Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्यों को तीखा संदेश देते हुए कहा कि 2020 के आदेश के बावजूद देश के सभी पुलिस थानों में CCTV कैमरे नहीं लग पाए हैं, जो बेहद गंभीर स्थिति है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि हिरासत में हिंसा और मौतें सिस्टम पर एक दाग हैं, जिसे अब देश किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं करेगा।
पीठ ने कहा कि सरकारें अदालत के आदेशों का पालन करने में नाकाम साबित हुई हैं और इससे जांच प्रक्रिया तथा मानवाधिकार दोनों प्रभावित होते हैं।
केंद्र ने हलफनामा क्यों नहीं दिया?
सुनवाई के दौरान भावी CJI जस्टिस विक्रम नाथ ने केंद्र सरकार पर खास नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि केंद्र सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को हल्के में ले रहा है, क्योंकि इसने अब तक अनुपालन हलफनामा दाखिल ही नहीं किया।
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोई भी हिरासत में मौत को सही साबित नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी बताया कि केंद्र तीन सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करेगा।
राजस्थान में 8 महीनों में 11 मौतें
अदालत ने सितंबर में एक मीडिया रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया था, जिसमें बताया गया था कि 2025 के शुरुआती आठ महीनों में राजस्थान में पुलिस हिरासत में 11 लोगों की मौत हुई। इनमें से अधिकतर मामले उदयपुर संभाग के थे। अदालत ने याद दिलाया कि उसने 2018 में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए सभी पुलिस थानों में CCTV कैमरे लगाने का आदेश दिया था। इसके बाद दिसंबर 2020 में जांच एजेंसियों CBI, ED और NIA को भी कैमरे लगाने के निर्देश दिए गए थे।
सिर्फ 11 राज्यों ने किया अनुपालन
सुनवाई के दौरान बताया गया कि अब तक केवल 11 राज्यों ने ही अनुपालन हलफनामे दाखिल किए हैं।
अदालत ने मध्य प्रदेश की व्यवस्था की सराहना करते हुए कहा कि वहां हर थाना और चौकी जिला कंट्रोल रूम से जुड़े हुए हैं, जो एक उल्लेखनीय कदम है।
एमिकस क्यूरी सिद्धार्थ दवे ने बताया कि तीन केंद्रीय जांच एजेंसियों ने कैमरे लगा दिए हैं, लेकिन अन्य एजेंसियों ने अभी तक आदेशों का पालन नहीं किया है।
CCTV से जांच प्रभावित होगी? अदालत ने दिया जवाब
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि CCTV कैमरे जांच प्रक्रिया पर असर डाल सकते हैं, लेकिन अदालत ने कहा कि पुलिस हिरासत में सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। पीठ ने अमेरिका का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां कई जगह फुटेज की लाइव स्ट्रीमिंग होती है। अदालत ने यह भी कहा कि खुली जेलों की व्यवस्था भीड़भाड़ और हिंसा कम करने का एक बेहतर तरीका हो सकती है।
16 दिसंबर को अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तीन सप्ताह का समय दिया है जिन्होंने अभी तक अनुपालन हलफनामा दाखिल नहीं किया। अदालत ने चेतावनी दी कि अगर अगली तारीख तक जवाब नहीं मिला, तो संबंधित राज्यों के गृह विभाग के प्रधान सचिव को स्पष्टीकरण सहित अदालत में उपस्थित होना होगा।



