UPSC Success Story : बिहार के नवादा जिले के एक छोटे से गांव महुली से ताल्लुक रखने वाले रवि राज ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है, जिससे आज पूरा देश, खासकर नवादा गौरवान्वित है। दृष्टिबाधित होने के बावजूद रवि ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) जैसी कठिन परीक्षा में पूरे भारत में 182वीं रैंक हासिल की। उनके इस हौसले ने यह साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी चुनौती आपके रास्ते की दीवार नहीं बन सकती।
जब माँ बनीं बेटे की रोशनी
रवि राज किसान रंजन कुमार सिन्हा और गृहिणी विभा सिन्हा के बेटे हैं। लेकिन यह कहानी सिर्फ रवि की नहीं, बल्कि उनकी मां विभा सिन्हा के समर्पण और ममता की भी है। रवि भले ही देख नहीं सकते, लेकिन उनकी माँ ने उन्हें वह दृष्टि दी जिससे उन्होंने सफलता की ओर कदम बढ़ाया। किताबों को पढ़कर सुनाना हो, कठिन विषयों को समझाना हो या जवाब लिखना—हर कदम पर मां ने बेटे का हाथ थामे रखा।
“मैं बोलता था, माँ लिखती थीं”
रवि खुद कहते हैं, “मेरी इस उपलब्धि में मेरी माँ की मेहनत बराबरी की है। उन्होंने अपना जीवन एक विद्यार्थी की तरह जिया ताकि मैं अपने सपनों को साकार कर सकूं।” यूट्यूब पर चल रहे ऑडियो लेक्चर को रसोई में काम करते हुए भी मां-बेटे ने मिलकर पढ़ाई का जरिया बनाया। रवि सुनते, समझते और बोलते, माँ वही बातें कागज़ पर उतार देतीं।
पहले भी BPSC में पाई सफलता
इससे पहले रवि ने 69वीं BPSC परीक्षा में 490वीं रैंक हासिल कर राजस्व अधिकारी के रूप में चयन पाया था। लेकिन उन्होंने उस नौकरी से अवकाश लेकर UPSC की तैयारी जारी रखी। उनकी इस उपलब्धि पर नवादा के जिलाधिकारी रवि प्रकाश ने खुद मिलकर उन्हें बधाई दी, स्मृति चिह्न, मिठाई और फूल भेंट किए। डीएम ने कहा, “यह सफलता केवल रवि की नहीं, पूरे नवादा की है। ऐसे होनहार युवाओं को बढ़ावा देना प्रशासन की जिम्मेदारी है।”
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रवि ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई दयाल पब्लिक स्कूल, नवादा से की और स्नातक की डिग्री सीताराम साहू कॉलेज से प्राप्त की। अपनी सफलता का सारा श्रेय उन्होंने अपने माता-पिता, विशेष रूप से अपनी माँ को दिया। जिलाधिकारी ने भी विभा सिन्हा की सराहना करते हुए कहा, “ऐसी माँ को सलाम, जिन्होंने अपने बेटे के सपनों को अपनी आँखों में देखा और उन्हें पूरा करने का साहस दिखाया।”
हर चुनौती को मात देने की प्रेरणा
रवि राज आज केवल नवादा ही नहीं, पूरे भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। उन्होंने यह जता दिया कि यदि माँ का साथ हो, और मन में अटूट विश्वास हो, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सीमाएं केवल हमारी सोच में होती हैं—हिम्मत हो तो हर अंधेरे को उजाला बनाया जा सकता है।