Sita Ashtami Puja Vidhi: 14 फरवरी को मनाया जाएगा सुख और सौभाग्य बढ़ाने वाला व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा की विधी

14 फरवरी, सोमवार को सीताष्टमी है। मान्यता है कि इस तिथि पर देवी सीता प्रकट हुई थीं। इस बार यह दिन कल यानी 14 फरवरी को पड़ रहा है। फरवरी माह के इस सप्ताह में सीता अष्टमी के अलावा मासिक कालाष्टमी, विजया एकादशी, शनि प्रदोष और महाशिवरात्रि जैसे बड़े व्रत और त्योहार भी आने वाले हैं। आज के दिन सूर्य कुंभ राशि में गोचर करने जा रहा है और इससे शनि और सूर्य की युति बनेगी। सूर्य का राशि परिवर्तन भी अलग-अलग राशि पर अलग-अलग प्रभाव डालेगा। सीताष्टमी को कुछ जगहों पर वैशाख महीने की नवमी को जानकी नवमी के नाम से मनाया जाता है। इस तरह से ये साल में दो बार मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन सीता की पूजा और व्रत करने की परंपरा है।

आपको बता दें कि इस दिन कुंवारी और शादीशुदा महिलाएं व्रत रखती हैं। इ, मौके पर माता सीता, भगवान श्रीराम, गणेशजी और माता अंबिका की भी पूजा होती है। इस पूजा में खासतौर से पीले फूल और इसी रंग के कपड़े शामिल किए जाते हैं। वहीं सोलह शृंगार की चीजें भी चढ़ाई जाती हैं। जो बाद में कुंवारी कन्याओं को देने की परंपरा है। इस दिन पूजा में सिर्फ पीली चीजें ही चढ़ाई जाती हैं। वहीं इस दिन दूध और गुड़ से बने पारंपरिक व्यंजनों का ही प्रसाद के रुप में भोग लगाया जाता है। सुबह-शाम पूजा करने के बाद व्रत का पारण किया जाएगा। चलिए जानते हैं कि सीता अष्टमी पर कैसे करें पूजा:-

सीता अष्टमी पर कैसे करें पूजा

सीता अष्टमी का दिन हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत खास माना जाता है। सीत अष्टमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर माता सीता और भगवान राम को प्रणाम करते हुए व्रत करने का संकल्प करें। पूजा शुरू करने से पहले प्रथम पूज्य भगवान गणपति और माता दुर्गा की पूजा करें और उसके बाद माता सीता और भगवान राम की पूजा करें। माता सीता के समक्ष पीले फूल, पीले वस्त्र और श्रृंगार का सामान अर्पित करें। इसके बाद भोग में पीली चीजों को चढ़ाएं। फिर माता सीता की आरती करें आरती करने के बाद श्री जानकी रामाभ्यां नम: मंत्र का 108 बार जप करें। गुड़ से बने व्यंजन बनाने चाहिए। साथ ही इनका दान करना भी शुभ माना जाता है। शाम के वक्त पूजा करने के बाद इन्हीं व्यंजनों से अपना व्रत खोलें।

माता सीता से जुड़ी कथा

रामायण महाकाव्य में माता सीता को जानकी कहा गया है। माता सीता के पिता का नाम जनक था। इसी कारण माता सीता का नाम जानकी पड़ा। हिंदू धर्म शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि माता सीता जनक जी ने गोद लिया था। वाल्मीकि रामायण की माने तो एक बार राजा जनक खेत में धरती जोत रहे थे. उस समय उन्हें धरती में से सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई एक सुंदर कन्या मिली. राजा जनक की उस समय कोई संतान नहीं थी. इसलिए राजा जनक ने उस कन्या को गोद ले लिया और उसका नाम सीता रखा और जीवन भर उसे अपनी पुत्री के रूप में अपनाया.

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