Dharmendra: पर्दे का ही-मैन, असल जिंदगी में जड़ों से जुड़े इंसान ,भतीजों के नाम कर दी इतनी सम्पत्ति कैसे खुला राज

धर्मेंद्र ने फिल्मी सफलता के बीच भी अपने परिवार और पैतृक गांव डांगो से गहरा नाता बनाए रखा। उन्होंने पुश्तैनी जमीन भतीजों को सौंप दी और गांव से जुड़ी यादों ने जीवनभर उनके दिल में खास जगह बनाए रखी।

Dharmendra family village legacy

 Bollywood Actor Legacy:बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता धर्मेंद्र अपने दमदार किरदारों के लिए जितने जाने जाते थे, उतने ही वह अपनी असल जिंदगी में परिवार से जुड़े और जमीन से जुड़े व्यक्ति थे। चमकदार फिल्मी दुनिया में रहने के बावजूद उन्होंने हमेशा अपने परिवार और पैतृक गांव से गहरा रिश्ता बनाए रखा। उनका पैतृक गांव डांगो, उनके दिल के बेहद करीब था। यहां की मिट्टी, लोग और रिश्ते धर्मेंद्र के जीवन का बड़ा हिस्सा रहे।

पुश्तैनी जमीन भतीजों के नाम करने की पारिवारिक मिसाल

धर्मेंद्र के बड़े दिल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन का बड़ा हिस्सा अपने भतीजों के नाम कर दिया था। हालांकि उनका जन्म नसराली में हुआ था, लेकिन उनका भावनात्मक रिश्ता डांगो से ही रहा।
एक रिपोर्ट के अनुसार, धर्मेंद्र के पिता ने बचपन में उनसे कहा था कि यह हमारे पुरखों की जमीन है, इसे हमेशा सहेजकर रखना। धर्मेंद्र ने इस सीख को दिल में बसा लिया और बाद में चाचा के बेटों के नाम जमीन लिख दी, ताकि परिवार गांव में रहकर इस विरासत को संभाल सके।

19 कनाल 11 मरले जमीन भतीजों के नाम सौंप दी

रिपोर्ट्स के मुताबिक, धर्मेंद्र ने करीब 19 कनाल 11 मरले जमीन अपने भतीजों को दे दी। उनका मानना था कि यह जमीन उसी खून के पास रहनी चाहिए, जिससे उनका रिश्ता जुड़ा है। उनके भतीजे बूटा सिंह, जो लुधियाना की एक कपड़ा मिल में काम करते हैं, ने कहा कि आज के समय में लोग आधा किला भी देने से हिचकिचाते हैं, लेकिन धर्मेंद्र ने हमें परिवार का हिस्सा मानते हुए इतनी बड़ी जमीन दान में दे दी।

गांव का खाना आज भी नहीं भूले थे धर्मेंद्र

धर्मेंद्र की चाची, 95 वर्षीय प्रीतम कौर आज भी गांव में रहती हैं और परिवार का प्यार याद करती हैं। बूटा सिंह ने बताया कि धर्मेंद्र मुंबई शिफ्ट होने के बाद भी गांव का रिश्ता उतना ही मजबूत रहा। उनके दादा जी अक्सर घर का बना खोया, बर्फी और सरसों का साग ट्रेन से 24 घंटे की यात्रा करके मुंबई ले जाते थे। धर्मेंद्र इन्हें बेहद खुशी से खाते थे और बार-बार कहते थे कि घर का बना खोया जरूर भेजा करना।

2013 में गांव लौटे तो छलक उठे थे धर्मेंद्र के आंसू

साल 2013 में जब वह 78 वर्ष के थे, फिल्म की शूटिंग के दौरान डांगो पहुंचे। उनके आते ही गांव में खुशी की लहर दौड़ गई, लेकिन गांव की मिट्टी पर कदम रखते ही धर्मेंद्र भावुक हो गए। पुराने मिट्टी के घर में प्रवेश करते समय उन्होंने गेट के पास की थोड़ी मिट्टी उठाकर माथे पर लगाई। बताया जाता है कि घर के अंदर जाते ही वह 10–15 मिनट तक रोते रहे। यह देखकर गांव वाले भी भावुक हो उठे। ऐसा लग रहा था मानो धर्मेंद्र सालों बाद अपने बचपन और जड़ों को फिर से छू रहे हों।

Exit mobile version