EV Policy 2.0: क्या है EV पॉलिसी 2.0? क्या वाकई सस्ती होंगी इलेक्ट्रिक कारें?

EV Policy 2.0: इस पॉलिसी के तहत चुनिंदा ईवी पर इम्पोर्ट ड्यूटी 110% से घटाकर 15% की जा रही है, लेकिन शर्तें सख्त हैं और इसका सीधा असर सिर्फ प्रीमियम इलेक्ट्रिक कारों पर पड़ेगा।​

EV Policy

EV Policy 2.0: EV पॉलिसी 2.0 (नई EV पॉलिसी / EV Policy 2025) मूल रूप से केंद्र सरकार की नई राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी है, जिसका लक्ष्य भारत को इलेक्ट्रिक कार मैन्युफैक्चरिंग का ग्लोबल हब बनाना और बड़ी विदेशी कंपनियों को यहां प्लांट लगाने के लिए आकर्षित करना है। इस पॉलिसी के तहत चुनिंदा ईवी पर इम्पोर्ट ड्यूटी 110% से घटाकर 15% की जा रही है, लेकिन शर्तें सख्त हैं और इसका सीधा असर सिर्फ प्रीमियम इलेक्ट्रिक कारों पर पड़ेगा।​

क्या है EV पॉलिसी 2.0?

नई EV पॉलिसी को आधिकारिक रूप से “Scheme to Promote Manufacturing of Electric Passenger Cars in India (SPMEPCI)” के रूप में नोटिफाई किया गया है, जिसे आम भाषा में EV पॉलिसी 2.0 या EV Policy 2025 कहा जा रहा है। इसके मुख्य पॉइंट:​

इम्पोर्ट ड्यूटी में भारी कटौती

अभी सामान्य तौर पर आयातित इलेक्ट्रिक कारों पर 70–110% तक कस्टम ड्यूटी लगती थी।

नई पॉलिसी के तहत जिन कंपनियों को मंजूरी मिलेगी, वे 35,000 डॉलर (लगभग 30 लाख रुपये) से ऊपर कीमत वाली इलेक्ट्रिक कारें 15% कस्टम ड्यूटी पर आयात कर सकेंगी।​

यह रियायत अधिकतम 5 साल के लिए और सालाना 8,000 कार तक सीमित रहेगी; 8,000 की लिमिट कुल है, हर कंपनी के लिए अलग नहीं।​

₹4,150 करोड़ का अनिवार्य निवेश

किसी भी ग्लोबल EV कंपनी को इस स्कीम का लाभ लेने के लिए कम से कम 4,150 करोड़ रुपये (लगभग 500 मिलियन USD) निवेश का वादा करना होगा और 3 साल के भीतर भारत में मैन्युफैक्चरिंग/असेंबली शुरू करनी होगी।​

तीसरे साल तक लोकल वैल्यू एडिशन 25% और पांचवें साल तक 50% तक ले जाना अनिवार्य रखा गया है।​

लोकल मैन्युफैक्चरिंग व चार्जिंग इंफ्रा, मशीनरी, उपकरण और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में किए गए खर्च को निवेश का हिस्सा माना जाएगा (चार्जिंग पर अधिकतम 5% तक)।​

सरकार का लक्ष्य है कि कंपनियां सिर्फ कार बेचने नहीं, बल्कि लंबे समय के लिए यहां प्रोडक्शन बेस बनाएँ।​

क्या गाड़ियों की कीमत कम होगी?

यह सबसे अहम सवाल है, और जवाब थोड़ा “हां भी, नहीं भी” वाला है।

प्रीमियम इम्पोर्टेड EVs पर

जिन गाड़ियों की CIF कीमत 35,000 डॉलर से ऊपर है (टेस्ला जैसी प्रीमियम EVs), उन पर 110% की जगह 15% ड्यूटी लगेगी, इसलिए ऐसे मॉडल्स की इंडियन मार्केट में एक्स-शोरूम कीमत पहले से कम हो सकती है।​

लेकिन ये गाड़ियां पहले से ही 40–70 लाख रुपये+ सेगमेंट में होंगी, यानी मास-मार्केट ग्राहक के लिए यह सीधी रिलीफ नहीं है।

मिड–रेंज और मास–मार्केट EVs पर

नई पॉलिसी सीधे तौर पर 15–20 लाख रुपये वाली भारत में बनने वाली EVs पर ड्यूटी कटौती नहीं देती; यहां पहले से ही 5% GST, FAME जैसी स्कीमों के जरिए सपोर्ट है।​

हां, अगर बड़ी कंपनियां भारत में प्लांट लगाती हैं, लोकल कंपोनेंट और बैटरी मैन्युफैक्चरिंग बढ़ती है, तो 2–4 साल की अवधि में कॉस्ट कम होने से इंडियन‑मेड EVs की कीमतें धीरे‑धीरे सॉफ्ट हो सकती हैं। यह असर तुरंत नहीं, बल्कि मीडियम टर्म में दिखेगा।​

टू–व्हीलर, थ्री–व्हीलर और छोटी कारें

EV पॉलिसी 2.0 का फोकस मुख्यतः M1 कैटेगरी इलेक्ट्रिक पैसेंजर कारों पर है; टू–व्हीलर/थ्री–व्हीलर सेगमेंट पर अलग से FAME या राज्य EV पॉलिसी 2.0 (जैसे दिल्ली) ज्यादा असर डालती हैं।​

इन सेगमेंट्स में सब्सिडी पहले की तुलना में कुछ कम हुई है, इसलिए यहां कीमतें बहुत अधिक नीचे जाने की उम्मीद फिलहाल नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी और वॉल्यूम की वजह से धीरे–धीरे कम हो सकती हैं।​

संक्षेप में, EV पॉलिसी 2.0 से तुरंत बड़ी कमी महंगी इम्पोर्टेड EVs की कीमत में दिख सकती है, जबकि आम यूज़र के लिए मैन्युफैक्चरिंग बढ़ने के बाद 2–5 साल में “रिलेटिव” सस्ता होना ज्यादा यथार्थवादी उम्मीद है, ना कि अगले कुछ महीनों में भारी कटौती।

 

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