Social Media: ऑस्ट्रेलिया में हाल ही में एक नया कानून लाया गया, जिसके तहत 16 साल से कम उम्र के बच्चों को TikTok, Facebook और Instagram जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से दूर रखने का फैसला किया गया। इस कानून का मकसद बच्चों को ऑनलाइन खतरों से बचाना था। लेकिन जब बाकी सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह बैन लगाया गया, तो YouTube को इससे अलग क्यों रखा गया? यही सवाल अब विवाद की वजह बन गया है। इस पूरी कहानी की शुरुआत होती है ऑस्ट्रेलिया की संचार मंत्री मिशेल रोलैंड से। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, मिशेल ने खुद YouTube के CEO नील मोहन को एक भरोसा दिया था कि उनके प्लेटफॉर्म पर यह बैन लागू नहीं होगा। उन्होंने 9 दिसंबर 2024 को नील मोहन को चिट्ठी लिखकर इसकी पुष्टि भी की थी कि यूट्यूब को कानूनी छूट दी जा चुकी है।
बाकी कंपनियां क्यों भड़कीं?
इस फैसले से बाकी सोशल मीडिया कंपनियों में नाराजगी फैल गई। Meta, जो कि Facebook और Instagram का मालिक है, इसके साथ-साथ TikTok और Snapchat ने इस फैसले पर आपत्ति जताई है। TikTok की पैरेंट कंपनी ByteDance ने इसे एकतरफा और भेदभावपूर्ण करार दिया। उनका कहना है कि अगर TikTok और YouTube दोनों ही शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म हैं, तो फिर सिर्फ YouTube को छूट क्यों मिली? यह ऐसा ही है जैसे सभी सॉफ्ट ड्रिंक्स पर बैन लगाया जाए, लेकिन Coca-Cola को खुला छोड़ दिया जाए।
YouTube को कैसे मिला फायदा
YouTube को मिली यह छूट उसे ऑस्ट्रेलिया में बाकी सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के मुकाबले आगे ले गई है। अब जब बाकी ऐप्स पर बैन है, तो बच्चे और युवा ज़्यादातर समय YouTube पर ही बिता रहे हैं। इसका सीधा फायदा YouTube की लोकप्रियता और इस्तेमाल में हुआ है।इस मामले को लेकर अब ऑस्ट्रेलिया की सरकार पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या किसी एक प्लेटफॉर्म को इतनी बड़ी छूट देना सही था? क्या सभी सोशल मीडिया कंपनियों के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं होना चाहिए?
YouTube को मिली छूट ने जहां उसे बड़ा फायदा दिया, वहीं बाकी सोशल मीडिया कंपनियों को नुकसान झेलना पड़ा। अब यह बहस का मुद्दा बन गया है कि क्या सरकार ने सही किया या नहीं। आने वाले समय में इस पर और भी चर्चाएं हो सकती हैं।