गिग इकोनॉमी के डिलीवरी बॉय सर्दियों में ठंडी रातों में भी 10 मिनट डिलीवरी के दबाव में सड़कों पर दौड़ते हैं, जहां ₹20-30 के छोटे ऑर्डर के लिए जान का जोखिम उठाते हैं। हालिया हड़तालों और एक्सीडेंट्स ने उनकी कठिन जिंदगी को उजागर किया है।
सर्दियों में जोखिम क्यों बढ़ जाते हैं?
सर्दी में कोहरा, फिसलन भरी सड़कें और कम विजिबिलिटी डिलीवरी बॉय के लिए घातक साबित होती हैं। दिल्ली-NCR, मुंबई जैसे शहरों में 5-10 डिग्री तापमान में बाइक चलाते हुए वे हाइपरथर्मिया, हाथ-पैर सुन्न होने और एक्सीडेंट का शिकार बनते हैं। 10 मिनट डिलीवरी का टारगेट पूरा न करने पर पेमेंट कट जाता है।
कम आय, ज्यादा मेहनत का बोझ
एक औसत डिलीवरी बॉय दिन में 12-14 घंटे काम करता है, लेकिन नेट इनकम ₹500-800 रहती है। ₹20 के कोल्ड ड्रिंक ऑर्डर के लिए 5-7 किमी दौड़ना पड़ता है। इंसेंटिव खत्म होने पर प्रति ऑर्डर ₹15-25। कोई PF, ESIC या ग्रेच्युटी नहीं।
सुरक्षा के नाम पर लापरवाही
प्लेटफॉर्म्स हेलमेट, जैकेट देते हैं, लेकिन इंश्योरेंस कवर ₹1-2 लाख तक सीमित। रोड एक्सीडेंट में 70% मामलों में परिवार को पूरी मदद नहीं मिलती। लेट डिलीवरी पर रेटिंग गिरने से काम कम होता है।
हड़ताल और मांगें
गिग वर्कर्स यूनियन ने न्यूनतम ₹30,000 मासिक वेतन, 20 मिनट डिलीवरी टाइम, ₹10 लाख एक्सीडेंट कवर और ओवरटाइम पे की मांग की। दिल्ली-मुंबई में हड़ताल से डिलीवरी प्रभावित।
आगे की राह
लेबर कोड 2020 गिग वर्कर्स को मान्यता देता है, लेकिन लागू नहीं। सरकार न्यूनतम वेज, इंश्योरेंस अनिवार्य करने पर विचार कर रही।



