Dhirendra Shastri : बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने हाल ही में ‘आई लव मोहम्मद’ विवाद पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि उन्हें इस नारे से कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने बताया कि उन्होंने इस नारे का समर्थन भी किया था, लेकिन सवाल उठाया कि जब वे कहते हैं ‘आई लव महादेव’, तो कुछ लोगों को परेशानी क्यों होती है।
शास्त्री ने कहा कि हर धर्म और ईश्वर के प्रति सम्मान और प्रेम होना चाहिए, लेकिन ‘सर तन से जुदा’ जैसे नारे संविधान और कानून दोनों के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि उनका संघर्ष तलवार का नहीं, विचारों का है — “हम विचारों से लड़ते हैं, किसी धर्म से नहीं।”
पटाखों के मुद्दे पर भी दी सफाई
अपने विवादित पटाखा बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि अगर पटाखे प्रदूषण फैलाते हैं तो यह नियम सभी मौकों पर लागू होना चाहिए — चाहे वह क्रिसमस हो, नया साल हो या किसी क्रिकेट मैच में भारत की जीत। उन्होंने सवाल उठाया कि “केवल हिंदू त्योहारों पर ही पर्यावरण की बातें क्यों की जाती हैं?” उनका कहना था कि अगर सिर्फ हिंदू उत्सवों को निशाना बनाया जाएगा, तो स्वाभाविक रूप से असंतोष होगा। उन्होंने कहा, “हम संतुलन की बात करते हैं, किसी के विरोध की नहीं। हिंदुओं का उत्साह कम करने की कोशिश बंद होनी चाहिए।”
राष्ट्रवाद के संदेश के लिए पदयात्रा
धीरेंद्र शास्त्री ने अपनी आगामी दिल्ली से वृंदावन पदयात्रा (7 से 16 नवंबर) की घोषणा करते हुए बताया कि यह यात्रा किसी पार्टी या धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि राष्ट्र जागरण के उद्देश्य से है। उन्होंने कहा कि देश में जाति, धर्म और क्षेत्रीयता के नाम पर विभाजन बढ़ रहा है, और यह समय है जब लोगों को इन सीमाओं से ऊपर उठकर राष्ट्र के लिए काम करना चाहिए।
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उन्होंने कहा, “भारत तभी शक्तिशाली बनेगा जब हर हिंदू जागरूक और संगठित होगा। डिफेंडर या फॉर्च्यूनर में घूमने से हिंदू राष्ट्र नहीं बनेगा — हमें गांव-गांव तक पहुंचना होगा, तभी हिंदुत्व सुरक्षित रहेगा।”
राजनीति पर क्या बोले धीरेंद्र शास्त्री
राजनीतिक दलों पर अपनी राय रखते हुए शास्त्री ने स्पष्ट किया कि उनका किसी पार्टी से कोई गठबंधन नहीं है। उन्होंने कहा, “देश की किसी भी पार्टी ने हिंदुत्व का ठेका नहीं लिया है। सभी दल हमारे हैं, क्योंकि हर दल में हिंदू हैं।”
उन्होंने बताया कि उनके कांग्रेस नेताओं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से भी अच्छे संबंध हैं, और छिंदवाड़ा में उन्होंने स्वयं उनकी कथा का आयोजन किया था।