दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट में पूर्व सीजेआई बी.आर. गवई पर जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर के साथ मारपीट की घटना सामने आई है, जहां एक व्यक्ति ने उन्हें चप्पलों से पीटने की कोशिश की। यह वही राकेश किशोर हैं जिन्होंने अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में तत्कालीन CJI गवई की ओर जूता फेंकने का प्रयास किया था और बाद में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने उनकी वकालत पर रोक लगा दी थी।
कड़कड़डूमा कोर्ट में क्या हुआ?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, घटना कड़कड़डूमा कोर्ट परिसर के अंदर हुई, जहां एक शख्स भीड़ के बीच अचानक राकेश किशोर की ओर बढ़ा और उन्हें चप्पल से मारने लगा। वायरल वीडियो में दिखता है कि राकेश किशोर भी हाथ में फाइल लेकर पलटवार करते नजर आते हैं और दोनों के बीच हाथापाई होती है, जबकि आसपास मौजूद लोग बीच-बचाव की कोशिश करते दिखते हैं। इस दौरान राकेश “सनातन धर्म की जय हो” के नारे लगाते भी सुने गए। सुरक्षा कर्मियों ने बाद में हस्तक्षेप कर स्थिति संभाली; खबर लिखे जाने तक किसी पक्ष की ओर से औपचारिक एफआईआर की सूचना नहीं थी।
जूता फेंकने की पृष्ठभूमि और कार्रवाई
6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की कोर्ट नं. 1 में सुनवाई के दौरान 71 वर्षीय अधिवक्ता राकेश किशोर ने कथित तौर पर अपने स्पोर्ट्स शू उतारकर चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की ओर फेंकने की कोशिश की थी, लेकिन जूता बेंच तक पहुंचने से पहले ही गिर गया और सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें तुरंत काबू कर लिया। कोर्ट से बाहर ले जाए जाते समय उन्होंने “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे” के नारे लगाए और बाद में पुलिस पूछताछ में दावा किया कि वे खजुराहो मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा से जुड़े मामले में सीजेआई की टिप्पणी से आहत थे।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस घटना को न्यायालय की गरिमा के खिलाफ पाते हुए राकेश किशोर की वकालत पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी और उन्हें देश की किसी भी अदालत या प्राधिकरण में प्रैक्टिस करने से प्रतिबंधित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवमानना योग्य कृत्य बताया, हालांकि तत्कालीन CJI गवई ने व्यक्तिगत रूप से उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई न करने की पहल की थी।
न्यायपालिका पर हमला और ‘भीड़ न्याय’ की चिंता
कड़कड़डूमा में हुई ताज़ा मारपीट ने अदालत परिसरों की सुरक्षा और “भीड़ के हाथों सज़ा” जैसे ट्रेंड पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अदालतों में अनुशासन भंग करने वाली हर हरकत की निंदा तो की जा रही है, लेकिन साथ ही कई कानूनी विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि किसी भी आरोपी या दोषी के साथ हिंसा कर “चप्पल या जूते से पिटाई” करना न्याय व्यवस्था के प्रति समान रूप से असम्मानजनक संकेत है। कानूनविदों का मत है कि कोर्ट की अवमानना या प्रोफेशनल मिसकंडक्ट जैसे मामलों में सज़ा केवल विधि–सम्मत प्रक्रिया से ही दी जानी चाहिए, न कि गुस्साई भीड़ या व्यक्तिगत बदले की भावना के आधार पर।



