Bigg Boss 19: टेलीविजन शो बिग बॉस 19 जीतने के बाद, अभिनेता गौरव खन्ना एकबार फिर अपने निजी जीवन को लेकर चर्चा में हैं — उन्होंने हालिया इंटरव्यू में स्पष्ट कहा कि उनकी पत्नी आकांशा चमोला के बच्चे नहीं चाहने के फैसले का वह पूरा सम्मान करते हैं। गौरव ने बताया कि जब पत्नी किसी चीज़ के लिए तैयार नहीं है, तो वह भी तैयार नहीं। उन्होंने कहा, “अगर मेरी पत्नी नहीं चाहती, तो मैं भी सहमत नहीं हूँ।” गौरव ने यह भी कहा कि पुरुषों को अपने जीवनसाथी के फैसलों का साथ देना चाहिए। उन्होंने आगे कहा — “हम अक्सर क्यों सोचते हैं कि सिर्फ पत्नियों को ही हमारी हर बात माननी चाहिए? हमें औरतों का साथ देना चाहिए।”
उनका मानना: प्रेम और समझ है अहम
गौरव खन्ना ने जोर देकर कहा कि उनका पति-पत्नि सम्बन्ध सिर्फ प्यार और समझ पर आधारित है, न कि किसी सामाजिक दबाव या दूसरों की उम्मीदों पर। उनका कहना था कि पत्नी के फैसले में उनका पूरा साथ है, और वह इस निर्णय से खुश हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगर समाज में और लोग इस तरह सोचने लगें — यानी पार्टनर की सोच और उनके फैसलों का सम्मान करें — तो दुनिया थोड़ी बेहतर बन सकती है। गौरव ने यह भी स्वीकार किया कि वे चाह सकते थे कि उनकी जिंदगी में बच्चे हों, लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर इच्छा पूरी हो — जब तक दोनों की सहमति न हो। उनके अनुसार, “उनकी खुशी किसी भी अन्य विकल्प से कहीं ज़्यादा मायने रखती है।”
पहले भी हो चुकी है खुलकर बातचीत
यह पहली बार नहीं है जब इस जोड़े ने पेरेंटहुड और बच्चे न चाहने के फैसले पर बात की हो। शो के दौरान भी उन्होंने इस विषय पर चर्चा की थी, और मीडिया के सवालों का सामना किया था — कभी–कभी अ ऐसे सवाल आए थे कि क्या वे “सिम्पैथी प्वाइंट” हासिल करना चाहते हैं। उस समय भी गौरव भावुक हो गए थे। लेकिन इस बार उन्होंने बेहद स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उन्हें पत्नी के निर्णय से कोई आपत्ति नहीं है — बल्कि, वे गर्व महसूस करते हैं कि वे एक ऐसी सोच को स्वीकार करते हैं, जो अक्सर विवादित है।
क्या सामाजिक दृष्टिकोण बदल रहा है?
गौरव खन्ना का यह खुला समर्थन — कि एक पति अपनी पत्नी की चाहत और फैसलों को उतना ही सम्मान दे — कई प्रशंसकों के लिए प्रेरणादायक है। कईयों का मानना है कि भारत जैसे समाज में, जहाँ बच्चों को शादी का “महत्वपूर्ण” हिस्सा माना जाता है, ऐसे उदाहरण शायद-थोड़े ही मिलते हों।
गौरव की बात यह भी दर्शाती है कि शादी सिर्फ दायित्व नहीं, बल्कि समझ, सहमति और व्यक्ति-स्वतंत्रता का नाम है। यदि अधिक दंपति इस तरह से खुलकर बातचीत करें और निजी फैसलों में पारस्परिक सम्मान दिखाएं — तो शायद पारंपरिक रूढ़ियाँ धीरे-धीरे बदलें।








