Knight Frank Ghost Malls India: नाइट फ्रैंक की नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत के लगभग 20% मॉल अब ‘घोस्ट मॉल’ बन चुके हैं, यानी या तो लगभग खाली हैं या पूरी तरह निष्क्रिय हो चुके हैं। 32 शहरों में सर्वे किए गए 365 शॉपिंग सेंटरों में से 74 मॉल इस श्रेणी में आते हैं, जबकि कुल मिलाकर देखा जाए तो देश में हर पाँच में से लगभग एक मॉल या तो बंद हो चुका है या व्यावहारिक रूप से मृतप्राय है।
रिपोर्ट क्या कहती है?
नाइट फ्रैंक इंडिया की फ्लैगशिप स्टडी ‘Think India, Think Retail 2025 – Value Capture: Unlocking Potential’ ने देश के 32 शहरों में 134 मिलियन वर्गफुट रिटेल स्पेस वाले 365 शॉपिंग सेंटरों का विश्लेषण किया।
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इनमें से 74 मॉल ‘घोस्ट मॉल’ पाए गए, यानी जिनमें 40–50% से अधिक दुकानें खाली हैं, फुटफॉल बेहद कम है और कई जगह कई फ्लोर पूरी तरह बंद पड़े हैं।
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इन घोस्ट मॉल्स का कुल रेंटल पोटेंशियल लगभग 357 करोड़ रुपये सालाना बताया गया है, जो फिलहाल लगभग बेकार पड़ा है।
रिपोर्ट के मुताबिक समग्र रूप से रिटेल वाकेंसी 15.4% है, लेकिन ग्रेड–ए (उच्च गुणवत्ता) वाले मॉल में खालीपन सिर्फ करीब 5.7% है; असली समस्या कमज़ोर लोकेशन, पुरानी इमारतों और खराब प्लानिंग वाले मॉल्स में है।
इतने मॉल ‘घोस्ट’ क्यों बन गए?
विश्लेषण में कई कारण सामने आए हैं:
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कई शहरों में बिना मांग का आकलन किए एक साथ बहुत सारे मॉल बना दिए गए, जिससे किरायेदार (ब्रांड) बंट गए और सभी मॉल भर नहीं पाए।
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कई पुराने मॉल ने समय पर इन्फ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड नहीं किया, पार्किंग, फूड कोर्ट, एंटरटेनमेंट ज़ोन और डिजिटल अनुभव जैसे तत्व नहीं जोड़े, जबकि ग्राहक नई, बेहतर सुविधाओं वाले मॉल की तरफ खिसक गए।
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कमजोर एंकर ब्रांड (बड़ी रिटेल चेन, मल्टीप्लेक्स) न होने की वजह से मॉल में लोगों का आना कम हुआ और छोटी दुकानों ने भी लीज़ छोड़ दी।
कोविड के बाद ई-कॉमर्स, क्विक कॉमर्स और हाई स्ट्रीट की वापसी ने भी औसत दर्जे के मॉल्स पर दबाव बढ़ाया, जबकि चुनिंदा बड़े और अच्छी लोकेशन वाले मॉल और मजबूत हो गए।
आगे क्या होगा: बंद होंगे या नए रूप में लौटेंगे?
रिपोर्ट सिर्फ संकट नहीं, संभावना भी दिखाती है।
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नाइट फ्रैंक का अनुमान है कि इन घोस्ट मॉल्स को अगर सही तरह से रीडेवलप या रिपर्पज़ (जैसे ऑफिस, को-वर्किंग, हॉस्पिटल, एजुकेशन, होटल, वेयरहाउस, एक्सपीरियंस सेंटर) किया जाए तो 357 करोड़ रुपये से ज्यादा का सालाना किराया और हजारों नौकरियाँ पैदा हो सकती हैं।
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कई टियर–2 शहरों (जैसे मैसूर, वडोदरा, विजयवाड़ा) में उच्च गुणवत्ता वाले मॉल की डिमांड बढ़ रही है और वहाँ वाकेंसी बहुत कम (2–5%) है, यानी जहां प्लानिंग और लोकेशन सही है, वहां रिटेल रियल एस्टेट अभी भी मजबूत बिज़नेस है।
रियल एस्टेट विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत में मॉल सेक्टर “क्लीनअप और कंसॉलिडेशन” के दौर से गुजर रहा है – औसत और खराब मॉल धीरे–धीरे हटेंगे या दूसरे उपयोग में बदलेंगे, जबकि कम संख्या में लेकिन बेहतर डिज़ाइन, लोकेशन और ब्रांड–मिक्स वाले मॉल भविष्य में और ज्यादा मजबूत होकर उभरेंगे।
