दिल्ली‑एनसीआर की जहरीली हवा के बीच एयर प्यूरीफायर को मेडिकल डिवाइस (medical device) घोषित करने की मांग सीधे तौर पर स्वास्थ्य, टैक्स और कानून – इन तीनों मोर्चों से जुड़ी है।
ये मांग कहां से उठी?
दिल्ली हाई कोर्ट में अधिवक्ता कपिल मदान की ओर से जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें एयर प्यूरीफायर को मेडिकल डिवाइस घोषित करने और इन पर लगने वाला GST 18% से घटाकर 5% करने की मांग की गई है।
याचिका में दलील दी गई कि दिल्ली‑एनसीआर “अत्यंत गंभीर व विषाक्त” वायु गुणवत्ता संकट से जूझ रहा है और ऐसे में साफ इनडोर हवा नागरिकों के लिए विलासिता नहीं, बल्कि जीवन रक्षा का साधन बन गई है।
मेडिकल डिवाइस का दर्जा क्यों?
2020 की केंद्र सरकार की नोटिफिकेशन के बाद “मेडिकल डिवाइस” की परिभाषा को उद्देश्य‑आधारित (purpose‑based) बनाया गया है – यानी जो उपकरण रोग की रोकथाम, निगरानी या शारीरिक कार्यों के समर्थन में उपयोग हों, वे इस दायरे में आ सकते हैं।
याचिका का तर्क है कि एयर प्यूरीफायर PM2.5, PM10 और अन्य विषाक्त कणों को फिल्टर करके फेफड़ों की रक्षा करते हैं, सांस लेना सुरक्षित बनाते हैं और खासकर अस्थमा, COPD, दिल के मरीज, गर्भवती महिलाओं व बच्चों के लिए “preventive तथा physiological‑support device” की तरह काम करते हैं।
GST घटाने की मुख्य दलीलें
अभी एयर प्यूरीफायर पर 18% GST लगता है, जबकि ज्यादातर मेडिकल डिवाइस पर 5% स्लैब में टैक्स है।
याचिका में कहा गया कि जब WHO‑SEARO और भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने “Poor से Severe+” AQI में संवेदनशील आबादी के लिए एयर प्यूरीफायर को सुझाया है, तो इन्हें लग्ज़री गुड मानकर ऊंचा टैक्स लगाना अनुचित है और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वच्छ हवा के अधिकार का उल्लंघन है।
डॉक्टर व विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं?
80 से ज्यादा पद्म पुरस्कार प्राप्त डॉक्टरों ने हाल ही में राष्ट्रीय सलाह जारी कर वायु प्रदूषण को “सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल” बताया और कहा कि प्रदूषण अब मौसमी नहीं, साल भर का खतरा बन चुका है।
वे मानते हैं कि संवेदनशील मरीजों के लिए एयर प्यूरीफायर “रिस्क कम करने वाला उपकरण” है, लेकिन कई रेगुलेटरी विशेषज्ञों का मत है कि मेडिकल डिवाइस का दर्जा वैज्ञानिक और नियामकीय कसौटी से तय होना चाहिए, केवल प्रदूषण संकट के आधार पर नहीं।
सरकार व अदालत की शुरुआती प्रतिक्रिया
दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र और GST काउंसिल से जवाब मांगा है और साथ ही कहा है कि या तो सरकार हवा साफ करे या फिर एयर प्यूरीफायर पर टैक्स कम करे, ताकि आम लोग उन्हें खरीद सकें।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि 18% GST के चलते ऐसे उपकरण बड़ी आबादी की पहुंच से बाहर हो जाते हैं, जबकि प्रदूषण के मौजूदा स्तर पर इन्हें “life‑protective device” माना जा सकता है।



