बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक बड़ा दिलचस्प मोड़ देखने को मिला जब कई बड़े नेताओं को चुनाव जीत दिलाने वाले मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट प्रशांत किशोर अपनी ही चुनावी जंग हार गए। जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर, जिन्होंने कभी जेडीयू से लेकर कांग्रेस, टीएमसी और बीजेपी जैसी पार्टियों को जमीन पर जीत दिलाने के लिए चुनावी रणनीति बनाई थी, इस बार खुद अपने बनाए “एकला चलो” फॉर्मूले के साथ मैदान में उतरे थे। लेकिन चुनावी नतीजों से साफ हो गया कि उनकी रणनीति, स्वयं के लिए उतनी प्रभावशाली नहीं रही जितनी दूसरों के लिए रही थी।
प्रशांत किशोर: चेहरे से रणनीतिकार की छवि तक
प्रशांत किशोर की पहचान देशभर में चुनाव जीताने वाले रणनीतिकार के रूप में रही है। वह पीएम मोदी, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और जगन मोहन रेड्डी समेत कई नेताओं के इलेक्शन कैंपेन का हिस्सा रह चुके हैं और इन्हें बड़ी जीत दिलाई। लेकिन इस बार जब उन्होंने खुद मैदान में उतर कर ‘एकला चलो’ की रणनीति अपनाई, तो उनका यह अनुभव सियासी मैदान में कारगर नहीं साबित हुआ।
जन सुराज पार्टी के लिए किशोर ने जनसंवाद यात्रा, जनता से प्रत्यक्ष जुड़ाव और प्रणालीगत बदलाव के बड़े-बड़े वादे किए, किंतु जनता के विश्वास को वोट में नहीं बदल पाए।
क्या हुआ प्रशांत किशोर के साथ?
जन सुराज पार्टी ने बिहार की सभी 243 सीटों पर प्रत्याशी उतारे, लेकिन ज्यादातर सीटों पर पार्टी की जमानत भी जब्त हो गई।
जेडीयू, जिसे किशोर ने 25 सीटों से अधिक न जीत पाने की भविष्यवाणी की थी, ने 80+ सीटें हासिल कर उनकी भविष्यवाणी को पूरी तरह गलत सिद्ध किया।
प्रशांत किशोर की पार्टी न तो मुख्य राजनीतिक लड़ाई में रही, न सामाजिक समीकरण बदल पाई, और न ही पुराने दलों या गठबंधन को चुनौती दे पाई।
उनका यह ‘अर्श पर या फर्श पर’ वाला दावा इस चुनाव में पिछले सारे रिकॉर्ड के विपरीत ‘फर्श’ पर ही रह गया।
प्रमुख कारण
स्थानीय मतदाताओं की उम्मीदें पुरानी पार्टियों से जुड़ी थीं। जन सुराज के नए चेहरे और स्थानीय संगठन इतना प्रभाव नहीं छोड़ सके कि मतदाता पर असर डाले।
प्रशांत किशोर की “जन संवाद” रणनीति और प्रगतिशील नारे मैदान में चर्चा में रहे, लेकिन वोट बैंक ट्रांसफर नहीं हो पाया।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि संगठन की कमजोरी, नए चेहरे, सोशल मीडिया पर तो चर्चा लेकिन ग्राउंड लेवल पर कार्यकर्ताओं की कमी पार्टी की हार की वजह रही।
आगे क्या विकल्प?
प्रशांत किशोर अभी भी चुनावी जनादेश और अपने मजबूत रणनीतिक नेटवर्क के कारण चर्चा में हैं।
भविष्य में किसी बड़ी पार्टी (जेडीयू, कांग्रेस या तीसरे मोर्चे) के चुनावी रणनीति या गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं।
इतना तय है कि प्रशांत किशोर की हार के बावजूद उनकी रणनीतिक बुद्धिमत्ता का महत्व बना रहेगा।



