एक ऐसी आवाज जिसे सुनते ही लोग झूमने लगते हैं और उनका सूफीयाना अंदाज लोगो को काफी पसंद आता हैं। वो आवाज़ है कैलाश खेर की जो आज बॉलिवुड में जाना पहचाना नाम हैं, उन्होनें कई सारे फिल्मों में अपनी आवाज का जादू बिखेरा है. ऐसे में आज कैलाश खेर (Kailash Kher) का जन्मदिन हैं और जिस मुकाम पर हैं वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है, ऐसे में आज उनके जन्मदिन पर आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें:
‘अल्लाह के बंदे’ से चमका कैलाश की किस्मत का सितारा
अपनी आवाज के लिए मशहूर कैलाश की किस्मत का सितारा तब चमका जब उन्होंने फिल्म ‘वैसा भी होता है’ में ‘अल्लाह के बंदे’ (Allah Ke Bande) गाने को गाया था. भले ही लोगों के जेहन में फिल्म का नाम न हों लेकिन उनके गाने को लोगों ने खूब पसंद किया गया. यह गाना कैलाश खेर के सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले गानों में से एक हैं. यूपी के मेरठ में जन्में कैलाश खेर को पॉप म्यूजिक और रॉक म्यूजिक के साथ-साथ सूफियाना म्यूजिक का भी शौक है. कैलाश खेर अपने करियर में 18 भाषाओं में गा चुके हैं. अपने करियर कैलाश खेर ने 300 से ज्यादा गाने गाए हैं.
कैलाश खेर को म्यूजिक विरासत में मिली
कैलाश खेर के पिता पंडित मेहर सिंह खेर एक पुजारी थे और अक्सर धार्मिक अनुष्ठानों में पारंपरिक लोक गीत गाते थे. कैलाश ने बचपन में ही अपने पिता से संगीत की शिक्षा ली. उसके बाद कैलाश खेर ने गाना शुरू किया, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया. कैलाश खेर को सिंगिंग का ऐसा भूत सवार था कि वह 13 साल की उम्र में अपने परिवार से दूर म्यूजिक सीखने के लिए दिल्ली आए थे.
एक इंटरव्यू में कैलाश खेर ने कहा था, “मैंने म्यूजिक सीखना शुरू किया लेकिन पैसे का संकट था जिसके लिए विदेशियों को संगीत पढ़ाना शुरू कर दिया. इससे मुझे करीब 150 रुपये मिलते थे और इसी पैसे में खुद का गुजारा और पढ़ाई करनी होती थी.”
कैलाश खेर जब दिल्ली में रहते थे, तो उन्होंने अपने दोस्त के साथ एक एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का काम शुरू किया, लेकिन इस काम में उन्हें खूब नुकसान हुआ जिसमें उन्होंने सभी बची हुई कमाई को खो दिया.
कैलाश खेर डिप्रेशन से भी गुजरें
ऐसा बताया जाता है कैलाश खेर इतने अंदर से टूट चुके थे कि वह डिप्रेशन में चले गए. यहां तक कि उन्होंने आत्महत्या करने के बारे में भी सोचा था. हालांकि, बाद में जब हालत सुधरी तो कैलाश बाद में पैसा कमाने के लिए सिंगापुर और थाईलैंड चले गए. वापस लौटने के बाद उन्होंने अध्यात्म में अपना रुझान दिखाया और संतों के साथ ऋषिकेश में कुछ समय बिताया. ऐसा कहा जाता है कि सूफियाना शैली के लिए कैलाश खेर की ललक यहीं से हुई. कैलाश खुद कहते हैं कि गंगा के किनारे ऋषिकेश ने उनके म्यूजिक में बहुत योगदान दिया है.