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दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे तैयार.. एक घर ने बदली रफ्तार, 1998 से चल रहा विवाद

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है लेकिन गाजियाबाद बॉर्डर के पास 1600 वर्ग मीटर का एक प्लॉट इस बहुप्रतीक्षित परियोजना के लिए सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है।

Akhand Pratap Singh by Akhand Pratap Singh
March 31, 2025
in Latest News, उत्तर प्रदेश, गाजियाबाद
Delhi-Dehradun Expressway
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Delhi-Dehradun Expressway: दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है लेकिन गाजियाबाद बॉर्डर के पास 1600 वर्ग मीटर का एक प्लॉट इस बहुप्रतीक्षित परियोजना के लिए सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। यह कानूनी विवाद कोई नया नहीं है बल्कि 1998 से चला आ रहा है। जमीन अधिग्रहण की यह लड़ाई न केवल एक्सप्रेसवे की रफ्तार को धीमा कर रही है बल्कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और उत्तर प्रदेश हाउसिंग बोर्ड के लिए भी बड़ी चुनौती बन गई है। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट से लौटकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में पहुंच गया है जहां 16 अप्रैल को इसकी सुनवाई होनी है।

1998 में चल रहा है विवाद

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इस विवाद की जड़ें 1998 में जाती हैं जब उत्तर प्रदेश हाउसिंग बोर्ड ने मंडोला हाउसिंग स्कीम के लिए दिल्ली-गाजियाबाद सीमा के पास 6 गांवों से 2614 एकड़ जमीन अधिग्रहण करने की अधिसूचना जारी की थी। उस समय मंडोला एक ग्रामीण इलाका था जहां खेतों और बिखरे हुए घरों का माहौल था। वीरसेन सरोहा और उनका परिवार तब 1600 वर्ग मीटर के प्लॉट पर बने एक साधारण घर में रहता था। हाउसिंग बोर्ड ने कई परिवारों को अपनी जमीन सौंपने के लिए मना लिया लेकिन वीरसेन ने प्रस्तावित मुआवजे को नाकाफी बताते हुए अपनी जमीन देने से इनकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जहां कोर्ट ने उनकी जमीन के अधिग्रहण पर रोक लगा दी।

वीरसेन की मौत.. लेकिन जंग जारी

समय के साथ मंडोला हाउसिंग स्कीम शुरू नहीं हो सकी। बाद में 2020 में एनएचएआई ने दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के लिए इस जमीन की जरूरत बताई और हाउसिंग बोर्ड ने इसे एनएचएआई को सौंप दिया। हालांकि वीरसेन की मृत्यु हो चुकी थी लेकिन उनके परिवार ने इस लड़ाई को जारी रखा। अब वीरसेन के पोते लक्ष्यवीर सरोहा इस मामले को लड़ रहे हैं। 2024 में लक्ष्यवीर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जिसमें कहा गया कि यह जमीन हाउसिंग बोर्ड की नहीं थी जिसे वह एनएचएआई को दे सके। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लखनऊ बेंच में भेज दिया जहां अब 16 अप्रैल को सुनवाई होनी है।

यह भी पढ़े: जसोल धाम में नवरात्रि अनुष्ठान का शुभारंभ, मां शैलपुत्री की पूजा के लिए उमड़ी भक्तों की भीड़

अक्षरधाम से खेकड़ा तक काम पूरा

एनएचएआई के मुताबिक अक्षरधाम से ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे (ईपीई) तक का हिस्सा दो खंडों में बनाया गया है। पहला खंड 14.7 किलोमीटर का है जो अक्षरधाम से लोनी (Delhi-Dehradun Expressway) में यूपी सीमा तक जाता है। दूसरा खंड 16 किलोमीटर का है, जो लोनी से खेकड़ा में ईपीई तक फैला है। इस पूरे खंड का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है सिवाय वीरसेन के 1600 वर्ग मीटर के प्लॉट के। यह प्लॉट एक्सप्रेसवे के एक महत्वपूर्ण रैंप के ठीक बीच में है। अधिकारियों का कहना है कि विवाद सुलझने के बाद दिल्ली से बागपत की दूरी महज 30 मिनट में तय हो सकेगी।

कोर्ट का फैसला तय करेगा भविष्य

यह विवाद तब और जटिल हो गया जब हाउसिंग बोर्ड ने अधिग्रहण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की कोशिश की। वीरसेन ने 2007 में दोबारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लखनऊ बेंच में यह मामला लंबित है। कोर्ट ने इस सुनवाई को तेज करने का आदेश दिया है क्योंकि यह परियोजना जनहित से जुड़ी है। 16 अप्रैल को होने वाली सुनवाई से यह तय होगा कि क्या यह प्लॉट एक्सप्रेसवे का हिस्सा बनेगा या फिर परियोजना को वैकल्पिक रास्ता तलाशना पड़ेगा।

212 किलोमीटर लंबा है एक्सप्रेसवे

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे 212 किलोमीटर लंबा है जो अक्षरधाम से शुरू होकर देहरादून तक जाता है। यह परियोजना दिल्ली से बागपत और देहरादून के बीच यात्रा समय को लगभग 30 मिनट और 2.5 घंटे तक कम करने का वादा करती है। इस विवाद के निपटारे का इंतजार न केवल एनएचएआई को है बल्कि उन लाखों यात्रियों को भी जो इस एक्सप्रेसवे से राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

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Akhand Pratap Singh

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