केंद्र सरकार मनरेगा में बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है। नई योजना के तहत ग्रामीण परिवारों को साल में 100 की जगह 125 दिन का गारंटीड रोजगार देने और योजना का नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोज़गार योजना’ (Pujya Bapu Gramin Rozgar Yojana – PBGRY) रखने का प्रस्ताव कैबिनेट स्तर पर मंज़ूरी की ओर बढ़ चुका है।
क्या बदलेगा मनरेगा में?
रोज़गार की गारंटी 100 से 125 दिन
अब तक मनरेगा के तहत हर ग्रामीण परिवार को साल में कम से कम 100 दिन का अकुशल मजदूरी वाला काम कानूनी रूप से गारंटी था। प्रस्ताव के मुताबिक यह सीमा 25 दिन बढ़ाकर 125 दिन की जाएगी, यानी जो परिवार पूरे साल काम मांगेंगे, उन्हें सिद्धांततः 25% अधिक रोजगार का अधिकार मिलेगा।योजना का नया नाम
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) का नया नाम ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोज़गार योजना’ या ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना’ रखा जाएगा। इसके लिए मूल कानून में संशोधन वाला बिल लाया जा रहा है, क्योंकि मौजूदा नाम खुद अधिनियम के शीर्षक में दर्ज है।मजदूरी में संभावित बढ़ोतरी
रिपोर्टों के अनुसार, प्रस्तावित पैकेज में न्यूनतम मजदूरी को भी लगभग 240 रुपये प्रतिदिन तक संशोधित करने की बात शामिल है, ताकि बढ़े हुए दिनों के साथ रोज़ाना की आय भी कुछ बढ़ सके।
वित्त और कानूनी प्रक्रिया
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 2029–30 तक के लिए मनरेगा/नई योजना को जारी रखने हेतु लगभग 5.23 लाख करोड़ रुपये के पाँच वर्षीय आउटले का प्रस्ताव Expenditure Finance Committee को भेजा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 125 दिन गारंटी और बढ़ी मजदूरी के लिए सालाना बजट आवंटन को भी बढ़ाकर करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये तक ले जाने पर विचार है।
नाम बदलने और 125 दिन की कानूनी गारंटी के लिए संसद में संशोधन विधेयक पारित करना ज़रूरी होगा; कैबिनेट स्तर पर सिद्धांततः सहमति बन चुकी है।
ग्रामीण मजदूरों पर क्या असर?
सिद्धांततः गारंटीड 25 अतिरिक्त काम के दिनों का मतलब है कि पूरा 125 दिन काम मिलने पर परिवार की सालाना मजदूरी आय बढ़ेगी और विशेषकर सूखा/कृषि संकट वाले क्षेत्रों में सामाजिक सुरक्षा मजबूत होगी।
लेकिन व्यवहार में, 2024–25 में प्रति परिवार औसत रोजगार सिर्फ करीब 50 दिन के आसपास रहा, यानी कानूनी 100 दिन भी पूरी तरह नहीं मिल पाए। इसलिए ज़मीन पर वास्तविक लाभ इस बात पर निर्भर करेगा कि
राज्य और केंद्र पर्याप्त बजट और टाइमली फंड रिलीज़ दें,
डिमांड पर काम उपलब्ध हो,
और पेमेंट में पिछला बकाया व देरी कम की जाए।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर सिर्फ नाम बदले और गारंटीड दिनों की संख्या कागज़ पर बढ़े लेकिन फंडिंग, समय पर भुगतान, सामाजिक ऑडिट, जॉब कार्ड–DBT और डिजिटल हाज़िरी की दिक्कतें दूर न हों, तो ग्रामीण गरीबों तक इसका पूरा फायदा नहीं पहुंचेगा।



