Displaced Families Facing Hardship:नोएडा एयरपोर्ट के पहले चरण के लिए लोगों ने अपनी जमीन दी। इसके बाद उन्हें विस्थापित कर आरआर सेंटर में बसाया गया। आज कई परिवारों के पास रोजगार का कोई साधन नहीं है और वे कठिन जीवन जी रहे हैं। उनके पास रहने की छत है, लेकिन खाना, बच्चों की पढ़ाई और इलाज के लिए पैसे नहीं हैं।
मुआवजा और परिवारों की स्थिति
एयरपोर्ट के पहले चरण के लिए कुल 1334 हेक्टेयर जमीन ली गई। 2020 में नगला गणेशी, रोही, नगला शरीफ खां, नगला फूल खां, नगला छीतर, दयानतपुर खेड़ा, किशोरपुर जैसे गांवों के करीब 9 हजार परिवार आरआर सेंटर में बसाए गए।
इनमें से लगभग 40 प्रतिशत परिवारों के पास पहले से ज्यादा जमीन थी और उन्हें मोटा मुआवजा मिला। ये लोग आज भी आर्थिक रूप से सक्षम हैं।
बाकी परिवार छोटे किसान या मजदूर थे। ये लोग पहले बड़े किसानों के खेतों में काम करते थे या पशु पालन कर गुजारा करते थे। विस्थापन के बाद उनके पास रोजगार के साधन नहीं बचे। आरआर सेंटर में युवा बेरोजगार हैं और आसपास रोजगार के साधन विकसित नहीं किए गए।
मुआवजे का पैसा खत्म
जिन्हें मुआवजा मिला, उन्होंने ज्यादातर पैसे घर बनाने, कर्ज चुकाने और रोजमर्रा के खर्च में खर्च कर दिए। युवा किसान रोहित कहते हैं, “हमने जमीन दी ताकि देश और प्रदेश को एयरपोर्ट मिल सके। बदले में हमें बदहाली और बेरोजगारी मिली। वादे के मुताबिक हर परिवार से एक सदस्य को रोजगार नहीं मिला। बुजुर्ग रामनिवास अगली पीढ़ी की चिंता में फफक उठे।”
अधूरे वादे और अनसुलझी समस्याएं
पशुपालन केंद्र 2021 तक बनना था, लेकिन अब तक निर्माण नहीं हुआ।
इंडस्ट्रीज में रोजगार देने का वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ।
एयरपोर्ट में जिन लोगों को रोजगार मिलने वाला था, उनमें से किसी को नौकरी नहीं मिली।
सीएचसी (क्लिनिक) का निर्माण 5 साल में भी नहीं हुआ।
खेल का मैदान, पोस्ट ऑफिस और बैंक अब तक तैयार नहीं।
प्राइमरी स्कूल अधूरा है। शिक्षक और संसाधनों की कमी से पढ़ाई नाममात्र की हो रही है।
सरकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए परिचय पत्र बनाने थे, जो अभी तक नहीं बने।
बेरोजगारी और सामाजिक दबाव
आरआर सेंटर में बेरोजगार युवा बड़े पैमाने पर दिखाई देते हैं। उनके पास काम करने का कोई साधन नहीं है। आसपास रोजगार के अवसर भी विकसित नहीं किए गए। इससे परिवारों में आर्थिक दबाव बढ़ गया है। बुजुर्गों की चिंता बढ़ी है और बच्चे भी शिक्षा की कमी के कारण सही ढंग से पढ़ाई नहीं कर पा रहे।
वादों के पीछे लंबा इंतजार
विस्थापित परिवारों के लिए 5 साल में रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं पूरी तरह उपलब्ध नहीं हो पाईं। मुआवजे का पैसा खर्च हो चुका है और जीवन यापन के संसाधनों की कमी ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।


