Muslim MPs on Vande Mataram: वंदे मातरम पर मुस्लिम सांसदों ने संसद में क्या क्या कहा?

Muslim MPs on Vande Mataram: लोकसभा में वंदे मातरम् के 150 वर्ष पर हुई विशेष चर्चा के दौरान कई मुस्लिम सांसदों ने खुलकर अपनी राय रखी।

Muslim MPs on Vande Mataram: लोकसभा में वंदे मातरम् के 150 वर्ष पर हुई विशेष चर्चा के दौरान कई मुस्लिम सांसदों ने खुलकर अपनी राय रखी। किसी ने इसे आज़ादी की लड़ाई का नारा मानते हुए सम्मान देने की बात कही, तो किसी ने साफ कहा कि इसे किसी पर थोपा नहीं जा सकता और न ही देशभक्ति की कसौटी बनाया जा सकता है।​

असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM, हैदराबाद)

ओवैसी ने कहा कि भारतीय संविधान हर नागरिक को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और पूजा की पूरी स्वतंत्रता देता है, इसलिए किसी को किसी देवी की पूजा या कोई गीत गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।​​

उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् आज़ादी की लड़ाई का महत्वपूर्ण प्रतीक रहा है, लेकिन “Patriotism cannot be forced” और न ही किसी एक गीत से किसी की वफादारी नापी जा सकती; सच्ची देशभक्ति नागरिकों के अधिकारों और संविधान की रक्षा करने में है।​

आगा सैयद रुहुल्लाह मेहदी (NC, श्रीनगर)

नेशनल कॉन्फ़्रेंस के सांसद आगा रुहुल्लाह मेहदी ने कहा कि एक मुसलमान के तौर पर वे वंदे मातरम् नहीं गा सकते, क्योंकि इसकी कुछ पंक्तियाँ उनकी धार्मिक मान्यताओं से टकराती हैं, लेकिन यह “देशभक्ति की कमी नहीं, धार्मिक बाध्यता” का मामला है।​

उनका बयान था: “जो गाना चाहें, वंदे मातरम् ज़रूर गाएँ, लेकिन हमें मजबूर न करें।” उन्होंने कहा कि असली आज़ादी वही है जहाँ हिंदू हिंदू के तौर पर, मुसलमान मुसलमान के तौर पर और सिख सिख के तौर पर अपनी पहचान के साथ जी सके; संविधान की गारंटी को वफादारी की कसौटी नहीं बनाया जाना चाहिए।​​

जब उन्होंने गाना न गाने की बात दोहराई, तो सदन में कुछ सीटों से “पाकिस्तान जाओ” जैसी हूटिंग भी सुनाई दी, जिसका उन्होंने विरोध करते हुए कहा कि भारतीय मुसलमानों ने इस देश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी है और आज भी उतने ही प्रतिबद्ध हैं।​

मुस्लिम सांसदों की मुख्य बातें तीन बिंदुओं में दिखीं:

वंदे मातरम् का इतिहास और योगदान स्वीकार है, लेकिन किसी नागरिक को इसे गाने के लिए बाध्य करना संविधान की भावना के खिलाफ है।​

गीत की कुछ पंक्तियाँ कुछ मुसलमानों के लिए धार्मिक रूप से स्वीकार्य नहीं हैं; इस धार्मिक आपत्ति को “देशद्रोह” या “कमतर देशभक्ति” से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।​​

देशभक्ति को व्यवहार, क़ानून का सम्मान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा से आँका जाना चाहिए, किसी नारे या गीत को ‘लॉयल्टी टेस्ट’ बनाकर नहीं।

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