दिल्ली–NCR की जहरीली हवा सीधा फेफड़ों पर हमला कर रही है और AIIMS समेत शहर के बड़े अस्पतालों के श्वास रोग OPD मरीजों से खचाखच भर गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि PM2.5 और दूसरी गैसें सिर्फ खांसी–दमा नहीं बढ़ा रहीं बल्कि बच्चों के फेफड़ों की ग्रोथ रोकने से लेकर पुराने मरीजों को ICU और वेंटिलेटर तक पहुंचा रही हैं।
दिल्ली की हवा फेफड़ों के साथ क्या कर रही है?
AIIMS के फेफड़ा रोग विभाग प्रमुख डॉ. अनंत मोहन के अनुसार, पिछले 2–3 हफ्तों में OPD और इमरजेंसी में सांस की तकलीफ वाले मरीजों की संख्या 30–35% तक बढ़ गई है। अस्थमा, COPD, ब्रॉन्काइटिस और दूसरी पुरानी बीमारियों वाले कई मरीज तेज़ी से बिगड़ रहे हैं, कई को अस्पताल में भर्ती और कुछ को वेंटिलेटर सपोर्ट देना पड़ा है।
डॉक्टरों का कहना है कि यह अब सिर्फ मौसमी खांसी–जुकाम नहीं, बल्कि “पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी” है, जहाँ हर सर्दी में नए मरीज बन रहे हैं और पुराने मरीजों की बेसलाइन हालत पहले से खराब हो चुकी है।
प्रदूषित हवा फेफड़ों पर कैसे हमला करती है?
PM2.5 जैसे सूक्ष्म कण 2.5 माइक्रोन से छोटे होते हैं, जो नाक–गले की फिल्टरिंग से बचकर सीधे फेफड़ों के सबसे गहरे हिस्से (एल्वियोली) तक पहुँच जाते हैं, वहाँ जमा होकर सूजन (inflammation), ब्रॉन्को–कंस्ट्रिक्शन और समय के साथ फेफड़ों की कार्यक्षमता कम करते हैं।
लंबे समय तक PM2.5, NO2, SO2 और ओज़ोन के संपर्क में रहने से:
FEV1, FVC जैसे lung function टेस्ट के मान घटते हैं, यानी फेफड़े हवा भरने–निकालने की क्षमता खोने लगते हैं।
बच्चों में फेफड़ों की ग्रोथ रुक सकती है, दमा का खतरा बढ़ता है; वयस्कों में COPD, फाइब्रोसिस, बार–बार ब्रॉन्काइटिस और निमोनिया जैसी स्थितियाँ बढ़ जाती हैं।
AIIMS और अन्य स्टडीज़ के अनुसार, यह सूजन सिर्फ फेफड़ों तक नहीं रहती, बल्कि ब्लड के ज़रिए पूरे शरीर में “systemic inflammation” फैला सकती है, जिससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक, जोड़ों की तकलीफ और गर्भावस्था की जटिलताएँ भी बढ़ती हैं।
किन लोगों को सबसे ज़्यादा खतरा है?
अस्थमा, COPD, इंटरस्टिशियल लंग डिज़ीज, TB–के बाद वाले मरीज
बुजुर्ग, छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाएँ
हार्ट डिज़ीज, डायबिटीज़, हाई BP, मोटापे से ग्रस्त लोग
बाहर काम करने वाले मजदूर, ट्रैफिक पुलिस, डिलीवरी वर्कर, ड्राइवर आदि
AIIMS की एडवाइजरी साफ कहती है कि ऐसे हाई–रिस्क लोगों में लक्षण हल्के हों तब भी उन्हें नजरअंदाज़ नहीं करना चाहिए; सांस फूलना, सीने में जकड़न, लगातार खांसी, घरघराहट या खून वाली खांसी जैसे संकेत मिलते ही डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
बचाव कैसे करें – प्रैक्टिकल कदम
बाहर निकलने के समय और तरीका बदलें
AQI रोज़ चेक करें; 300 से ऊपर होने पर बेवजह बाहर न निकलें और 400+ पर सिर्फ ज़रूरी काम के लिए, वह भी कम से कम समय के लिए बाहर जाएँ।
सुबह–शाम की वॉक या आउटडोर एक्सरसाइज बंद या इनडोर करें, क्योंकि इन समयों पर स्मॉग सबसे घना होता है।
सही मास्क पहनें
कपड़े या सर्जिकल मास्क PM2.5 से सुरक्षा नहीं दे पाते; बाहर निकलते समय N95 या N99 (या भरोसेमंद KN95/FFP2) मास्क पहनना बेहतर है।
मास्क नाक से ठुड्डी तक टाइट फिट हो, साइड से गैप न रहे; गीला/ढीला होने पर बदल दें।
घर के अंदर की हवा सुधारें
खिड़कियाँ–दरवाज़े स्मॉग पीक टाइम (सुबह–शाम) पर बंद रखें; अपेक्षाकृत बेहतर AQI में थोड़ी देर वेंटिलेशन करें।
HEPA फ़िल्टर वाला एयर प्यूरिफायर बजट में हो तो बेडरूम व ज़्यादा उपयोग वाले कमरों में लगाए; इससे घर के अंदर PM2.5 का स्तर काफी हद तक घटाया जा सकता है।
फेफड़ों को मज़बूत और इन्फेक्शन–फ्री रखें
स्मोकिंग या पैसिव स्मोक से पूरी तरह बचें; धूप, अगरबत्ती, चूल्हा–किचन के धुएँ से भी सावधानी रखें।
पर्याप्त पानी पिएँ, भाप लेना, गरम तरल (सूप, काढ़ा आदि) लेने से एयरवे क्लियर रखने में मदद मिलती है, लेकिन ये प्रदूषण का विकल्प नहीं, सिर्फ सपोर्टिव उपाय हैं।
फ्लू और निमोनिया के वैक्सीन के बारे में डॉक्टर से बात करें, खासकर बुजुर्ग और श्वास रोगियों के लिए।
कब तुरंत डॉक्टर के पास जाएँ?
सांस लेने में अचानक तकलीफ, बोलते–चलते दम फूलना
सीने में दर्द या भारीपन, तेज़ घरघराहट
ऑक्सीजन लेवल का बार–बार 94% से नीचे जाना (पल्स ऑक्सीमीटर से)
ऐसी स्थिति में देर न करें, तुरंत इमरजेंसी या पल्मनोलॉजिस्ट के पास जाएँ।



