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Color Discrimination: फिल्मी जगत का खौफनाक सच, जिसका खुलासा...

Color Discrimination: फिल्मी जगत का खौफनाक सच, जिसका खुलासा किया है मिथुन चक्रवर्ती ने

फ़िल्मी दुनिया के लिए रंग रूप बहुत ही मायने रखता हैं, ये मेरा कहना नहीं है बल्कि फ़िल्मी जगत के हालत ये बता रहे हैं , वो कैसे तो बताते है आपको, हाल ही में मिथुन चक्रवर्ती यानि मिथुन दा ने फ़िल्मी दुनिया पर एक बड़ा खुलासा किया है वो खुलासा हैं कि उनके त्वचा के रंग की वजह से उन्हें हिंदी सिनेमा में कई बार अपमानित करने की कोशिश की गई है। बस यही कारण है कि वो अपनी आत्मकथा से बार बार इंकार कर रहे है।

मिथुन चक्रवर्तीने फ़िल्मी दुनिया पर बड़ा खुलासा किया

फ़िल्मी जगत में मिथुन दा का जीवन बहुत ही संघर्षमय रहा है और वह नहीं चाहते कि उनकी आत्मकथा बने और कोई भी उन यादों से गुजरे और उनके संघर्ष के दिनों को देखे। अपनी पहली ही फिल्म ‘मृगया’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलने के बाद भी उनका ये संघर्ष कम नहीं हुआ था बल्कि उनके सांवले रंग को लेकर अक्सर उन पर खूब तंज कसे गए।

आइए आपको बताते हैं कुछ और ऐसे सितारों के बारे में

इस लाइन में मिथुन दा ही अकेले नहीं थे बल्कि उनके साथ और भी सितारे थे जिन्होंने भी ऐसे अपमान सहें थे तो आइए आपको बताते हैं कुछ ऐसे सितारों के बारे में जिन्हें हिंदी सिनेमा में अपनी त्वचा के रंग की वजह से बार बार अपमानित होना पड़ा।

प्रियंका चोपड़ा

प्रियंका चोपड़ा ने भी अपने सावले रंग को लेकर बचपन से ही बहुत कुछ सुनना पड़ा. उनके घर वाले उन्हें काली कहकर चिढ़ाया करते थे। प्रियंका चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया था कि उनके कजिन यानि भाई बहन उन्हें काली काली कहकर चिढ़ाते थे। अपने ही घर में नहीं बल्कि जब प्रियंका अमेरिका में पढाई कर रही थीं तो लोग उन्हें ब्राउनी कहकर चिढ़ाते थे। विश्व सुंदरी बनने के बाद भी प्रियंका को अपने सांवलेपन को लेकर भी सघर्ष करना पड़ा था और इस वजह से उनके हाथ से एक हॉलीवुड की फिल्म भी चली गई थी।

रेखा

जब अभिनेत्री रेखा ने बॉलीवुड में कदम रखा तो उन्हें ‘काली कलूटी’ कहकर अपमानित किया गया था। करियर के शुरुआती दौर में रेखा काफी भरे शरीर की थीं और उनकी त्वचा का रंग साफ नहीं था। लेकिन, बाद में जब रेखा ने मेकओवर किया तो उनको देखने वाले दंग रह गए.

बिपाशा बसु

काला रंग को लेकर बिपाशा बसु को शुरू से ही टारगेट किया गया था, लेकिन वो अपने इस सांवले रंग की वजह से ही स्टार बनी है। इस पर विपाशा कहती है कि, ‘जब उन्होंने कोलकाता में पहली बार सुपर मॉडल का कॉन्टेस्ट जीता और न्यूज पेपर में छपा कि कोलकाता की सांवली लड़की बनी विनर, तो मैं हैरान रह गई कि ये सांवला रंग मेरी विशेषता कैसे हो सकती है? और फिर जब मैंने मॉडलिंग में करियर की शुरुआत की, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे सांवले रंग को लोगो के द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है इस वजह से मुझे ज्यादा काम और अटेंशन मिली। फिर जब मेरी पहली फिल्म ‘अजनबी’ आई और लोगों ने मुझे पसंद किया तब मैं समझी कि रंग रूप कोई मायने नहीं रखता है। आज भी मुझे वो दिन याद है जब लोग मुझे मोटी और काली कहकर चिढ़ाते थे, और तब मैं बड़ी चिढ़ जाती थी।’

अजय देवगन

बॉलीवुड में जब अजय देवगन एंट्री कर रहे थे तब लोग उनके सांवलेपन का खूब मजाक उड़ाया करते थे। एक समय ऐसा भी आया था कि अपने सावले रंग की वजह से अजय देवगन इस इंडस्ट्री को भी छोड़ना चाहते थे। लेकिन पहली फिल्म ‘फूल और कांटे’ के बाद उन्होंने लोगों की सोच बदल दी। इस पर अजय कहते हैं कि , ‘ आपका काम अगर अच्छा है और आपकी पर्सनैलिटी लोगों को दिखती है. और सबसे बड़ी बात पर्सनैलिटी लुक वाइज नहीं होती है, इसमें शामिल होता है कि आप खुद को किस तरह से रखते हैं और आप किस तरह के हैं।’ ये सब जरूरी है रंग रूप नहीं.

नवाजुद्दीन सिद्दीकी

नवाजुद्दीन सिद्द्की बॉलीवुड में अभी से नहीं है बल्कि काफी सालो से हैं, याद हो तो आपको “मुन्ना भाई mbbs” में जो चोर के रोल में था वो नवाजुद्दीन ही थे. उन्हें भी रंगभेद के खिलाफ कई सालों तक लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इस पर वो कहते हैं कि , ‘मुझे कई सालों तक केवल इसलिए रिजेक्ट किया गया था कि , क्योंकि मैं छोटा और सांवला दिखता हूं। अगर सिनेमा में ये सब चीजें खत्म हो जाएंगी तो शायद हम अच्छा सिनेमा बना सकते हैं। मैं अब इस बात को लेकर शिकायत नहीं कर सकता, क्योंकि अब मैं बॉलीवुड में अपनी जगह बना चुका हूं, लेकिन मैं यह बात उन कलाकारों के लिए जरूर कह सकता हूं, जो आज भी इस समस्या का सामना कर रहे हैं, वे शानदार हैं और मेहनती भी हैं।’ तो मेहनत कीजिये

नंदिता दास

नंदिता दास भी कई बार अपने सांवले रंग को लेकर रंगभेद का शिकार हो चुकी हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि रंगभेद को बढ़ावा देने में बॉलीवुड के गानों का भरपूर योगदान है। अक्सर गानों के बोल गोरे रंग की ओर ही इशारा करते हैं। गानों में कलाइयां हमेशा गोरी बताते हैं। जैसे कि गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर, गोरा रंग काला न पड़ जाए और गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा जैसे गीतों से लेकर आज के गाने चिट्टियां कलाइयां जैसे कई गीत हैं, जिसे सुनकर लोगों के जेहन में खूबसूरती की परिभाषा केवल गोरा रंग ही है

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