Gold Mutual Fund : सोनें में करना चाहते हैं निवेश ?, Gold ETF बनाम Gold Mutual Fund, कौन दे रहा ज़्यादा मुनाफ़ा?

अगर आप सोना खरीदने और उसे सुरक्षित रखने की झंझट से बचना चाहते हैं, तो आप गोल्ड ईटीएफ या गोल्ड म्यूचुअल फंड जैसे डिजिटल निवेश विकल्पों में से किसी एक को चुन सकते हैं।

Gold Mutual Fund

Gold Mutual Fund : त्योहारी सीज़न के समाप्त होते ही सोने की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है। ऐसे माहौल में कई भारतीय निवेशक सोने में निवेश करने पर विचार कर सकते हैं। वैसे भी, सोना हमेशा से ही निवेशकों के लिए एक भरोसेमंद और सुरक्षित निवेश विकल्प रहा है। यह न केवल बाजार की अनिश्चितता और वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव से सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि लंबे समय में स्थिर रिटर्न भी देता है।

पिछले कुछ वर्षों में सोने ने निवेशकों को बेहतरीन मुनाफा दिया है। अगर आप भौतिक सोना खरीदने और उसकी सुरक्षा की चिंता से बचना चाहते हैं, तो गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF) या गोल्ड म्यूचुअल फंड (Gold Mutual Fund) जैसे डिजिटल निवेश विकल्प बेहतर साबित हो सकते हैं। इन दोनों विकल्पों में आपका निवेश डिजिटल रूप में रहता है। तो आइए जानते हैं, इनमें से आपके लिए कौन सा विकल्प ज़्यादा उपयुक्त रहेगा।

गोल्ड म्यूचुअल फंड

गोल्ड म्यूचुअल फंड में आप एसआईपी (SIP) के ज़रिए नियमित और छोटी-छोटी रकम निवेश कर सकते हैं। इसके लिए डिमैट अकाउंट की ज़रूरत नहीं होती। इस फंड में आपका निवेश एक प्रोफेशनल फंड मैनेजर द्वारा गोल्ड या गोल्ड ईटीएफ में किया जाता है।

बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक, गोल्ड म्यूचुअल फंड नए निवेशकों के लिए एक सुविधाजनक विकल्प है — खासकर उनके लिए जो रियल टाइम ट्रेडिंग से दूर रहना चाहते हैं लेकिन स्थिर और अच्छे रिटर्न की उम्मीद रखते हैं।

गोल्ड ईटीएफ

गोल्ड ईटीएफ में निवेश करने पर आप सोने की कीमतों को रियल टाइम में ट्रैक कर सकते हैं। इस निवेश के लिए डिमैट अकाउंट आवश्यक है, क्योंकि ईटीएफ को शेयर बाजार के ज़रिए खरीदा और बेचा जाता है। इसकी कीमतें दिनभर बाजार के साथ बदलती रहती हैं।

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विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आप बाजार की समझ रखते हैं और अपने निवेश में ज्यादा लिक्विडिटी चाहते हैं, तो गोल्ड ईटीएफ आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। हालांकि, इसमें ब्रोकरेज फीस और डिमैट अकाउंट चार्ज जैसे अतिरिक्त खर्च शामिल होते हैं।

टैक्स और सुरक्षा

गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड म्यूचुअल फंड दोनों ही डिजिटल रूप में होते हैं, इसलिए इनमें चोरी या खोने का कोई जोखिम नहीं होता। टैक्स के मामले में भी दोनों पर समान नियम लागू होते हैं। यदि आप तीन साल के भीतर अपना निवेश बेचते हैं, तो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना होगा, जबकि तीन साल से ज़्यादा की अवधि के बाद लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लागू होता है।

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