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UP News : विकास का चला बुलडोजर और क्यों बनारस की मशहूर पहलवान लस्सी और चाची की दुकान हुई धराशाई

वाराणसी की मशहूर पहलवान लस्सी और चाची की कचौड़ी की दुकानें सड़क चौड़ीकरण के चलते हटा दी गईं। ये दुकानें सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि बनारसी पहचान और इतिहास का हिस्सा थीं।

SYED BUSHRA by SYED BUSHRA
June 19, 2025
in उत्तर प्रदेश, वाराणसी
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UP News : वाराणसी के लंका इलाके की दो बेहद मशहूर दुकानों पहलवान लस्सी और चाची की कचौड़ी का सफर अब इतिहास बन गया है। बुधवार को प्रशासन ने रोड चौड़ीकरण के तहत इन दुकानों समेत लगभग दो दर्जन दुकानों को तोड़ दिया। इन दोनों दुकानों से सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि बनारस की एक खास पहचान भी जुड़ी थी।

सड़क चौड़ीकरण के चलते कार्रवाई

लहरतारा से रवीन्द्रपुरी तक लगभग 9.5 किलोमीटर लंबी फोरलेन और सिक्सलेन सड़क परियोजना पर काम चल रहा है। ₹350 करोड़ की लागत वाली इस परियोजना का बड़ा हिस्सा पूरा हो चुका है। अब बीएचयू से रवीन्द्रपुरी तक का कार्य तेजी से किया जा रहा है। इसके चलते रविदास गेट के पास की दुकानों को हटाया जा रहा है।

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मंगलवार रात 11 बजे से पीडब्ल्यूडी के अफसरों की टीम पुलिसबल के साथ पहुंची और चिन्हित दुकानों को हटाने की कार्रवाई शुरू कर दी। इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था और ट्रैफिक कंट्रोल की जिम्मेदारी पुलिस ने संभाली।

लस्सी का वो स्वाद, जो हर दिल को भाया

पहलवान लस्सी की दुकान वाराणसी ही नहीं, देशभर में फेमस थी। यहां कुल्हड़ में दही, मलाई और रबड़ी से बनी लस्सी मिलती थी, जिसका स्वाद चखने के लिए आम से लेकर खास लोग आते थे। सीएम योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, स्मृति ईरानी, और पूर्व सीएम अखिलेश यादव तक यहां की लस्सी पी चुके हैं। बीएचयू से पढ़ाई कर विदेश गए लोग भी जब बनारस लौटते, तो इस दुकान पर ज़रूर आते थे।

चाची की दुकान, स्वाद और तकरार दोनों का मेल

चाची की कचौड़ी की दुकान 108 साल पुरानी थी। यहां सुबह-सुबह लंबी लाइनें लगती थीं। खास बात ये थी कि चाची खुद बैठती थीं और उनकी हिंग-दाल की डबल कचौड़ी, सीताफल वाली सब्ज़ी और मटका जलेबी के साथ परोसी जाती थी।उनकी तीखी ज़ुबान और खास अंदाज़ में दी जाने वाली गालियां भी लोगों के लिए उतनी ही यादगार थीं, जितना कि वहां का खाना।

कुछ यादें हमेशा ज़िंदा रहेंगी

हालांकि अब ये दुकानें नहीं रहीं, लेकिन इनके स्वाद, किस्से और यादें बनारस की गलियों में हमेशा जिंदा रहेंगी। यह बदलाव विकास के नाम पर ज़रूरी था, लेकिन बनारस की आत्मा का एक हिस्सा इससे जरूर खो गया है।

Tags: ChachiKiKachoriPahalwanLassi
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