिघलते ग्लेशियरों के कारण बनने वाली और फैलती हुई ये झीलें सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र के लिए खतरे की घंटी हैं। यदि इन झीलों में से कोई फटती है, तो उसके प्रभाव से निचले इलाकों में अचानक बाढ़ आ सकती है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान हो सकता है। सरकार और वैज्ञानिक संस्थान इस स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं, लेकिन हालात को काबू में लाने के लिए समय पर प्रभावी कदम उठाना जरूरी है, ताकि भविष्य की संभावित आपदाओं से लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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