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Bollywood: क्या बॉलीवुड हिंदू धर्म को टारगेट करता है? अब तक दूसरा धर्म...

Bollywood: क्या बॉलीवुड हिंदू धर्म को टारगेट करता है? अब तक दूसरा धर्म होता तो सिर कलम हो जाता

कभी कभी फिल्मों के विवाद जान बूझकर खड़े किए जाते हैं ताकि वे चल सके. तो सवाल ये है कि आखिर इन विवादों के कारण फिल्म जगत का कारोबार कितना चल पाता है. बॉलीवुड कब तक हमारे पौराणिक चरित्रों के साथ खिलवाड़ करता रहेगा? कभी माँ काली को सिगरेट पीते हुए दिखाना तो कभी भगवान भोलेनाथ को वाशरूम से भागते हुए दिखाना। और अब फिल्म आदिपुरुष में हनुमान जी का मौलाना रूप सामने आना। ये भारत है। और यहाँ के रहने वाले धार्मिक रीती- रिवाजो का पूरा पालन करते है।सभी मान्यता ओं को मानते है.तो जाहिर सी बात है लोग अपनी संस्कृति के साथ छेड़छाड़ बिलकुल भी बर्दाश नहीं करेंगे।

अगर अब तक दूसरा धर्म होता तो सिर कलम हो जाता

ऐसे बहुत केस हो गए जिसने हिन्दू लोगो को आहात किया है। अगर अब तक दूसरा धर्म होता तो सिर कलम हो जाता’ दूसरी कौम के मजहब से कोई खिलवाड़ नहीं, तो हिंदू ही क्यों ? इस वक्त फिल्म आदिपुरुष पर सभी लोगो पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप है। और हो भी क्यों नहीं। भारत देश में रामायण ग्रंथ को बड़ी आस्था के साथ पूजा जाता है क्योंकि इसमें भगवान राम के जीवन का सार जो छुपा है। अगर कोई रामायण का अपमान करता है या फिर इसके साथ कोई छेड़छाड़ करता है, तो हिन्दु धर्म के लोग इसे कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं। मैं तो कहूँगी कि जनता का जो आक्रोश है, वो कहीं से भी गलत नहीं है.

हमारी संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है.

मेकर्स को थोड़ा इन सब चीजों का ध्यान रखना चाहिए.’ हमारी संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है.’‘रामायण और महाभारत जैसे जितने भी ग्रंथ और शास्त्र हैं,ये हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर है, जड़ है. ये सारी मानव सभ्यता के लिये एक नींव सामान है.और ना ही नींव को हिलाया जा सकता है और ना ही जड़ को बदला जा सकता है. नींव या जड़ के साथ अगर किसी तरह का खिलवाड़ या छेड़छाड़ हो तो वो ठीक नहीं है. हमें अपने शास्त्रों से संस्कार मिलते हैं, जीने का आधार मिलता है.

बाकी कौम की मजहब के खिलाफ कोई खिलवाड़ नहीं

अगर आप लोग बाकी कौम की मजहब के खिलाफ कोई खिलवाड़ नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनके गुस्से को आप बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं. क्योंकि आप इससे डरते हैं, तो क्या हिंदू जो है, वो मंदिर का घंटा है, जिसे कोई आकर बजाकर चला जाए. ये बिलकुल नहीं होना चाहिए था.’

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