दिल्ली में आखिरकार बुधवार को 80 दिनों के बाद दिल्ली वासियों को मेयर मिल ही गया। बड़े ही शांती में मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव तो हो गया लेकिन अब स्टैंडिंग कमेटी सदस्यों के चुनाव पर जमकर बवाल मच गया है। दरअसल स्टैंडिंग कमेटी दिल्ली नगर निगम की सबसे ताकतवर कमेटी है। वहीं ऐसे में दिल्ली नगर निगम में मेयर और डिप्टी मेयर के पास फैसले लेने की पॉवर काफी कम है। उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि लगभग सभी किस्म के आर्थिक और प्रशासनिक फैसले 18 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमेटी ही लेती है और उसके बाद उन्हें सदन में पास करवाने के लिए भेजा जाता है। लेकिन ऐसे मेंं स्टैंडिंग कमेटी काफी पॉवरफुल होती है और इसका चेयरमैन एक किस्म से एमसीडी का असली राजनीतिक हेड होता है।
स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव टला
वहीं अब दिल्ली नगर निगम में स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव अब शुक्रवार को होगा। भारी हंगामे के चलते आज दिल्ली नगर निगदम की कार्यवाही शुक्रवार सुबह 10 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई। इससे पहले आज मेयर ने घोषणा की थी कि जो सदस्य सदन में नहीं हैं, उनको बुला लिया जाए ताकि वोटिंग शुरू हो सके, मगर हंगानमे के कारण सदन को स्थगित करना पड़ा। आपको बता दें कि बुधावर को मेयर और पार्टी मेयर के चुनाव के बाद स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों के चुनाव को लेकर जमकर हंगामा देखने को मिला था। रात भर चली बैठक के दौरान पार्षदों के बीच मारपीट और धक्का-मुक्की की घटना हुई। सदन में पार्षदों ने बोतलें भी फैंकी।
स्टैंडिंग कमेटी सदस्यों के चुनाव के लिए जब वोटिंग हो रही थी तो बीजेपी ने इस बात पर आपत्ति जताई कि पार्षदों को वोटिंग के दौरान मोबाइल फोन क्यों ले जाने दिया जा रहा है? वोटिंग के दौरान शोर-शराबा होने पर मेयर ने कहा कृपया सब शांति से बैठिए वरना बाहर कर दिया जाएगा। बीजेपी लगातार नारेबाजी करती रही। बीजेपी पार्षदों ने नारेबाजी की ‘गुंडागर्दी बंद करो।’ इसके बाद बीजेपी पार्षद वेल में आ गए। बीजेपी के लगातार हंगामे के बाद मेयर ने उनकी यह मांग मान ली है कि वोटिंग के दौरान मोबाइल फोन ले जाने की इजाजत नहीं होगी। इसके बाद हंगामा बंद हुआ और बीजेपी पार्षद अपनी सीटों पर जाकर बैठ गए। हालांकि, इसके बाद भी हंगामा हुआ और सदन को आठ बार स्थगित करना पड़ा।
स्टैंडिंग कमेटी के 18 सदस्यों का चुनाव कैसे होते है
दिल्ली नगर निगम की इस स्टैंडिंग कमेटी के 18 सदस्यों का चुनाव दो तरीके से होता है। छह सदस्यों का चुनाव सबसे पहले सदन की बैठक में किया जाता हैं। यह वोटिंग सीक्रेट वोटिंग होती है, लेकिन आम वोटिंग से अलग है। इन सदस्यों का चुनाव राज्यसबा सदस्यों की तरह प्रफरेंशिल वोटिंग के आधार पर किया जाता है। यानी सभी पार्षदों को अपने उम्मीदवार को पसंदीदा क3म में प्रेफरेंस के तौर पर नंबर देने होते हैं। अगर पहले प्रेफरेंस के आधार पर चुनाव नहीं हो पाता है तो फिर दूसरे और तीसरे प्रेफरेंस की काउंटिंग आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर की जाती है। यानी यहां पर गणित अच्छा खासा पेचीदा हो जाता है।
वहीं आप पार्टी ने तो मेयर और डिप्टी मेयर कि रेस तो जीत ली लेकिन 6 सदस्यों में से 4 अपने उम्मीदवार को जिताने में खाफी मुश्किलों का सामने करने वाली है। एक तो उनके पास इन चार उम्मीदवार को जिताने के लिए पहले प्रिंस के वोट जरूरत से काफी कम है। दूसरी दिक्कत यहा आ रही है कि डिप्टी मेयर के चुनाव में आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दी है जिससे गणित और मुश्किल हो गया है । अब देखना है कि कैसे स्टैंडिंग का चुनाव हो पाएगा जिसको लेकर सदन हंगामे की भेंट चढ़ गया।