बिहार की नीतीश सरकार में मंत्री अशोक चौधरी की पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर (लेक्चरर) के तौर पर नियुक्ति उनके शैक्षणिक प्रमाण पत्रों में तकनीकी कमियों और नाम की विसंगतियों के चलते अटक गई है। शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने साफ किया है कि मामला बिहार स्टेट यूनिवर्सिटी सर्विस कमीशन (BSUSC) को दोबारा जांच के लिए भेजा गया है।
कैसे शुरू हुआ पूरा मामला?
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BSUSC ने 2025 में पॉलिटिकल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर के 280 पदों के लिए विज्ञापन निकाला था। चयन प्रक्रिया के बाद 274 उम्मीदवारों की सूची बनी, जिसमें ग्रामीण कार्य मंत्री डॉ. अशोक चौधरी भी शामिल थे।
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आयोग की अनुशंसा के बाद अशोक चौधरी को भी पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी (PPU) आवंटित कर दिया गया, जहां कुल 18 उम्मीदवारों की नियुक्ति होनी थी। बाकी सभी को नियुक्ति पत्र मिल गए, लेकिन अशोक चौधरी की नियुक्ति पर विभाग ने अंतिम समय पर रोक लगा दी।
तकनीकी कमियां और नाम की गड़बड़ी क्या है?
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मीडिया रिपोर्टों और शिक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार,
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अशोक चौधरी के शैक्षणिक प्रमाण पत्रों (डिग्री आदि) में उनका नाम “Ashok Kumar” / “अशोक कुमार” दर्ज है,
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जबकि चुनावी हलफनामे, सरकारी रेकॉर्ड और राजनीतिक दस्तावेज़ों में नाम “Ashok Choudhary / अशोक चौधरी” है।
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दस्तावेज़ सत्यापन के दौरान नाम के दो अलग‑अलग रूप और कुछ प्रमाण पत्रों (खासकर PhD से जुड़े कागज़) में कमी/स्पष्टीकरण की ज़रूरत पाई गई, जिसे विभाग ने “गंभीर तकनीकी विसंगति” माना।
शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने क्या कहा?
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सुनील कुमार ने पटना में मीडिया से कहा कि विभाग ने BSUSC की अनुशंसा को “विचारार्थ वापस भेज दिया है” और आयोग से इस केस पर विस्तृत राय मांगी गई है।
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उनके मुताबिक,
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नियुक्ति का अंतिम अधिकार विश्वविद्यालय सेवा आयोग और विश्वविद्यालयों के पास है,
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शिक्षा विभाग केवल दस्तावेज़ों की विभागीय जांच करता है और कमियां मिलने पर मामला आयोग को लौटा सकता है।
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मंत्री ने यह भी कहा कि “जब तक सभी विसंगतियां दूर नहीं हो जातीं, तब तक नियुक्ति प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ेगी।”
विपक्ष के सवाल और राजनीतिक विवाद
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कांग्रेस, RJD और अन्य विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि
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या तो चयन प्रक्रिया शुरू से ही पक्षपातपूर्ण थी,
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या अब सरकार खुद अपने मंत्री की डिग्री और नाम पर संदेह जता रही है, जो प्रणाली पर सवाल खड़ा करता है।
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प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी समेत कई नेताओं ने पूछा कि अगर नाम/डिग्री में गड़बड़ी थी, तो BSUSC ने इंटरव्यू के लिए बुलाया और नंबर देकर अनुशंसा कैसे कर दी।
आगे क्या हो सकता है?
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BSUSC अब दोबारा दस्तावेज़ों की जांच करके सरकार को अपनी राय भेजेगा—
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या तो स्पष्टीकरण और वैधता के आधार पर अशोक चौधरी की नियुक्ति हरी झंडी मिलेगी,
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या विसंगतियां बरक़रार रहने पर आयोग उनकी अनुशंसा वापस ले सकता है।
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जब तक आयोग की रिपोर्ट नहीं आती, तब तक पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी में उनकी लेक्चरर/असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति रोक पर रहेगी।
