DGCA ने इंडिगो एयरलाइन के अकाउंटेबल मैनेजर (सीईओ पीटर एल्बर्स) को शो-कॉज नोटिस जारी कर 24 घंटे के भीतर जवाब माँगा है कि हाल की बड़े पैमाने पर फ्लाइट रद्दीकरण, देरी और यात्रियों को सुविधाएं न देने के लिए उनके खिलाफ एयरक्राफ्ट रूल्स और सिविल एविएशन रिक्वायरमेंट्स के तहत कार्रवाई क्यों न की जाए।
नोटिस क्यों जारी हुआ?
पिछले कुछ दिनों में इंडिगो की सैकड़ों उड़ानें नए Flight Duty Time Limitation (FDTL) नियमों के लागू होने के बाद रद्द या बुरी तरह लेट हुईं, जिससे देशभर में हज़ारों यात्री एयरपोर्ट पर फंसे रहे। DGCA के मुताबिक यह पूरा ऑपरेशनल संकट इस बात का संकेत है कि एयरलाइन ने नए क्रू ड्यूटी और रेस्ट नॉर्म्स के लिए पर्याप्त प्लानिंग नहीं की, पायलट–क्रू की उपलब्धता का सही अनुमान नहीं लगाया और वैकल्पिक इंतज़ाम समय से नहीं किए।

नोटिस में कहा गया है कि इंडिगो ने न केवल अपने ऑपरेशन प्लानिंग और रिसोर्स मैनेजमेंट में चूक की, बल्कि कई मामलों में यात्रियों को सिविल एविएशन नियमों के तहत अनिवार्य सुविधाएं – जैसे समय पर जानकारी, रीरूटिंग, होटल/भोजन और रिफंड – भी पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं कराईं।
DGCA ने क्या चेतावनी दी?
DGCA ने अकाउंटेबल मैनेजर को लिखा है कि नोटिस प्राप्त होने के 24 घंटे के भीतर यह बताएं कि उनके खिलाफ Aircraft Rules, 1937 के Rule 42A और संबंधित Civil Aviation Requirements (CAR) के प्रावधानों के तहत प्रवर्तन कार्रवाई (enforcement action) क्यों न शुरू की जाए। नोटिस में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि तय समय में जवाब न आने पर मामला ex parte (एकतरफा) आधार पर निपटाया जाएगा और कड़ा दंड लगाया जा सकता है।
संभावित कार्रवाई में आर्थिक जुर्माने, शेड्यूल/क्षमता में कटौती, या ऑपरेशंस पर अन्य नियामकीय पाबंदियाँ शामिल हो सकती हैं, जिन्हें DGCA ने “उचित प्रवर्तन कार्रवाई” कहा है।
सरकार और नियामक की समानांतर सख्ती
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने अलग से इंडिगो को सभी रद्द/प्रभावित उड़ानों के बकाया रिफंड 7 दिसंबर शाम 8 बजे तक पूरा करने और प्रभावित यात्रियों से री–शेड्यूलिंग फीस न लेने का निर्देश दिया है। किरायों में अचानक उछाल रोकने के लिए सरकार ने एयरफेयर पर अस्थायी कैप भी लगाया है, ताकि संकट का फायदा उठाकर अन्य एयरलाइंस मनमाना किराया न वसूलें।
DGCA ने साथ‑साथ चार सदस्यीय समिति बनाकर पूरे प्रकरण की 15 दिन में विस्तृत जांच रिपोर्ट तलब की है, ताकि आगे की सख्त नियामकीय कार्रवाई और सिस्टम सुधार के उपाय तय किए जा सकें।