Delhi Vidhansabha Election: दिल्ली में चुनावी माहौल गर्म है, और हर पार्टी खुद को मजबूती से पेश करने में जुटी है। हालांकि, एक समय ऐसा था जब दिल्ली में कांग्रेस का ही दबदबा था। आइए दिल्ली के पहले विधानसभा चुनाव की दिलचस्प कहानी पर नजर डालते हैं।
पहला विधानसभा चुनाव और कांग्रेस का बोलबाला
दिल्ली विधानसभा का गठन 17 मार्च 1952 को पार्ट-सी राज्य सरकार अधिनियम-1951 के तहत हुआ। इसके बाद पहला चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की। उस समय दिल्ली में केवल 48 विधानसभा सीटें थीं। कांग्रेस ने इनमें से 36 सीटों पर कब्जा कर लिया। तब कुल 58.52% वोटरों ने अपने मत का इस्तेमाल किया, जिनमें से 52% वोट कांग्रेस के खाते में गए।
छह सीटों पर दो-दो विधायक
दिलचस्प बात यह थी कि छह सीटों पर दो-दो विधायक चुने गए। इनमें रीडिंग रोड, नरेला, और मेहरौली जैसी सीटें शामिल थीं। उदाहरण के तौर पर, रीडिंग रोड से जनसंघ के अमीन चंद और कांग्रेस के प्रफुल्ल रंजन दोनों जीते थे। ऐसा प्रयोग केवल पहले चुनाव में ही देखा गया।
चौधरी ब्रह्म प्रकाश बने पहले मुख्यमंत्री
पहले चुनाव में भारी जीत के बाद चौधरी ब्रह्म प्रकाश को दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, यह फैसला काफी अचानक हुआ। असल में, कांग्रेस पहले देशबंधु गुप्ता को सीएम बनाना चाहती थी, लेकिन उनके निधन के बाद नेहरू जी ने ब्रह्म प्रकाश को यह जिम्मेदारी दी। साधारण जीवन जीने वाले ब्रह्म प्रकाश जनता के बीच रहना पसंद करते थे।
पूर्ण राज्य का दर्जा अब भी सपना
चुनावों में अक्सर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की बात उठती है, लेकिन अब तक यह सपना पूरा नहीं हो सका। इस बार के चुनावों में भी यह एक बड़ा मुद्दा हो सकता है।